अमेरिका में ठंड से मरते बेघर लोग

पूंजीवादी व्यवस्था में सबसे विकसित देश अमेरिका में वहां के नागरिकों की क्या स्तिथि है उसे अभी हाल की कुछ घटनाओं से समझा जा सकता है। जब क्रिसमस और नई साल के जश्न के बीच ठंड की वजह से मरते बेघर लोगों की खबरें आ रही हैं। यह कोई इस साल की बात नहीं है वरन हर साल ऐसी मौतों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

वाशिंगटन के सीएटल और किंग काउंटी में इस साल 270 लोग ठंड से मर गये जो पिछले 20 सालों में एक रिकॉर्ड है। सेन फ्रैंसिस्को में 2022 में 200 लोगों की मौत हुई है। अरिजोना के मैरिकोपा काउंटी में 2022 में 700 लोगों की मौत हो चुकी है जो 2021 से 42 प्रतिशत ज्यादा है।

अमेरिका की 12 प्रतिशत आबादी वाले राज्य करलीफोर्निआ में 30 प्रतिशत आबादी बेघर लोगों की है। दक्षिणी करलीफोर्निआ के सन डिएगो में 2020 में 357 लोगों, 2021 में 536 लोगों की मौत हुई थी वहीं 2022 में 7 प्रतिशत वृद्धि के साथ 574 लोगों की मौत हुई है।

ये अमेरिका के कुछ राज्यों के आंकड़े हैं। यही स्तिथि बाकी राज्यों की जहाँ हर साल बेघर लोग जो फुटपाथ पर रहते हैं या फिर गाड़ियों के अंदर सोते हैं, ठंड से मर जाते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक 2016 से 2020 तक ऐसे लोगों के मरने की संख्या में 77 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। इस दौरान 18,000 लोग मारे गये हैं।

ये मौतें सामान्य मौतें नहीं हैं। ये व्यवस्था जनित हत्याएं हैं। अमेरिका आज पुरी दुनिया में सबसे ज्यादा हथियारों पर खर्च करता है। उसका सैन्य बजट दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य बजट है। लेकिन वही अमेरिका अपने नागरिकों को रहने के लिए घर तक उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है। रूस युक्राइन युद्ध में वह लाखों डॉलर खर्च रहा है लेकिन कुछ हज़ार डॉलर खर्च कर वह अपने लोगों की जान नहीं बचा सकता। एक तरफ उसके हथियार दुनिया में आम लोगों की हत्याएं कर रहे हैं वहीं उन हथियारों पर होने वाला खर्च उसके लोगों की ठंड से जान बचा सकता था।

दुनिया में लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर 150 से ज्यादा देशों में अमेरिका ने अपने सैन्य अड्डे बना रखे हैं लेकिन खुद अपने यहाँ “लोकतंत्र” के “लोक” बेघर हैं, भयंकर ठंड में मर जा रहे हैं इसकी उसे रत्ती भर परवाह नहीं है। सबसे ज्यादा विकसित पूंजीवादी देश भी ऐसी ही व्यवस्था कायम कर सकता है जहाँ एक तरफ दौलत के अम्बार हैं, जहाँ के पूंजीपति दुनिया के शीर्ष पूंजीपतियों में गिने जाते हैं। जहाँ की तेल, वाहन और हथियार उद्योग की विशालकाय कम्पनियां पुरी दुनिया की दौलत पर कब्ज़ा कर रही हों, लूट मार मचा रही हों वहीं दूसरी तरफ देश में भयानक गरीबी पसरी हो। जब सारे संसाधनों के बावजूद लोग बेघर हों और ठंड तथा भूख से मर जाने को अभिशप्त हों तो ऐसी पूंजीवादी व्यवस्था आदर्श नहीं हो सकती और इसे बदलना लाज़िमी है।

अंतर्राष्ट्रीय

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