इजरायल द्वारा फिलीस्तीन पर ढाई जा रही बर्बरता में मारे जाने वाले निर्दोष नागरिकों-बच्चों की तादाद हर बीते दिन के साथ बढ़ती जा रही है। ऐसे में विश्व शांति के नाम पर बनायी गयी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ एक बार फिर महत्वहीन साबित हो रही है। वैसे यह संस्था द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवादियों द्वारा या उनकी शह पर छेड़े गये युद्धों को रोकने में अक्सर ही असफल होती रही है। यह बात ही दिखलाती है कि मौजूदा साम्राज्यवादी-पूंजीवादी दुनिया में कितनी भी शक्तिशाली संस्था बना ली जाए वह युद्धों का खात्मा नहीं कर सकती। युद्धों के खात्मे के लिए साम्राज्यवाद-पूंजीवाद का खात्मा जरूरी है।
मौजूदा इजरायल-हमास युद्ध के मसले पर 18 अक्टूबर को इजरायल की निन्दा करता हुआ पहला प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पेश हुआ जिस पर अमेरिका ने वीटो कर दिया। कुछ दिन बाद इजरायल की आत्मरक्षा से जुड़ा प्रस्ताव अमेरिका ने पेश किया जिस पर रूस-चीन ने वीटो कर दिया। रूस की तरफ से इजरायल की निन्दा करता प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पेश होने को पर्याप्त मत नहीं जुटा पाया अन्यथा अमेरिका इस पर भी वीटो कर देता। इस तरह संयुक्त राष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण निकाय सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर कोई प्रस्ताव पास नहीं हो सका। हां, संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में सीजफायर के लिए एक प्रस्ताव जरूर पास हुआ पर इस प्रस्ताव का अपील से ज्यादा कुछ खास अर्थ नहीं था।
संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में इजरायल के कब्जाकारी रवैय्ये के खिलाफ आज तक जितने प्रस्ताव पेश हुए हैं उनमें सब पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने वीटो किया है। इजरायल से जुड़े प्रस्तावों पर अमेरिका 46 बार तो रूस-चीन 2 बार वीटो कर चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र की महत्वहीनता तब और खुलकर सामने आ गयी जब इसके प्रमुख जनरल अंतोनियो गुतरास ने कह दिया कि 7 अक्टूबर को हमास का इजरायल का हमला निर्वात में नहीं हुआ है। यानी इन हमलों के लिए इजरायल का वर्षों का कब्जाकारी व्यवहार जिम्मेदार है। यद्यपि गुतरास ने हमास हमलों की भी निन्दा की। पर इस बयान पर इजरायल ने चिढ़कर गुतरास से न केवल इस्तीफे की मांग कर डाली बल्कि उन पर आतंक को समर्थन देने का आरोप भी मढ़ दिया। साथ ही संयुक्त राष्ट्र के लोगों के इजरायल में आने के लिए वीजा देने से भी इंकार कर दिया।
इजरायली शासकों का संयुक्त राष्ट्र के साथ यह बदमाशी भरा व्यवहार दिखलाता है कि इजरायली शासक अपने नरसंहारी मंसूबों के आगे किसी को कुछ नहीं समझते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने खिलाफ एक भी बयान को वे सहन करने को तैयार नहीं हैं।
इजरायली शासक जहां एक ओर गाजा पर निरंतर बम बरसा रहे हैं वहीं अब उसने अपने टैंक भी गाजा को तबाह करने के लिए उतार दिये हैं। पूरी दुनिया में जनता उसको कोस रही है पर इजरायली शासक शांति कायम करने को तैयार नहीं हैं वे फिलिस्तीन को पूरा हड़पने की फिराक में हैं। इसके लिए वे अस्पतालों पर बमबारी से भी बाज नहीं आ रहे हैं।
अमेरिकी व पश्चिमी साम्राज्यवादी इजरायल के साथ खड़े हैं तो रूस-चीन उसके खिलाफ। ऐसे में यह युद्ध भी रोकने में सुरक्षा परिषद विफल हो चुकी है। दुनिया भर की जनता का इजरायल के खिलाफ निरंतर बढ़ता संघर्ष ही अब इजरायल और अन्य पश्चिमी साम्राज्यवादियों के कदमों को रोक सकता है। इस संघर्ष के दबाव में ही शासक सीजफायर की पहल के लिए मजबूर किये जा सकते हैं।
इजरायल-हमास युद्ध और महत्व खोता संयुक्त राष्ट्र संघ
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