अन्य फैक्टरी की तरह जब मैं प्रिंस पाइप में काम करने गया तो शोषण का नजारा कुछ अलग नहीं था हालांकि प्रिंस पाइप एंड फिटिंग्स लिमिटेड में मैं अपने हरिद्वार में आने के शुरुआती दिनों में ही काम कर चुका था। इसलिए वहां का माहौल क्या है यह पता भी था। जब मैं पिछली बार वहां काम करके गया था तब फ्रेशर (Helper) के रूप में काम किया था और इस बार मोल्ड चेंजर के बतौर काम कर रहा था। जानकारी के लिए बताता चलूं कि अन्य फैक्टरियों की तरह यहां पर मोल्ड चेंज करना आसान नहीं होता है बल्कि यहां पर काफी टेक्निकल काम है और उतना ही ज्यादा खतरनाक भी है। कोर वाले मोल्ड हैं, हाइड्रोलिक प्रेशर पर चलने वाले मोल्ड है, अन्य फैक्टरी की तरह यहां पर मोल्ड आसानी से और सीधा-सीधा नहीं लगता है बल्कि तिरछा, उल्टा, वर्टिकल, होरिजेंटल, डायरेक्शन चेंज करके मोल्ड को लगाना पड़ता है क्योंकि सीधे-सीधे सारे मोल्ड मशीन पर नहीं चल पाते हैं।
कई बार मोल्ड उठाते समय बोल्ट का टांका टूट भी गया और मोल्ड नीचे आकर गिरा, और यह सब मेरे सामने ही हुआ है। अब बात करते हैं क्लैंपिंग की तो यहां पर मोल्ड में लगने वाले क्लैंप भी तिरछे लगते हैं तथा मोल्ड में जगह देखनी पड़ती है कि कहां पर क्लैंप लगेगा और कहां पर नहीं। मशीनों की ऐसी जर्जर हालत है कि कई मशीन की प्लैटिन में क्लैपिंग स्टड लगाने के लिए थ्रेड तक नहीं है और कुछ मोल्ड ऐसे हैं जिनमें क्लैंप आगे-पीछे न लगकर नीचे-ऊपर लगाने पड़ते हैं जो काफी कठिन काम होता है जिसमें नीचे के क्लैम्प मशीन के नीचे पीठ के बल लेटकर तथा ऊपर के क्लैम्प मशीन के ऊपर चढ़कर स्वयं मोल्ड पर खड़े होकर लगाना पड़ता है और यह काम जानलेवा भी हो सकता है, अगर थोड़ा सा भी डिस्टर्ब हुए तो ऊपर का क्लैंप कसते समय टेक्नीशियन के नीचे गिरकर घायल हो जाने का खतरा रहता है तो वहीं नीचे का क्लैम्प लगाते समय क्लैम्प का खुद के ऊपर (मुंह पर) गिर जाने का खतरा रहता है।
अब बात करते हैं रनिंग मशीन में मोल्ड ब्रेकडाउन की तो बता दूं कि अगर कोई पंच अनलोड करना है तो दो टेक्नीशियन लगते हैं एक क्रेन आपरेटर और दूसरा पंच पकड़ने के लिए ऊपर बैठता है। अगर दोनों में से एक ने थोड़ी सी भी गलती कर दी तो जो ऊपर पंच पकड़ने के लिए बैठा हुआ है उसके साथ बड़ी दुर्घटना हो सकती है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां पर चलने वाले मोल्ड की फिटिंग Y, Double Y, Tee, Swift T, Swift Y आदि ऐसे मोल्ड हैं जिनमें पंच क्रास साइड में निकलते हैं। ऐसे में लोड व अनलोड करते समय पंच को बैलेंस करना काफी जोखिम भरा काम होता है क्योंकि एक पंच का वजन ही डेढ़ सौ से ढाई सौ किलोग्राम तक हो सकता है, ऊपर से क्रेनों की यह दशा है कि एक भी क्रेन ठीक से आपरेट नहीं करती है। कई क्रेन