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अमेरिका ने अपने एक सैन्य विमान से 104 अप्रवासी भारतीयों को जंजीरों में जकड़ कर बेहद अपमानजनक तरीके से और देश की सम्प्रभुता का मखौल बनाते हुये वापस भारत भेज दिया है।
5 फ़रवरी की दोपहर जब दिल्ली में विधानसभा हेतु मतदान चल रहा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाकुम्भ में गंगा स्नान कर रहे थे, उस समय पंजाब में अमृतसर के संत रविदास अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर घटित इस घटनाक्रम की मीडिया कवरेज भी सरकार ने नहीं होने दी; ये दिन भी शायद इसीलिये चुना गया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव और मोदी के गंगा विहार की चर्चा में राष्ट्रीय शर्म का यह घटनाक्रम दब जाये और इजारेदार पूंजी द्वारा संचालित मुख्य धारा के मीडिया ने भरसक यही कोशिश की भी।
गौरतलब है कि अमेरिका के घोर नस्लवादी और फ़ासीवादी प्रवृति के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शपथ ग्रहण के बाद मैक्सिको, कोलम्बिया, गुआटेमाला, ब्राज़ील, पेरु और होन्दुरास में भी ठीक इसी तरह इन देशों के अप्रवासियों को जंजीरों में बांधकर सैन्य विमान से वापस भेजा गया है। लेकिन मैक्सिको, कोलम्बिया और ब्राज़ील की सरकार ने इसका सख्त प्रतिरोध करते हुये अमेरिकी सैन्य विमान को अपनी धरती पर नहीं उतरने दिया। कोलम्बिया द्वारा जहां यात्री विमान भेज अपने लोगों को ससम्मान देश वापस लाया गया वहीं मैक्सिको के निष्कासित किये गये लोग सडक रास्ते से अपने देश वापस पहुंचे। मीडिया जिस नरेंद्र मोदी का पिछले 10 से अधिक सालों से पूरी दुनिया में डंका बजा रहा है वो अमेरिकी साम्राज्यवादियों के समक्ष खड़े होने का इतना साहस भी नहीं जुटा सके।
रोजी-रोटी की खातिर अपना देश छोड़कर अमेरिका जाने वाले इन अप्रवासियों को डोनाल्ड ट्रंप अवैध, अपराधी, घुसपैठिया, एलियन और न जाने क्या-क्या कह रहे हैं। ऐसा कर वे अमेरिकी समाज में बढ़ती बेरोजगारी और अन्य समस्याओं का ठीकरा इन पर फोड़ रहे हैं। ट्रंप असल में अमेरिकी नागरिकों को बरग़ला रहे हैं और नस्लीय नफरत फैलाकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा कर रहे हैं। अमेरिका जाने वाले अप्रवासी मेहनत कर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं और अमेरिका की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देते हैं। उन्हें वैध-अवैध में बांटकर डर का माहौल कायम करना फ़ासीवादी राजनीति है और उनके साथ अपराधियों जैसा सलूक करना उनके मानवाधिकारों का सरासर उल्लंघन है।
अप्रवासियों को अपराधी बताने वाले ट्रंप यह नहीं बताते हैं कि इंग्लैंड और यूरोप से किस वैध रास्ते और तरीके से इनके पूर्वज अमेरिका पहुंचे थे! गौरतलब है कि करीब 500 साल पहले पूंजीवाद के उदय काल में अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड पर इंग्लैंड और अन्य यूरोपिय उपनिवेशवादियों ने वहां के बाशिंदों का भयंकर क़त्लेआम कर कब्ज़ा किया था।
बताया जा रहा है कि भारत के 50 लाख से अधिक लोग इस समय अमेरिका में रह रहे हैं और इनमें से 7 लाख से भी अधिक 'अवैध' रुप से वहां रह रहे हैं। इसी तरह कनाडा, ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड और खाड़ी देशों में भी बड़ी संख्या में भारतीय रह रहे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले साल तो युद्ध के जोखिम के बावजूद इसराइल जाने के लिये भी भारतीय नौजवान लाइनों में खड़े नज़र आये। ऐसा इसलिए हो रहा है कि भारत में बेरोजगारी भयंकर रुप धारण कर चुकी है और रोजी रोटी व बेहतर भविष्य की खातिर देश के युवा इन देशों का रुख कर रहे हैं। कोई कागजी औपचारिकताएं पूरी कर और कोई इसके बिना ही कोई जुगाड़ लगाकर जोखिम मोल लेकर विदेश का रुख कर रहा है। फ़ासीवादी मोदी सरकार इस भयावह बेरोजगारी से लोगों का ध्यान भटकाने के लिये हिंदू-मुसलमान कर रही है। वो कहीं बांग्लादेशी घुसपैंठ और कहीं रोहिंग्या का मुद्दा उछाल रही है; और अपनी बारी में यही जहर बुझी फ़ासीवादी राजनीति डोनाल्ड ट्रंप भी कर रहे हैं।
लेकिन डोनाल्ड ट्रंप और मोदी जैसे लोग ये नहीं बताते कि जब पूंजीपति दुनिया में कहीं भी जाकर बिज़नेस करने को आज़ाद हैं, खुद सरकारें इन्हें आमंत्रित करती हैं तो फिर मजदूर-मेहनतकश जनता के लिये रोजी-रोटी की खातिर एक देश से दूसरे देश जाने पर इतनी बाधाएं और प्रतिबंध किसलिए ?