संविदा विद्युत कर्मचारियों का संघर्ष

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लखनऊ/ देश में जब भी मजदूरों पर संकट आया है तब उन्होंने अपने संघर्ष के बल पर विजय हासिल की है। आज देश की सड़कें सूनी और विपक्ष मौन है। पीड़ित वर्ग अपने काम के बाद या छुट्टियों में संघर्ष कर रहे हैं। चाटुकारितावादी श्रमिक संघ सरकार की गोद में खेल रहे हैं। यही वजह है कि आज मजदूरों का आर्थिक और मानसिक शोषण बड़े पैमाने पर हो रहा है। निजीकरण और छंटनी की बात नई नहीं है। देश में लगातार तमाम संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। कर्मचारियों की संख्या कम करने के लिए छंटनी के नाम पर कार्य से हटाया जा रहा है।
    
उदाहरण के तौर पर आप उत्तर प्रदेश के बिना सुरक्षा उपकरणों के जिंदगी और मौत से खेलते हुए बिजली आउटसोर्स कर्मचारियों को देख सकते हैं। गांव और शहरों को रोशन करने वाले विद्युत आउटसोर्स कर्मियां का शोषण सरकार एवं कार्पोरेशन प्रबंधन द्वारा लगातार किया जा रहा है जिसके कारण विद्युत आउटसोर्स कर्मचारियों में गहरा आक्रोश व्याप्त है। मध्यांचल प्रबंधन का ध्यान बिजली आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याओं की तरफ आकृष्ट करने हेतु उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ लखनऊ द्वारा ध्यानाकर्षण कार्यक्रम करने का निर्णय लिया गया। इसके तहत प्रदेश के सभी जनपदों में 1 फरवरी 2025 से बिजली के आउटसोर्स कर्मचारियों द्वारा निर्धारित कार्य के घंटे से एक घंटा अधिक कार्य किया गया। 3 फरवरी 2025 से 5 फरवरी 2025 तक विद्युत उपकेन्द्रों, उपखण्ड अधिकारी कार्यालयों, अधिशासी अभियन्ता कार्यालयों, अधीक्षण अभियन्ता कार्यालयों और मुख्य अभियन्ता कार्यालयों पर शाम 4 बजे के बाद विरोध सभाएं आयोजित की गईं। 6 फरवरी 2025 को मध्यांचल प्रबंध निदेशक कार्यालय 4 ए गोखले मार्ग लखनऊ पर सत्याग्रह किया गया। जहां हजारों की संख्या में विद्युत संविदा कर्मचारी मौजूद रहे।
    
सत्याग्रह के दौरान प्रबंधन और संघ पदाधिकारी के बीच वार्ता के दौरान काफी रस्साकसी चलती रही। आखिरकार मध्यांचल प्रबंध निदेशक भवानी सिंह खगारौत ने मध्यांचल के अंतर्गत आने वाले 19 जिलों में हो रही छंटनी प्रक्रिया पर रोक लगाने के आदेश निदेशक कारपोरेशन प्रशासन विकास चंद्र अग्रवाल को दिए। उन्होंने सभी मुख्य अभियंता वितरण को महा अक्टूबर 2024, नवंबर 2024 एवं दिसंबर 2024 में लगातार कार्यरत रहे संविदा कर्मियों को नई निविदा के अंतर्गत रखने के निर्देश दिए हैं। छंटनी प्रक्रिया पर रोक लगने से 8000 कर्मचारियों की रोजी-रोटी बच गई है। लेकिन 55 वर्ष का हवाला देकर कर्मचारियों को हटाने का आदेश कार्पोरेशन ने अभी वापस नहीं लिया है। इसके लिए संघ न्यायालय की शरण लेगा। कार्यक्रम में मध्यांचल के अंतर्गत आने वाले 19 जिलों के जिलाध्यक्षों, जिला कार्यकारिणी के पदाधिकारियों सहित लगभग दस हजार संविदा कर्मचारी मौजूद रहे। 
    
मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के कार्यक्षेत्र में मानक से कम कर्मचारियों को तैनात कर कार्य कराने, तैनात कर्मचारियों की कुल संख्या के लगभग 40 प्रतिशत भाग के बराबर कर्मचारियों की छंटनी करने, पूर्व में हुए समझौते का पालन न करने, मानक के अनुरूप सुरक्षा उपकरण न देने, 8 घंटे 26 दिन के स्थान पर 12 घंटे 30 दिन कार्य कराने, कार्य के दौरान बिजली की चपेट में आने या खम्भे से नीचे गिर कर घायल हुए कर्मचारियों का कैशलेस उपचार न कराने, उचित उपचार के अभाव में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की मृत्यु होने आदि समस्याओं से उ.प्र. के विद्युत संविदा कर्मचारी जूझ रहे हैं और लगातार संघर्ष कर रहे हैं। 
            -बदायूं संवाददाता 

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