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2011 की जनगणना के आधार पर धार्मिक जनगणना के आंकड़े 25 अगस्त को जारी कर दिये गये। इन धार्मिक जनसंख्या के आंकड़ों को इस समय जारी करना निश्चित तौर पर उनकी फासीवादी प्रवृत्ति को ही प्रदर्शित करता है जिसका प्रतिनिधित्व मोदी सरकार करती है और जो भारतीय समाज को एक खतरनाक फासीवादी राज्य ‘हिन्दू राष्ट्र’ की ओर धकेलने का प्रयास कर रही है। जाहिर है मोदी सरकार को इन साम्प्रदायिक फासीवादी कार्यवाहियों को एकाधिकारी पूंजीपतियों की ओर से काफी छूट मिली हुई है और कारपोरेट मीडिया का बड़ा हिस्सा उसके इस फासीवादी अभियान का सबसे बड़ा प्रचारक प्रसारक है। <br />
जैसा अपेक्षित था आंकड़ों की गहराई में जाये बगैर उसका गंभीरता से अध्ययन किये बगैर कारपोरेट मीडिया के एक बड़े हिस्से ने <img alt="" src="/newsImages/150831-092249-17 1.bmp" style="width: 262px; height: 172px; border-width: 3px; border-style: solid; margin: 3px; float: right;" />अपने अखबारों के पहले पन्ने पर रिपोर्ट लगाई- ‘घट रहे <span style="font-size: 13px; line-height: 20.7999992370605px;">हैं</span> हिन्दू, बढ़ रहे हैं मुसलमान’। ‘दि हिन्दू’ जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर हिन्दी, अंग्रेजी या अन्य प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने एक खतरे की पूर्वसूचना की भांति धार्मिक जनसंख्या के आंकड़ों के बारे में बेहद साम्प्रदायिक व तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत मिथ्या प्रचार को हवा दी। <br />
धार्मिक जनसंख्या गणना का वास्तविक सच क्या है? इसे दो धार्मिक सम्प्रदायों के बीच शत्रुता पूर्ण प्रतिद्वन्द्विता के रूप में प्रदर्शित करना कहां तक उचित है और ऐसा करने के पीछे क्या निहित उद्देश्य है? इन सब बातों पर गौर करने से पहले आइए थोड़ा वास्तविक हकीकत को समझने का प्रयास करें।<br />
2011 के धार्मिक जनगणना के आंकड़ों में बताया गया है कि भारत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 121.09 करोड़ थी। इस जनगणना के अनुसार भारत में 96 करोड़ 63 लाख हिन्दू हैं जो कि कुल जनसंख्या का 79.8 प्रतिशत हैं। भारत में मुसलमानों की संख्या 17 करोड़ 22 लाख है जो कि कुल जनसंख्या का 14.23 प्रतिशत है। इसके अलावा अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों में ईसाईयों की संख्या 2.78 करोड़ (2.3 प्रतिशत), सिक्ख 2.08 करोड़(1.77 प्रतिशत), बौद्ध 0.84 करोड़(0.7 प्रतिशत),जैन 0.45 करोड़(0.4 प्रतिशत) अन्य धर्म व मत (ओ.आर.पी.) 0.79 करोड़(0.7 प्रतिशत) हैं। <br />
2001 से 2011 के दौरान हिंदू जनसंख्या 16.76 प्रतिशत की दर से बढ़ी जबकि मुसलमानों की जनसंख्या 24.6 प्रतिशत की दर से <img alt="" src="/newsImages/150831-092314-17 2.bmp" style="width: 308px; height: 128px; border-width: 3px; border-style: solid; margin: 3px; float: right;" />बढ़ी। दोनों धार्मिक समुदायों की आबादी की वृद्धि दर में गिरावट आयी है। मुसलमानों के मामले में यह गिरावट ज्यादा तीखी है। 1990 से 2001 के बीच हिंदुओं की वृृद्धि दर 19.92 प्रतिशत रही जबकि इसी दौरान मुसलमानों की वृद्धि दर 29.52 प्रतिशत थी। साफ जाहिर है कि जहां हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर में 3.16 प्रतिशत की गिरावट आयी वहीं मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में यह गिरावट 4.9 प्रतिशत रही। 2001 से 2011 के बीच मुसलमानों की संख्या में यह गिरावट एक रिकार्ड है। इस दौर में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर अब तक के जनगणना आंकड़ों के हिसाब से सबसे न्यूनतम है। इन्हीं धार्मिक जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से यह आंकड़ा भी उभर कर सामने आया है कि 2050 तक मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि मौजूदा रुझान(ज्तमदक) के हिसाब से स्थिर हो जायेगी यानी जनसंख्या वृद्धि दर शून्य हो जायेगी। दूसरे अर्थों में मरने व पैदा होने वालों की संख्या बराबर हो जायेगी। <br />
