इंटरार्क मजदूरों का आंदोलन जारी

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मजदूरों के स्थानांतरण पर लगाई रोक

रुद्रपुर/ इंटरार्क कंपनी द्वारा 28 नेतृत्वकारी मजदूरों की सवैतनिक कार्यबहाली को लेकर आंदोलन जारी है। सनद रहे कि जिला प्रशासन की मध्यस्थता में हुये लिखित समझौते के तहत 3 अप्रैल 2023 को जब 28 मजदूर 3 माह की OD पूर्ण कर वापस लौटे और कंपनी के सिडकुल पन्तनगर और किच्छा प्लांट में कार्य पर उपस्थित हुये तो प्रबंधन ने उनकी कार्यबहाली ही नहीं की। बल्कि उनका गेट बन्द कर उत्तराखंड राज्य से बाहर नोयडा मुख्यालय में अविधिक रूप से स्थानांतरण कर दिया। जबकि उत्तराखंड राज्य के मॉडल स्टैंडिंग आर्डर और तदनुरूप इंटरार्क कंपनी के सत्यापित स्थाई आदेशों (स्टैंडिंग आर्डर) में स्पष्ट दर्ज है कि किसी भी मजदूर की पूर्व सहमति के बिना उसका उत्तराखंड राज्य से बाहर स्थानांतरण नहीं किया जा सकता है। ऐसा करना पूर्णतः अविधिक कृत्य है।                      
    

कोरोना काल में कंपनी मालिक द्वारा 195 मजदूरों का जुलाई 2020 में गेटबन्दी कर उत्तराखंड राज्य से बाहर चेन्नई, गुजरात आदि स्थानों पर स्थानांतरण कर दिया था। तब 7 जुलाई 2020 को उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा यूनियन की याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त 195 मजदूरों के उत्तराखंड राज्य से बाहर किये गए उक्त स्थानांतरण को अविधिक घोषित किया गया था। और उक्त स्थानांतरण पर रोक (स्टे) लगा दी थी। जिसके पश्चात उक्त 195 मजदूरों की एक माह पश्चात सवैतनिक कार्यबहाली हुई थी। उस समय इंटरार्क कम्पनी मालिक ने यूनियन तोड़ने के उद्देश्य से 195 मजदूरों की छंटनी की साजिश रची थी जिसे मजदूरों ने विफल कर दिया था।              
    

इस बार भी कंपनी मालिक ने छल-कपट की नीति के तहत पहले लिखित समझौता किया और पन्तनगर प्लांट और किच्छा प्लांट के मुख्य नेताओं को समझौते के तहत 3 माह की अवधि के लिए उत्तराखंड राज्य से बाहर विभिन्न साइटों पर OD पर भेजा। उन्हें OD के दौरान कंपनी की पॉलिसी के अनुसार भोजन, आवास व यात्रा आदि मद में निर्धारित भत्ते भी नहीं दिए। जनवरी माह 2023 का वेतन भी एक तिहाई काट दिया। इस अवधि का ओवर टाइम का भुगतान भी नहीं किया। कंपनी पालिसी के अनुसार उक्त मजदूरों को एडवांस भी न दिया गया। वापस लौटने पर साइट इंचार्ज द्वारा पास किये गए खर्चे हेतु बिलों में दर्ज धनराशि का भुगतान भी अभी तक नहीं किया गया है। उक्त अमानवीय व नीच हरकतों के द्वारा कंपनी मालिक उक्त नेतृत्वकारी मजदूरों की कमर को आर्थिक रूप से तोड़ देना चाहता था। OD पर भेजे गए पन्तनगर प्लांट के उक्त 21 मजदूरों को विगत करीब 15 माह से तो किच्छा प्लांट के 12 मजदूरों को करीब 12 माह से वेतन मिला ही नहीं है। 3 माह की व्क् के दौरान जो वेतन मिला उससे कहीं ज्यादा राशि मजदूरों की साइट पर अपने ऊपर खर्च हो गई। परिवार को सहयोग करने के स्थान पर उल्टा मजदूरों को परिजनों से ही अपने व्यक्तिगत खर्च को पैसे लेने पड़े या फिर कर्ज लेकर काम चलाना पड़ा। वास्तव में साइट पर भेजे गए उक्त 32 मजदूरों की आर्थिक स्थिति बहुत ही अधिक दयनीय हो चुकी है किन्तु उनके भीतर कभी भी घुटने न टेकने और हार न मानने के जज्बात कूट-कूट कर भरे हैं और मजदूर अभी भी बुलन्द इरादों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। कंपनी मालिक के बुरे इरादों पर पानी फेर रहे हैं।                                  
    

3 अप्रैल 2023 को 3 माह की OD पूरी करके वापस लौटे 32 मजदूरों में से 28 मजदूरों  की कंपनी में उनकी गेटबन्दी कर और उत्तराखंड राज्य से बाहर नोयडा मुख्यालय स्थानांतरण करने का फतवा जारी कर कंपनी का जालिम मालिक सोचता था कि आर्थिक रूप से कमजोर हो चुके मजदूर अब आंदोलन करने के नाम से ही घबराएंगे। और लाचारी में चुपचाप से कंपनी द्वारा दिया गया हिसाब स्वीकार करके घर को चल देंगे। किन्तु अपनी यूनियन के नेतृत्व में इंटरार्क मजदूरों ने फिर से आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। और कंपनी मालिक को बता दिया कि इंटरार्क मजदूर किस मिट्टी के बने हैं।                                   
    

