
मऊ/ मऊ में 18 मई को ‘‘बढ़ता फासीवादी खतरा और संघर्ष की दिशा’’ विषय पर इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन व ग्रामीण मजदूर यूनियन की ओर से सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार में उक्त के अलावा एम.सी.पी.आई. (पू.), बनारस से किसान मजदूर परिषद, आजमगढ़ से किसान संग्राम समिति व क्रांतिकारी किसान यूनियन, मऊ से भाकपा माले लिबरेशन, एक्टू, माकपा, सीटू, भाकपा, पूंजीवाद-साम्राज्यवाद विरोधी जनवादी मंच, राष्ट्रवादी जनवादी मंच, सरकारीकरण आंदोलन मंच व उत्तर प्रदेश बुनकर वाहिनी के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।
सेमिनार के शुरूवात में विषय प्रवर्तन करते हुए फासीवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए बताया गया कि जब पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा उत्पन्न आर्थिक संकट ऐसी हालत में पहुंच जाता है कि एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग उस संकट का समाधान नहीं तलाश पाता तब वह दमन का फासीवादी रास्ता अख्तियार करता है या फासीवाद की ओर अग्रसर होता है। पूंजीवादी व्यवस्था में मुनाफे को आधार बनाकर उत्पादन व वितरण किया जाता है न कि सामाजिक हित की दृष्टि से उत्पादन व वितरण को संचालित किया जाता है। ऐसी स्थिति में बार-बार मालों की खपत की समस्या समाज में उत्पन्न होती है और औद्योगिक क्षेत्र में अफरा-तफरी पैदा हो जाती है। श्रमिकों की छंटनी की जाती है या उन्हें पहले की तुलना में कम काम दिया जाता है। बाजार मंदी का शिकार हो जाता है। मुनाफा आधारित निजी मालिकाने की व्यवस्था को संचालित करने वाला एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग इस संकट का हल नहीं निकाल सकता है क्योंकि संकट तो इसी सत्ता द्वारा पैदा किया गया है। निजी मालिकाने व सामूहिक उत्पादन के बीच के अंतरविरोध को हल करके ही मौजूदा पूंजीवादी संकट, जो देश को फासीवाद की ओर ले जा रहा है, को हल किया जा सकता है।
वक्ताओं द्वारा कहा गया कि इटली, जर्मनी, जापान आदि देशों में फासीवाद के स्वरूप को देखने पर स्पष्ट हो जाता है कि भिन्न-भिन्न देशों में वहां की विशिष्ट परिस्थितियों में फासीवाद के स्वरूप में किसी हद तक भिन्नता रही है। हमारे देश में मौजूदा समय में एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग की सत्ता आर.एस.एस. व भाजपा के साथ गठजोड़ बनाकर हिन्दू फासीवाद थोपने की ओर बढ़ रही है। हिन्दू फासीवादियों के निशाने पर क्रांतिकारी शक्तियां, मजदूर-मेहनतकश, अल्पसंख्यक (विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यक), आदिवासी, दलित व महिलायें हैं।
वक्ताओं ने कम्युनिस्ट आंदोलन में स्वीकृत तीसरे इण्टरनेशनल द्वारा प्रस्तुत फासीवाद की परिभाषा को रखते हुए कहा कि ‘‘फासीवाद वित्तीय पूंजी के सबसे ज्यादा अंधराष्ट्रवादी, सबसे ज्यादा प्रतिक्रियावादी और सबसे ज्यादा साम्राज्यवादी की नंगी, आतंकी तानाशाही है।’’ वक्ताओं ने फासीवाद की व्याख्या करते हुए कहा कि वित्तीय पूंजी द्वारा की जा रही लूट ही उस पूंजीवादी संकट को पैदा कर रही है, जिसका हल नहीं ढूंढ पाने के कारण ही एकाधिकरी पूंजीपति वर्ग की सत्ता फासीवाद की ओर बढ़ने के लिए बाध्य है।
सेमिनार में भारत में फासीवाद को हिन्दू फासीवाद के तौर पर प्रस्तुत करने पर सवाल खड़ा हुआ, जिस पर बहस जारी रखने की बात करके हिन्दू फासीवाद की लाक्षणिकताओं पर ध्यान देने की बात की गयी। दूसरा सवाल उठा कि फासीवाद इतनी लोकप्रियता कैसे हासिल कर लेता है। तीसरे इण्टरनेशनल की परिभाषा का हवाला देकर, अंधराष्ट्रवाद, प्रतिक्रियावाद की बात रखते हुए, प्रोपेगेन्डा की भूमिका बताते हुए व मध्यम वर्ग में फासीवाद के आधार की बात करते हुए इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की गयी। पर समय सीमा देखते हुए व्यापक बहस नहीं की जा सकी। आमंत्रित पार्टियों-संगठनों के प्रतिनिधियों ने फासीवादी हमले का मुकाबला करने के लिए एकजुटता कायम करने पर सहमति व्यक्त की। सेमिनार में फासीवाद की मौजूदगी को लेकर भिन्न राय भी देखी गयी। कुछ प्रतिनिधियों ने फासीवाद की मौजूदगी बतायी जब कि कुछ ने फासीवाद की मौजूदगी के बजाय कहा कि फासीवाद की प्रवृत्तियां मौजूद हैं। सेमिनार की अध्यक्षता क्रालोस के व्यासमुनि व एम.सी.पी.आई. के अनुभव दास ने की जबकि संचालन इमके के दिव्यकुमार व क्रालोस के सिकन्दर ने किया। -मऊ संवाददाता