
कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। और जब 2 अक्टूबर गांधी जयन्ती के दिन पीके (प्रशांत किशोर ‘‘पाण्डे’’) ने अपनी जन सुराज पार्टी की घोषणा की तो यही कहावत चरितार्थ हुयी। महात्मा गांधी और बाबा साहेब अम्बेडकर की दुहाई देते हुए इस पार्टी की स्थापना की गयी है। महात्मा गांधी के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हुए प्रशांत किशोर ने घोषणा की कि उनकी पार्टी जब सत्ता में आयेगी तो वह बिहार में नीतिश सरकार द्वारा की गयी शराबबंदी को खत्म कर देगी। 2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन प्रशांत किशोर (संक्षेप में पीके) की यह घोषणा गांधीवाद को दी गयी श्रद्धांजलि थी। अब देखने वाली बात है कि पीके अम्बेडकरवाद के प्रति कैसे अपनी पक्षधरता दिखाते हैं। शायद बिहार में अपनी पदयात्रा के दौरान पीके को यह ब्रह्म सत्य प्राप्त हुआ हो कि यदि वे शराब बंदी हटा देंगे तो उनकी पार्टी लोकप्रियता के शीर्ष को छू लेगी। वैसे उन्होंने यह ब्रह्म ज्ञान भी हासिल किया होगा कि जनकल्याण के लिए जो धन चाहिए वह तो शराब पर लगाये गये टैक्स से ही आ सकता है। इसलिए तो गुजरात और बिहार को छोड़कर सभी राज्य शराब के टैक्स से ‘‘जन कल्याण’’ करते हैं। पीके को यह ब्रह्म ज्ञान पैदल यात्रा से हासिल हुआ होगा कि शराब से आम जनों का दोहरा कल्याण होता है। शराब पीने से पहला कल्याण और फिर शराब के टैक्स से सरकार द्वारा किया जाने वाला दूसरा कल्याण ‘‘जन कल्याण’’ होता है।
पीके को जैसे शराब के बारे में ब्रह्म ज्ञान हासिल हुआ ठीक वैसे ही उन्हें उससे पहले दूसरों को चुनाव लड़ाते-लड़ाते एक और ब्रह्म ज्ञान हासिल हो गया था। यह ब्रह्म ज्ञान था कि जब वे दूसरों को, ऐरे-गैरे को सत्ता दिलवा सकते हैं तो वह खुद भी सत्ता हासिल कर सकते हैं। मोदी, राहुल, नीतिश कुमार न जाने-जाने किस-किस को उन्होंने ‘‘गुरू मंत्र’’ दिये। गुरू मंत्र देते-देते उन्हें समझ में आ गया कि ‘‘चाणक्य’’ बनने से ज्यादा फायदा चन्द्रगुप्त मौर्य बनने में है। जो ठाठ राजा के होते हैं वो ठाठ वजीर के कहां होते हैं। फिर ऐसा वजीर जिसे राजाओं के दर-दर भटकना पड़ता हो, की हालत तो हमेशा ही खस्ता रहेगी।
पीके के साथ शराबबंदी वाले प्रकरण के साथ जातिवाद वाले मुद्दे पर भी ‘‘खेला’’ हो गया। बिहार के राजनैतिक गुरूओं को वे जातिवादी होने की गाली दे रहे थे तो फिर किसी सयाने गुरू ने उसकी जात बता दी। पीके की जात का खुलासा हुआ नहीं कि जनसुराज की पोल खुलने लगी। पीके ने नया दांव चला और किसी दलित नौकरशाह को अपनी पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। पीके ने कभी मोदी की जीत के लिए ‘‘चाय पे चर्चा’’ का दांव खेला था अब दलित नौकरशाह को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर पीके ने अपनी जात पर बिहार में चर्चा न होने का दांव चला है। ये दांव चलता है कि नहीं यह समय ही बतायेगा।
नया मदारी अपना मजमा लगाने की कोशिश कर रहा है पर ये पुराने मदारी हैं कि उसका मजमा जमने ही नहीं दे रहे हैं।