ड्राप करती हैं जिनको अप करो और वह खुद ब खुद डाउन होती चली जाती हैं। हल्का सा लेफ्ट लो तो वह बहुत ज्यादा लेफ्ट की तरफ चली जाती है हल्का सा अप करो तो बहुत ज्यादा ऊपर उठ जाती है यानी कि सारी क्रेन हैंग करती हैं लेकिन मैनेजमेंट उस पर कोई सुनवाई नहीं करता और ना ही उनका ठीक से मेंटीनेंस कराता है। कई बार बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं हो गई क्रेनों से।
एक बार मैं मोल्ड लगा रहा था तो मेरे साथ में जो सीनियर टेक्नीशियन था जिनको बाबा बास्कीनाथ कहते हैं और वह कंपनी के सबसे पुराने मोल्ड चेंजर है उन्होंने हल्का सा क्रेन को उठाया लेकिन क्रेन खुद ब खुद ऊपर उठती चली गई और इतनी उठती चली गई कि उसने जंजीर को तोड़ दिया और मशीन को हिला दिया। एक बार उन्हीं बाबा बास्कीनाथ से वही क्रेन आपरेट करते समय जब उन्होंने क्रेन को ऊपर उठाया तो वह इतनी ऊपर उठती चली गई कि उसने क्रेन के पूरे वायर को ही तोड़ दिया।
एक सबसे ज्यादा खतरनाक हादसा होते-होते तब बचा जब 10 टन की क्रेन से 1000 टन की मशीन पर रावत और कुंवर सिंह मोल्ड लगा रहे थे। मोल्ड का वजन लगभग 8 टन था। जैसे ही उन्होंने मोल्ड को ऊपर उठाया और इतना ऊपर उठा कर ले गए कि मोल्ड को मशीन के अंदर डाला जा सके लेकिन अचानक से क्रेन ड्राप हो गई और पूरा का पूरा मोल्ड क्रेन सहित काफी तेज गति से जमीन पर आ गिरा। पास में खड़ा कुंवर सिंह बाल-बाल बच गया और रावत भी। लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी मैनेजमेंट ने कोई सुनवाई नहीं की, बस क्रेन का थोड़ा सा मेंटेनेंस करवा दिया और क्रेन ठीक हो गई। लेकिन एक बार मैं संजीत प्रजापति जो कि सीनियर टेक्नीशियन हैं, के साथ रात की शिफ्ट में मोल्ड लगा रहा था। मैंने मोल्ड को लगाने से पहले रेडी किया और रेडी करते समय मेरी गलती से मेरी 4mm की Elen Kee मोल्ड के अंदर चली गई तथा मोल्ड को लाक करते समय मोल्ड में दब गई और पूरा पंच और मोल्ड डैमेज कर दिया हालांकि आधा घंटा काम करके उसे ठीक किया जा सकता था और किया भी गया। लेकिन मैनेजमेंट ने उस पर इतना बड़ा बवाल खड़ा किया जैसे कोई मर गया हो। मुझे सुबह 7ः30 बजे बोला गया कि आप 10 बजे तक रुककर जाएंगे लेकिन मैंने और संजीत ने रुकने से यह कहकर मना कर दिया कि मैं दोपहर में आकर मिल लूंगा और हम लोग वापस आ गए लेकिन दोपहर में फोन पर फोन करके मुझे कंपनी में बुलाया गया मेरी नींद हराम करके एक माफीनामा लिखवाया गया और मैंने लिखा भी।
यह घटना इस बात का द्योतक है कि मालिकों और प्रबंधकों की नजरों में मजदूरों की जान की कोई कीमत है ही नहीं। उन्हें सिर्फ उन चीजों से ज्यादा प्यार है जिससे उन्हें मुनाफा हो सके। उनके लिए चाहे किसी मजदूर की जान जाए या फिर घातक दुर्घटना में अंग-भंग ही क्यों न हो जाए।
