
आजकल जब रतन टाटा के निधन से पूंजीवादी मीडिया बहुत दुखी है तब कुछ बात नीरा राडिया के बारे में भी होनी ही चाहिये।
नीरा राडिया, ये नाम नवंबर 2010 में तब यकायक चर्चा में आया था जब ओपन मैगजीन एवं आउटलुक नाम की दो पत्रिकाओं ने नीरा राडिया के साथ कुछ राजनेताओं, पूंजीपतियों और पत्रकारों से फोन पर हुई बातचीत के कुछ अंश प्रकाशित कर दिये थे। इन आडियों टेपों के उजागर होने से पता चला कि नीरा राडिया वैष्णवी कम्युनिकेशन के नाम से एक पब्लिक रिलेशन संस्था चलाती हैं और पूंजीवादी घरानों के लिये लॉबिंग करती हैं। इस लॉबिंग में नेताओं, अफसरों और पत्रकारों को घूस देना, महंगे गिफ्ट देना, दूसरे लालच देना और भांति-भांति के तरीकों से गोटी सेट करना इत्यादि सभी कुछ शामिल था।
जिस समय ये मामला उजागर हुआ उस समय महोदया यूनिटेक ग्रुप, वेदांता रिसोर्सेज, कन्फेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्रीज, जी एम आर ग्रुप, रिलायंस इंडस्ट्रीज और टाटा ग्रुप इत्यादि के लिये लॉबिंग कर रही थी।
इन आडियो टेपों के साथ 2 जी स्पेक्ट्रम की बंदर बांट के लिये डी एम के नेता ए राजा को टेलीकाम मिनिस्टर बनवाने में नीरा राडिया की भूमिका भी उजागर हुई। पूरे प्रकरण में इनकी जिन लोगों से फोन पर बातचीत हुई उसमें ए राजा के अलावा कनिमोझी, अटल बिहारी वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य, वाजपेयी सरकार में उड्यन मंत्रालय संभाल चुके अनंत कुमार एवं कुछ नामी पत्रकार- बरखा दत्त, शंकर अय्यर, शालिनी सिंह, जहांगीर पोचा और वीर सांघवी इत्यादि शामिल थे। इन पत्रकारों को पैसा देकर अखबारों में लेख लिखवाये गये थे ताकि एक खास पक्ष में माहौल बनाया जा सके।
उसी दौरान 15 नवम्बर, 2010 को प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई कि इस मामले से संबंधित सभी आडियो टेपों को सार्वजनिक किया जाये। तब फिर रतन टाटा ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और याचिका लगाई कि इन टेपों में उनकी कुछ निजी बातचीत हैं अतः इनको सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट ने रतन टाटा को राहत प्रदान करते हुये सभी आडियो टेपों को सार्वजनिक नहीं होने दिया। इसके बाद 20 मई, 2015 को सुबूतों की कमी का हवाला देते हुये नीरा राडिया को छोड़ दिया गया और 13 साल की जांच के बाद 21 सितम्बर, 2022 को सी बी आई ने सुप्रीम कोर्ट में बयान दिया कि इस मामले में किसी तरह की आपराधिकता का पता नहीं चलता।
और इस तरह पूंजीवादी व्यवस्था के विभिन्न अंगों - न्यायालय, जांच एजेंसी और सरकार ने न सिर्फ नीरा राडिया और रतन टाटा को साफ बचा लिया अपितु पूंजीवादी व्यवस्था में भ्रष्टाचार का स्रोत खुद ये इजारेदार पूंजीपति हैं, इस सच्चाई को भरसक दबाकर पूंजीवादी व्यवस्था की भी रक्षा की।