हरियाणा के चुनाव में भाजपा की जीत अप्रत्याशित है। इसकी अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीके से व्याख्या कर रहे हैं। तब मन में एक सवाल तो बनता है कि भाजपा जीत गयी तो उसके जीत के कारण बताये जा रहे हैं और हार गयी होती तो हार के कारण। ऐसा लगता है कि पहले किसी की हत्या कर दो और फिर कारण खोजे जायें कि उसकी किन कारणों से हत्या हुई। क्योंकि हत्या को सही साबित करना है।
कुछ ऐसा ही हाल मोदी और अमित शाह की जोड़ी का है। एक मजबूत चीज जब पैदा होती है तो दूसरी मजबूत चीजों को खत्म करके ही पैदा होती है। वही हाल आजकल हिन्दुस्तान में हो रहा है। एक-एक करके इन्होंने लोकतंत्र के खंभों को खत्म कर दिया है। विधायिका जिस पर ये खुद बैठे हैं, और न्यायपालिका। ये बात आज कहने के जरूरत नहीं है। आस्था से बड़ा कुछ भी नहीं है। हरियाणा में इनके चुनाव जीतने के बाद चुनाव आयोग पर जो भरोसा या आस्था थी, वह भी खत्म हो गयी है।
ऐसा पहले भी होता रहा है। मुगल काल के सबसे मजबूत शासक औरंगजेब ने पचास साल तक केन्द्रीकृत शासन के तौर पर शासन कायम किया लेकिन उसकी मौत के बाद पूरा मुगल साम्राज्य टुकड़ों में विभाजित हो गया। ऐसा ही सम्राट अशोक के साथ हुआ उसकी मुत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया। कुछ ऐसा ही हाल अब मोदी के शासन काल में हो रहा है। मोदी आये तो हिटलर की तरह सत्ता में चुनकर लेकिन एक-एक करके उन्होंने लोकतंत्र की जमीन खोद दी। लोकतांत्रिक व्यवस्था अभी बची हुयी है लेकिन लोकतंत्र खत्म हो चुका है क्योंकि लोगों का विश्वास डिग चुका है।
अगर बिना चुनाव आयोग की मिली भगत केे हरियाणा में बीजेपी की जीत हुयी है तो फिर ये नये सवाल खड़ा करता है। फिर ये समाज के जातिगत विश्लेषण की बात करता है। भाजपा को कुल 40 प्रतिशत वोट मिले। कुल आबादी में 10 प्रतिशत आबादी ब्राहमणों की है। ये सभी दस प्रतिशत वोट भाजपा को मिले। दलितों की आबादी 21 प्रतिशत है और दलित आरक्षित 17 सीटों में से 8 सीटें भाजपा ने जीतीं लगभग आधी तो दलित आबादी का आधा हिस्सा तो भाजपा के साथ खड़ा है क्योंकि इसके अलावा भी दलित आबादी है। भाजपा के 40 प्रतिशत में ये 15 दलित और शेष 15 पिछड़ी जातियों का है, ये सब मिलाकर 40 प्रतिशत बन जाता है। भाजपा के अनुसार ही मुस्लिम वोट की भाजपा को जरूरत नहीं। एक खास बात और है वह भी बिना आंकड़े के कि भाजपा कितनी भी महिला विरोधी हो और पतियों से ज्यादा वोट पत्नियों ने भाजपा को दिये हैं। एक सतायी हुयी कौम भी सताने वाली की मददगार बन सकती है, इसे देखने के लिए इजराइल के यहूदी सामने हैं।
- एक पाठक, फरीदाबाद