रावत सभी मोल्ड चेंजरों का सुपरवाइजर है और कुंवर सिंह के साथ रावत भी मरने से बाल-बाल ही बचा था लेकिन फिर भी वह हमेशा मैनेजमेंट का ही चाटुकार बना रहा। मरने से बचने के बाद भी मैनेजमेंट उसका माई-बाप बना हुआ है और मेरे से जो Elen Kee से डैमेज हुए मोल्ड पर मुझे पानी पी पीकर कोस रहा था कि मेरा ध्यान कहां रहता है, कि तुम जैसे लोगों के कारण ही कंपनी घाटे में जा रही है, कि बेटे तुम से काम नहीं होगा घर बैठ जाओ, कि तुम कंपनी द्रोही हो, तुम कंपनी का भला नहीं चाहते इसीलिए लापरवाही से काम करते हो आदि आदि।
अब बात करते हैं फैक्टरी के अंदर व्यवस्था और रखरखाव की तो इस बात को पहले ही इंगित किया जा चुका है कि मशीनों की हालत काफी जर्जर है। प्लांट के अंदर मौजूद लगभग 50 प्रतिशत मशीनों की हालत जर्जर है। किसी भी मशीन की डेली देखरेख नहीं होती क्योंकि उत्पादन और काम का दबाव इतना ज्यादा है कि मजदूर आते ही काम पर लग जाता है और जाते समय तक लगा ही रहता है। प्लांट में मजदूरों की संख्या लगातार कम की जा रही है। एक आपरेटर से दो या तीन मशीनें चलवाई जा रही हैं और इतना ही नहीं अगर किसी आपरेटर का माल खराब होता है या Rework लगता है तो वह खुद मैनेजमेंट को जवाब देकर ही वापस जाएगा अन्यथा बिना पेमेंट के ओवरटाइम में रुककर Rework वाला माल छांटकर जाएगा। वह शिफ्ट खत्म होने के बाद भी बाहर नहीं जा सकता। प्लांट में मौजूद बहुत सारी मशीनें ऐसी हैं जिनमें से हाइड्रोलिक आयल हमेशा टपकता रहता है और उसे ठीक करने का काम हम मोल्ड चेंजरों का होता है लेकिन हम लोगों को उस आयल लीकेज को ठीक करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है क्योंकि प्लांट के अंदर इसे ठीक करने के उपकरण अक्सर उपलब्ध ही न होते। कभी-कभी टेफलान टेप और PVC टेप ही कम हो जाता है।
अगर बात करें सैलरी की तो 12 घंटे से कम किसी की ड्यूटी नहीं है और सैलरी सीधे 12 घंटे 26 दिन के हिसाब से लगाते हैं। 8 घंटे का कोई चक्कर नहीं है। 15 हजार रुपये से लेकर 24 हजार तक सैलरी है मोल्ड चेंजरों की। अति कुशल मजदूर भी 32 हजार से ज्यादा तनख्वाह नहीं पाता।
यह सब इसीलिए हो रहा है क्योंकि प्रिंस पाइप एंड फिटिंग्स लिमिटेड हरिद्वार प्लांट में मजदूरों की कोई यूनियन नहीं है। मजदूरों के असंगठित होने के कारण मैनेजमेंट मजदूरों पर हावी है। जिस दिन मजदूर इस ओर सोचना शुरू कर देंगे तब वह अपनी न सिर्फ यूनियन खड़ी करेंगे बल्कि अपने संघर्षों के दम पर अपने हक-अधिकार भी पा लेंगे और साथ ही अपने साथ हो रहे शोषण पर भी अंकुश लगाएंगे। -दीपक आजाद, हरिद्वार
जिंदगी और मौत के बीच जूझते प्रिंस पाइप एंड फिटिंग्स लिमिटेड हरिद्वार के मजदूर
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को