घर में दो साल से टीवी खरीदने की बात हो रही थी। लेकिन अब बच्चों ने जिद कर ली तो टीवी तो खरीदना ही था। किराये के मकान में रह रहा था जिसको मकान मालिक को बेचना था। वह मकान बिक जाता तो वह मकान खाली करना पड़ता। दो साल लग गये उस मकान को बिकने में। तो वह मकान खाली करना पड़ा। दूसरे मकान में आने के बाद बच्चों ने जिद कर ली अब टीवी खरीदो।
ऐसा नहीं था कि टीवी खरीदना पापा के लिए बहुत बड़ी समस्या हो या वह उनके बजट के बाहर हो। अलग-अलग साइजों व ब्रांडों के टीवी शोरूम में जाकर देख भी लिये थे। एच डी अल्ट्रा एच डी। 22 इंच से लेकर पूरी दीवार पर लगने वाले टीवी। टीवी शोरूम में जब भी पापा बच्चों के साथ जाते तो सेल्समैन अलग-अलग टीवी के अलग-अलग फीचर बताता। इसमें साउण्ड क्वालिटी ऐसे होगी और पिक्चर क्वालिटी ऐसी कि मानो हम खुद ही उस जगह पर मौजूद हैं जिस पिक्चर को हम देख रहे हैं।
लेकिन बच्चों के पापा के मन में तो कुछ और ही चल रहा था। ऐसा इसलिए कि वे एक मुस्लिम पृष्ठभूमि से आये थे। ‘मुस्लिम’ कलम से लिखने के बाद ऐसा लगता है कि अब आगे और कुछ बताने की जरूरत नहीं। इसके बाद मन कुछ खट्टा हो जाता है, फिर कुछ करने का मन नहीं करता। खैर! खट्टे मन से ही टीवी वाली बात अधूरी रह गयी है उसे तो पूरा कर ही लिया जाय।
लेकिन बच्चों के पापा के मन में कुछ और बातें घूम रही थीं। उनके मन में तो यही सवाल घूम रहा था कि अगर उन्होंने अल्ट्रा एच डी खरीद भी लिया तो उसमें वह क्या देखेंगे। क्या वह यह देखेंगे कि कैसे दिल्ली में मुसलमानों के घरों पर बुल्डोजर चलाया जा रहा है। कैसे मुसलमानों को मात्र मुसलमान होने के कारण मार दिया जा रहा है। क्या ये सब अल्ट्रा एच डी टीवी में देखना अच्छा लगेगा। टीवी में डोल्बी साउण्ड तो होगी लेकिन उसमें मरने वालों की चीखें सुनायी नहीं देंगी। या यह खबर देखने के लिए कि दंगों में मुसलमानों को मारा गया और अदालत ने सबूतों के अभाव में दंगाइयों को बरी कर दिया। खबर है कि हत्यारों के समर्थन में पंचायतें हो रही हैं कि गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। अतीक अहमद का इनकाउंटर लाइव टेलीकास्ट किया जा रहा है।
अल्ट्रा एच डी टीवी में कितना साफ-साफ दिखाया जा रहा है कि एक तरफ अतीक अहमद और उसके भाई का पोस्टमार्टम हो रहा है और दूसरी तरफ उनकी कब्रें खोदी जा रही हैं और बगल में उसके बेटे की कब्र भी दिखायी जा रही है। जब से यह खबर देखी है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति की नींद में सुबह की अजान से खलल पड़ता है तब से जब भी अजान की आवाज कानों को सुनायी पड़ती है तो ऐसा लगता है कि इस अजान से भी किसी को कुछ खराब तो लग ही रहा होगा।
90 के दशक में ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी पर हिन्दू और मुसलमान दोनों ने बड़े चाव से रामायण देखी। जब शबरी के झूठे बेर खाने का सीन टीवी पर आया था तो आखें नम सभी की हुई थीं क्या हिन्दू और क्या मुसलमान। लेकिन आज जब अल्ट्रा एच डी का जमाना है तो रामायण नहीं है बल्कि रामनवमी है और हर दिन एक डर होता है एक दंगा होने का। आज रामायण के राम या तो जय श्रीराम हो गये या सिया राम हो गये।
अदालतें, वकील, सबूत, गवाह, जांच एजेंसियां जज, सरकार सब मिलकर कुछ करना चाहें तो क्या नहीं हो सकता। हजारों साल पहले क्या हुआ था इसके सबूत तो मिल जाते हैं लेकिन 2002 के गुजरात नरसंहार के कातिलों के सबूत नहीं मिल सके। बिना आधारकार्ड के स्कूल में एडमिशन तक नहीं होता और रामलला विराजमान का बिना आधारकार्ड के मुकदमा भी दर्ज हुआ और उन्होंने मुकदमा जीत भी लिया।
सबूत, गवाह आज के आधुनिक ज्ञान के युग में बनाये भी जा सकते हैं और मिटाये भी जा सकते हैं और उसके अनुरूप फैसले भी किये जा सकते हैं। योगी जी ने तो ‘ठोक दो’ की आधुनिक तकनीक से सबूतों और गवाहों की जरूरत भी खत्म कर दी है। फिल्मों की बजाय अब असलियत में गाड़ी पलटते हुए या एनकांउटर होते हुए अल्ट्रा एच डी या उससे ऊंची तकनीक वाली स्क्रीन पर देख सकते हैं। देश की राजनीति ने एक ऐसा वर्ग भी पैदा किया है जो इस पर तालियां बजाता है। लेकिन ये हमेशा नहीं होगा कभी न कभी तो यह पिक्चर बदलेगी और ताली बजाने वाला वर्ग ही ‘ठोक दो, वालों को ठोक देगा’। समय जरूर बदलेगा।
-एक पाठक, फरीदाबाद