टाटा का खूनी बही खाता

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1. आखिरकार टाटा का निधन हो गया। वही टाटा जिन्होंने मोदी और भाजपा को सत्ता में लाने के लिए भूमिका निभाई थी। 2012 में टाटा ने अपने पुराने सेवक कांग्रेस से तंग आकर कांग्रेस को नीतिगत लकवा (Policy Paralysis)मारे जाने का आरोप लगाया था। कुख्यात नीरा राडिया प्रकरण इन्हीं टाटा से जुड़ा था।

2. टाटा ने ब्रिटिश जमाने से अब तक सार्वजनिक संपत्ति के एक हिस्से को लूट खसोटकर इसे ट्रस्ट के रूप में निजी संपत्ति के रूप में संचित कर इसका छोटा सा हिस्सा दान कर दिया। 

3. इसी दान के लिए मीडिया, राजनेताओं, बुद्धिजीवियों ने उन्हें संत, महान परोपकारी घोषित करके टाटा के नमक का कर्ज अदा कर दिया। आखिर वे सिर से पैर तक टाटा नमक से सने हुए हैं।

4. टाटा समूह इजरायल के नरसंहारी बुनियादी ढांचे के कई घटकों का उत्पादन करता है। इसमें हथियार, बैंकिंग सेवायें, बख्तरबंद वाहन, क्लाउड कम्प्यूटिंग ढांचा आदि शामिल हैं।

5. टाटा, अडाणी, रिलायंस सरीखे समूह फिलिस्तीन में इजरायली कब्जे वाले इलाके में कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, सैन्य और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में निवेश किये हुए हैं। निर्दोष फिलिस्तीनियों के खून में इनके हाथ सने हैं।

6. टाटा ने पं.बंगाल में नैनो कार के कारखाने के लिए सिंगूर में किसानों-आदिवासियों से जबरन जमीनें छीनीं। ढेरों लोगों की जान लेने के बाद अंत में इसने सिंगूर से गुजरात अपना कारखाना स्थानांतरित कर लिया। 

7. टाटा के स्टील, ऑटो मोबाइल, चाय बागानों से कपड़ा उत्पादन तक के कारखानों का इतिहास मजदूरों के निर्मम शोषण से भरा पड़ा है। 

8. टाटा के कारखानों के लिए भूमि अधिग्रहण में राज्य द्वारा कई राज्यों में ढेरों आदिवासियों-किसानों का कत्लेआम किया गया।

9. टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज रेलवे के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली कम्पनी बतायी जाती है। जिस दिन रतन टाटा की मौत की खबर आयी उसी दिन टीसीएस ने एक महिला को नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उसने अपने मैनेजर के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करायी। कांचीपुरम श्रम न्यायालय द्वारा यौन उत्पीड़न मामले में महिला के खिलाफ निर्णय सुनाने के बाद टीसीएस ने 11 वर्ष से कार्यरत महिला को काम से निकाल दिया। महिला इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट गयी है जिसने निष्कासन पर अंतरिम रोक लगा दी है।

10. आजादी के बाद से अब तक जो लोग आंदोलनों में मारे गए, कुचले गए, दमन-उत्पीड़न का शिकार हुए उसमें एक बड़ी भूमिका टाटा की भी है। यह आज के लिए भी सच है। वे टाटा के इस घृणित कृत्य को हमेशा याद रखेंगे।

आलेख

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।