टालब्रोस आटोमोटिव कम्पोनेंट लिमिटेड में मजदूरों का शोषण

/taalbros-automotiv-component-limited-mein-majadooron-kaa-shoshan

फरीदाबाद/ टालब्रोस ऑटोमोटिव कम्पोनेंट लिमिटेड, 14/1, मथुरा रोड, फरीदाबाद, 121003, हरियाणा में स्थित है। यह कम्पनी मारुति सुजुकी, हीरो होंडा, रेंज रोवर, हुंडई, टाटा इत्यादि के लिए पार्ट/गैस किट आदि बनाती है। इस कंपनी में लगभग 1500 मजदूर काम करते हैं जिसमें स्थायी मजदूरों की संख्या लगभग 300 है बाकी लगभग 1200 मजदूर ठेकेदारी, अप्रेंटिस, नीम ट्रेनी आदि के तहत काम करते हैं जिनमें महिला मजदूर भी हैं।
    
कम्पनी में पावर प्रेस, वीसीएम, सीएनसी, हाइड्रोलिक प्रेस, आटोमेटिक प्रेस आदि मशीनें हैं। कम्पनी में लगभग 10 विभाग हैं- मोल्डिंग, हीरो लाइन, क्वालिटी, एमएलएस, टूल रूम, मेंटीनेंस, स्टोर, आदि। 
    
सबसे ज्यादा कठिन काम मोल्डिंग में होता है। यहां अत्यधिक गर्मी में मजदूरों को काम करना पड़ता है। कम्पनी के द्वारा मजदूरों के लिए काम करने के स्थानों पर ताजी हवा के लिए कोई सुविधा नहीं है। मैनेजमेंट मशीनों पर मजदूरों के ऊपर प्रोडक्शन का हमेशा दबाव बनाता रहता है जिस कारण अत्यधिक गर्मी में मशीनों के अंदर से गर्म होते हुए भी पार्ट्स निकालते समय अक्सर ही मजदूरों के हाथ जलते हैं। और प्रेस मशीन में मजदूरों के साथ हाथ कटने जैसी घटनाएं भी होती रहती हैं। 
    
इस तरह की शोषण की परिस्थिति में अधिकतर मजदूर ज्यादा दिन तक नहीं टिकते हैं। केवल पुराने मजदूर ही किसी तरह जिंदा रहने भर के वेतन (रु. 11,000) में काम करने को मजबूर हैं। कंपनी मैनेजमेंट के लिए कंपनी में मजदूरों के साथ दुर्घटनाएं आम बात हो गई हैं। 
    
कम्पनी में मजदूरों के लिए कुल तीन शौचालय हैं जिनकी हालत सफाई ना होने से बहुत बुरी है वहीं मैनेजमेंट के शौचालय या बाथरूम की सफाई हर रोज होती है जिससे वह गंदा नहीं रहता है। चमकता रहता है। और मजदूरों के शौचालय में यूरिनल का पाईप खुला ही रहता है। पेशाब करते वक्त पूरे शरीर पर छीटें पड़ती हैं। सुबह लैट्रिन जाने के लिए भी इंतजार करना पड़ता है।
    
कंपनी द्वारा ठेकेदारी के मजदूरों को मासिक छुट्टियां (ई एल, सी एल आदि) भी उन्हें नहीं दी जाती हैं। ना ही मजदूरों को आई कार्ड, सैलरी स्लिप, गेट पास आदि उपलब्ध कराया जाता है। यहां तक कि कई मजदूरां को काम करते हुए दस साल हो जाने के बाद भी कंपनी द्वारा उन्हें स्थायी  नहीं किया गया है और ना ही आज तक उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, बच्चों की शादी, पुरुषों के साईकिल, महिलाओं के लिए सिलाई मशीन आदि, कोई दुर्घटना होने आदि के लिए लेबर वेलफेयर फोरम का फार्म ही भरा है। जो मजदूर फार्म भरने को कहता है तो उसे गेट से बाहर निकालने की धमकी देकर चुप करा दिया जाता है। 
    
कम्पनी में मजदूरों को जीवित इंसान ना समझते हुए सेफ्टी मानकों को धता बताते हुए मजदूरों से खतरनाक मशीनों पर काम करवाया जाता है। जिसके कारण अक्सर ही कैमिकल से जलने, हाथ कटने के कारण मौत व हाथ कटने जैसी दुर्घटनाएं होती रहती हैं और कंपनी मैनेजमेंट ऐसी स्थिति में भी मजदूरों पर और अधिक प्रोडक्शन देने का दबाव बनाता रहता है। 
    
कंपनी मैनेजमेंट मजदूरों को मशीन में लगे एक बोल्ट के समान समझता है। एक मजदूर को जब मन किया काम पर लगाया और खराब हो जाने के बाद निकाल कर फेंक दिया और नया बोल्ट मंगाकर लगा लिया।
    
खतरनाक मशीनों पर काम करने के बाद भी मजदूरों को मात्र 11,000 रु. वेतन ही दिया जाता है। जिसमें मजदूर अपने परिवार को इस महंगाई के दौर में बस किसी तरह जिंदा रख सकते हैं। अपने बच्चों को अच्छी पढ़ाई-लिखाई, बीमार पड़ने पर अच्छा ईलाज, अच्छा खान-पान, बूढ़े मां-बाप की देखभाल नहीं कर सकते।
    
महिला मजदूरों की स्थिति तो और भी ज्यादा बुरी है। उनसे तो 8-9 हजार रुपये में ही काम करवाया जाता है जबकि हरियाणा सरकार के अनुसार हेल्पर मजदूरों का न्यूनतम वेतन भी 10,924 रु. है। लेकिन टालब्रोस कंपनी में महिला मजदूरों से वह जिंदा रहने भर का वेतन भी ना देकर उनसे बेगारी करवाई जा रही है।
    
कंपनी में अधिकतर ठेकेदारी के तहत रखे गए मजदूरों से ही खतरनाक मशीनों पर काम करवाया जाता है। जिसकी जिंदगी में हमेशा खतरे की घंटी बजती रहती है। खराब मशीनों की समय पर सर्विस/रिपेयरिंग नहीं होने के कारण आम मजदूरों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जाता है।
    
इन सभी समस्याओं के खिलाफ टालब्रोस कंपनी के मजदूरों को एकजुट होकर संघर्ष करने की जरूरत है।
    
जरूरत है कि मजदूर अपनी आने वाली पीढ़ियों, अपने बच्चों के जीवन की सुरक्षा, उनकी पढ़ाई-लिखाई, अच्छा खान-पान और सामाजिक सुरक्षा के लिए संघर्ष करें, एकजुट हों और आगे बढ़ें। क्योंकि उनके अपने साथ हो रहे शोषण-उत्पीड़न को खत्म करने के लिए उन्हें ही अपनी पहलकदमी दिखाते हुए अपनी आवाज बुलंद करनी होगी।
         -फरीदाबाद संवाददाता

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।