एक बार फिर से देश में भारत बनाम इंडिया की बहस शुरू हो गयी है। पहले भी भारत बनाम इंडिया की बहस चलती रही है लेकिन इस बार सन्दर्भ पहले से अलग है।
पहले भारत बनाम इंडिया की बहस का सन्दर्भ होता था कि गांव में भारत बसता है जहां अशिक्षा है, गरीबी है, भुखमरी है, बेरोजगारी है और शहरों में इंडिया बसता है जहां अमीरी की चकाचौंध है, सुख सुविधाएं हैं (हालांकि शहरों की भी बड़ी आबादी बदहाल जीवन जी रही है)। जब इस सन्दर्भ में यह बहस होती थी तो देश के असमान विकास का पहलू सामने आता था जो समाज के संवेदनशील लोगों को विचलित कर देता था।
लेकिन आज जब देश के अंदर भारत बनाम इंडिया की बहस चल रही है तो इसका सन्दर्भ अलग है। अब इंडिया को गुलामी का प्रतीक माना जा रहा है और भारत को आजादी का। यह बहस तब शुरू हुई जब राष्ट्रपति महोदया को जी-20 की डिनर पार्टी में दिये गये निमंत्रण पत्र पर ‘प्रेसिडेंट आफ भारत’ लिखा गया। ऐसे ही इंडोनेशिया से जब प्रधानमंत्री के लिए निमंत्रण आया तो उस पर प्राइम मिनिस्टर आफ भारत लिखा हुआ था। जी-20 शिखर सम्मेलन में मोदी की डेस्क पर अंग्रेजी में भारत लिखा था।
जब भारत का संविधान बना तो आर्टिकल-1 में India that is Bharat लिखा गया यानी इंडिया और भारत दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर प्रधानमंत्री मोदी इंडिया की जगह भारत शब्द रखना चाहते हैं तो सबसे पहले संविधान की मूल प्रस्तावना में संशोधन करना पड़ेगा।
अभी जब संसद का विशेष सत्र 18 सितम्बर को बुलाने का तय हो चुका है तब मोदी की सेवा में जुटे पूंजीवादी प्रचार तंत्र में इस बात पर चिल्ल पों मची है कि प्रधानमंत्री मोदी संसद के विशेष सत्र में इस सम्बन्ध में कोई विधेयक पेश कर सकते हैं। उससे पहले मीडिया एक देश एक चुनाव को लेकर चिल्ल पों मचा रहा था कि मोदी ने विशेष सत्र इसलिए बुलाया है ताकि एक देश एक चुनाव की घोषणा कर सकें।
फिलहाल उस बात को लिया जाये जिसकी वजह से यह बहस शुरू हुई यानी इंडिया शब्द गुलामी का प्रतीक है और भारत शब्द आजादी का। प्रधानमंत्री मोदी 2014 से प्रधानमंत्री हैं लेकिन उनको कभी इस बात की याद नहीं आयी कि इंडिया शब्द गुलामी का प्रतीक है। बल्कि उन्होंने खुद कई सारी योजनाएं शुरू की थीं जिसमें इंडिया शब्द था जैसे मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया। अब जब 2024 के चुनाव आने वाले हैं तब उन्होंने एक नया शिगूफा बहस के लिए छोड़ दिया है। नये-नये शिगूफे छोड़ने में मोदी को महारत हासिल है और उसके बाद बाकी काम मोदी की सेवा में लगा पूंजीवादी प्रचारतंत्र कर लेता है और फिर मूल मुद्दे गायब हो जाते हैं।
अभी जब इंडिया बनाम भारत का शिगूफा छोड़ा जा रहा है तब इसके पीछे एक वजह विपक्षी दलों द्वारा अपने गठबंधन का नाम प्छक्प्। रखा जाना है जिसका नाम मोदी नहीं लेना चाहते लेकिन दूसरी वजहें भी हैं जिनसे मोदी जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं। इन वजहों में मणिपुर हिंसा का जारी रहना, अडानी के खिलाफ एक एन जी ओ OCCRP (Organized Crime and Corruption Reporting Project) की रिपोर्ट जारी होना। इसके अलावा मेहनतकश आवाम की बदहाल होती स्थिति, गरीबी, बेकारी कहीं समाज में चर्चा का विषय न बन जाये, इनसे भी वे ध्यान हटाना चाहते हैं।
अगर हम मोदी और भाजपा की ही मानें कि इंडिया गुलामी और भारत आजादी का प्रतीक है तो उत्तर प्रदेश में 2004 में सपा की सरकार में भाजपा के विधायकों ने इंडिया की जगह भारत नाम रखने के प्रस्ताव पर आपत्ति जताई थी और मोदी के शासन काल 2015 में भी गृह मंत्रालय ने इस पर सहमति नहीं दी थी। तब फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि इंडिया शब्द गुलामी का प्रतीक बन गया। इसके बाद 2020 में भी इंडिया की जगह भारत शब्द रखने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी।
दरअसल शहरों का नाम बदलने का शिगूफा अब काम नहीं कर रहा तो क्यों न देश का नाम ही बदल दिया जाये। और इसी बहाने जनता को आजादी का अहसास कराया जाये। लेकिन जिस साम्राज्यवाद से आजादी हासिल करने के लिए अकूत कुर्बानियां दी गयीं आज उन्हीं साम्राज्यवादियों के नेतृत्व वाली संस्था जी-20 के शिखर सम्मेलन को आयोजित करने पर इतराना और जनता की मेहनत की कमाई को लुटेरे साम्राज्यवादियों पर लुटाना देश की जनता को गुलामी के चंगुल में फंसाना ही है। आम जनता को उसकी रिहायश से उजाड़कर, उनके रोजगार को चौपट करके उसको आजादी का अहसास नहीं कराया जा सकता भले ही देश का नाम कुछ भी रख दिया जाये।
दरअसल मोदी जबसे केंद्र में सत्ता में आये हैं तबसे वे पूंजीपतियों की सेवा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। और कहीं जनता उनकी असलियत न समझ जाये इसके लिए वे ऐसा उन नारों की आड़ में कर रहे हैं जिनसे लगे कि वे यह सब कुछ जनता के लिए कर रहे हैं। श्रमेव जयते से लेकर किसानों की आमदनी दुगुना करना रहा हो या अन्य नारे हों सभी में वे जनता को यह अहसास दिलाने का प्रयास करते रहे हैं कि वे 18-18 घंटे काम जनता के लिए कर रहे हैं। जबकि असलियत में वे उन नारों के उलट पूंजीपतियों के लिए काम करते रहे हैं। और इसका परिणाम इस रूप में सामने आया है कि जहां पूंजीपतियों की पूंजी बढ़ती गयी है वहीं जनता की स्थिति बद से बदतर होती गयी है।
अब जब मोदी इंडिया की जगह भारत नाम रखना चाहते हैं तो यह उनके पूर्व के नारों के समान ही है और जनता को खोखली आजादी का अहसास कराना है। खोखली देशभक्ति पैदा करने की कोशिश है। एक दिन देश की जनता अपनी वास्तविक गुलामी के कारणों को समझेगी और देशी-विदेशी पूंजी के चाकर इन हुक्मरानों को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक अपनी वास्तविक आजादी को हासिल करेगी।
भारत बनाम इंडिया
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
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7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को