इसके पश्चात दोनों प्लांटों की यूनियनों की संयुक्त आम सभा आयोजित की गई और आंदोलन करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। ALC, DLC, DM, ADM, SDM व कुमाऊं आयुक्त को ज्ञापन दिए गए। मजदूरों, महिलाओं और बच्चों ने अपने-अपने स्तर से प्रदर्शन किए। 7 मई 2023 को अम्बेडकर पार्क रुद्रपुर में महिलाओं के नेतृत्व में प्रतिरोध सभा करके और उसके पश्चात जिलाधिकारी आवास तक विशाल पदयात्रा निकालकर शक्ति प्रदर्शन किया गया और इंटरार्क कंपनी मालिक व शासन प्रशासन को दिखा दिया कि इंटरार्क मजदूर यूनियन के तेवर बिल्कुल भी नहीं बदले हैं।             
    

इसके पश्चात 26 मई 2023 को श्रमिक संयुक्त मोर्चा ऊधमसिंह नगर के बैनर तले इंटरार्क, PDPL एवं मैक्रोमेक्स सहित अन्य कंपनियों के मसले को हल करने को कलेक्ट्रेट रुद्रपुर के गेट पर एकदिवसीय धरना दिया गया। और ज्ञापन प्रेषित कर उक्त सभी कंपनियों के मसलों को प्राथमिकता देकर हल करने की मांग की गई। उस दौरान उपस्थित SDM ने कहा कि इंटरार्क मसले पर जिला प्रशासन द्वारा ALC को आदेश देकर मजदूरों की कार्यबहाली कराने को कह दिया है। बाकी कंपनियों के मसले को भी जिला स्तरीय कमेटी गठित कर वार्ता के माध्यम से हल करने का आश्वासन दिया। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन अपने उक्त वायदे पर कितना खरा उतरता है। अब तक का अनुभव यही रहा है पूरे देश की ही तरह यहां भी जिला प्रशासन अपने वायदों से मुकरता रहा है। छल-कपट की नीति के तहत झूठे वायदे करने और उससे मुकरकर मसले को लंबा खींचकर मजदूरों को थकाकर हताश करने की ही कोशिश की जाती रही है ताकि मजदूर आंदोलन से विमुख हो जाएं। इंटरार्क के मसले पर तो ADM की मध्यस्थता में हुये लिखित समझौते से खुद ADM और जिला प्रशासन ही मुकर गया। अपनी मध्यस्थता में हुये उक्त समझौते को लागू कराने को जिला प्रशासन द्वारा एक भी वार्ता नहीं बुलाई गई। उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा वर्ष 2020 में स्थानांतरण पर रोक (स्टे) लगाने को दिए गए आदेश को भी जिला प्रशासन ने नजरअंदाज कर दिया था। वार्ताओं के दौरान ALC व DLC ने लिखित में दर्ज किया था कि कंपनी प्रबंधन द्वारा उक्त 28 मजदूरों की गेटबन्दी करना और उक्त 28 मजदूरों सहित OD पर गए 32 मजदूरों का स्थानांतरण करने की कार्यवाही जिला प्रशासन की मध्यस्थता में हुये लिखित समझौते का उल्लंघन है। और कंपनी के प्रमाणित स्थाई आदेशों का घोर उल्लंघन है। साथ ही कंपनी प्रबंधन को उक्त मजदूरों की कार्यबहाली के निर्देश दिए गए। किन्तु कंपनी प्रबंधन पर इसका तनिक भी प्रभाव न पड़ा।         
    

आंदोलन से यह लाभ जरूर मिला कि आंदोलन के दबाव में ALC व DLC को वार्ताओं के दौरान प्रबंधन के विरुद्ध लिखना पड़ा जिसका लाभ हाईकोर्ट में मिला। क्योंकि यूनियन ने आंदोलन के साथ ही कानूनी संघर्ष के तहत हाईकोर्ट में याचिका लगाई और 24 मई 2023 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उक्त 32 मजदूरों के स्थानांतरण पर रोक (स्टे) लगा दी है। फिलहाल खबर लिखे जाने तक ALC ने आश्वासन दिया है कि 29 मई सोमवार तक सबकी कार्यबहाली करा दी जायेगी। 
    

मजदूर आंदोलन की अग्रिम रणनीति बना रहे हैं। मजदूरों को यह भी ध्यान रखना होगा कि असल में उनकी लड़ाई कंपनी में मजदूरों की व्यापक छंटनी करने की योजना के खिलाफ है। इस हेतु आपसी एकजुटता को अधिक मजबूत करने की जरूरत है।                    
    

कुल मिलाकर देखा जाए तो इंटरार्क मसले पर जिला प्रशासन और उत्तराखंड सरकार का रुख स्पष्ट रूप से रेखांकित कर रहा है कि नई श्रम संहिताओं के लागू होने के पश्चात शासन सत्ता पूंजी द्वारा श्रम पर बोले जा रहे हमलों पर न सिर्फ उदासीन होगी। बल्कि श्रम द्वारा पूंजी के विरुद्ध उठाई जाने वाली आवाज को बेरहमी से कुचला जायेगा। यह उसकी एक झलक मात्र है। नई श्रम संहिताओं के लागू होने के पश्चात स्थिति और अधिक गंभीर हो जाएगी। इस हेतु इंटरार्क मजदूरों सहित सभी कंपनियों के मजदूरों को व्यापक स्तर पर तैयारी करने और मानसिक रूप से तैयार रहने की जरूरत है।         -रुद्रपुर संवाददाता

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