जनसंख्या आंकड़ों से यह बात भी उजागर हुई कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार और बेहतर जीवन की अपेक्षाओं के चलते जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट देखने को मिली है। केरल जहां शिक्षा का स्तर बेहतर रहा है। वहां मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में अन्य राज्यों की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आयी है। ज्यादातर दक्षिण के राज्यों में, जहां शिक्षा व पूंजीवादी विकास का स्तर उत्तर भारत के राज्यों की अपेक्षा बेहतर है, में जनसंख्या वृद्धि दर में उत्तर भारत की तुलना में कमी आयी है। <br />
इसी तरह केरल में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर (हिन्दुओं से अधिक होने के बावजूद) उत्तर भारत के कई राज्यों की जनसंख्या<img alt="" src="/newsImages/150831-092335-17 3.bmp" style="width: 140px; height: 214px; border-width: 3px; border-style: solid; margin: 3px; float: right;" /> वृद्धि दर से कम है। <br />
जनगणना 2001 से 2011 के आंकड़ों से यह बात भी सामने आयी है कि मुसलमानों में कन्या शिशु अनुपात हिंदुओं के मुकाबले बेहतर है। मुसलमानों में लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 951 महिलायें हैं। यह अनुपात 2001 में 936 था। <br />
इसी तरह हिंदुओं में 2001 से 2011 की जनगणना के मुताबिक 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या 939 रही है जोकि 2001 में 931 थी। <br />
इस तरह आंकड़ों से साफ जाहिर है कि महिलाओं के अनुपात में 2001 से 2011 के बीच हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में ज्यादा सुधार आया है। महिला पुरुष लिंग अनुपात का यह आंकड़ा इस धारणा या मिथक को तोड़ता है कि मुसलमानों में हिंदुओं की तुलना में महिलाओं के प्रति ज्यादा क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता है क्योंकि महिला पुरुष लिंगानुपात के आंकड़ों का सम्बन्ध या महिला-पुरुष में संख्या का अंतर सीधे कन्या भ्रूण हत्या से जुड़ता है। आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कन्या भ्रूण हत्या के मामले में हिंदू मुसलमानों से बहुत आगे हैं। <br />
इसके साथ ही जनसंख्याविदों का यह भी मानना रहा है कि हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों में तेज जनसंख्या वृद्धि दर का कारण अधिक उर्वरता(फर्टिलिटी) के साथ-साथ हिन्दुओं की तुलना में कम मृत्यु दर या अधिक जीवन प्रत्याशा रही है जिसको अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। <br />
कुल मिलाकर 2001 से 2011 के जनगणना आंकड़ों ने मुसलमानों की तेज वृद्धि दर के मिथक को ध्वस्त कर दिया है लेकिन झूठ को <img alt="" src="/newsImages/150831-092524-17 4.bmp" style="width: 286px; height: 271px; border-width: 3px; border-style: solid; margin: 3px; float: right;" />सच बनाने व आंकड़ों की बाजीगरी में माहिर हिन्दू फासीवादियों ने इन जनगणना आंकड़ों को भी मुसलमानों के प्रति घृणा अभियान के हिस्से के बतौर मनमाने तरीके से प्रचारित करना शुरू कर दिया। <br />
इसके साथ ही यह भी एक लक्ष्य है कि मौजूदा समय में जनगणना आंकड़ों को प्रकाशित करने के पीछे बिहार विधान सभा चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा कर चुनावी लाभ हासिल करना है। बिहार में 2001 से 2011 के बीच हिन्दू आबादी की वृद्धि दर 24.6 प्रतिशत रही जबकि मुसलमानों की वृद्धि दर 27.95 रही। 2001 में जहां हिन्दू आबादी बिहार में 83.3 प्रतिशत थी वहीं 2011 में यह 82.7 प्रतिशत है। भाजपा व संघ मंडली इसी आंकड़े को बढ़ा चढ़ाकर बताकर ‘हिन्दुत्व पर खतरा’ के नाम से साम्प्रदायिक <span style="font-size: 13px; line-height: 20.7999992370605px;">ध्रुवीकरण</span> पैदा कर बिहार में चुनावी वैतरिणी पार करना चाहती है। <br />
जाहिर है कि हिन्दू फासीवादियों के फासीवादी अभियान में कारपोरेट मीडिया उसका जोड़ीदार बना हुआ है। मोदी राज में मीडिया को मिले हजारों-करोड़ के विज्ञापन ही आज कारपोरेट मीडिया की पक्षधरता तय कर रहे हैं। <br />
2001 से 2011 के जनगणना के आंकड़ों का वास्तविक सच उद्घाटित कर हिन्दू फासीवादियों के अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के प्रति मिथ्या प्रचार व घृणा अभियान को ध्वस्त करना आज एक महत्वपूर्ण कार्यभार है।