मोहन भागवत, मोदी, शाह, योगी, सरमा धार्मिक ध्रुवीकरण के माहिर खिलाड़ी हैं। कोई भी ऐसा मौका नहीं होता है जहां ये अपनी चाल से बाज आते हैं।
अगले वर्ष इलाहाबाद (बदला हुआ नाम प्रयागराज) में महाकुम्भ मेले का आयोजन होना है। यह एक धार्मिक आयोजन है और इसकी सदियों पुरानी परम्परा है। इस मेले में गैर हिन्दुओं के प्रवेश पर योगी के पहले फरमान का एक ही मतलब था कि वहां आम मुसलमान छोटी-बड़ी दुकानदारी के लिए न जाये। अब नया फरमान है कि कुम्भ मेले में उन्हीं पुलिस वालों की ड्यूटी लगेगी जो कि मांसाहार न करते हों। कहीं ये फरमान योगी कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं पर भी लागू कर देते तो पता लगता कि लाखों की संख्या कुछ हजार में ही सिमट जाती। योगी ने बड़ी ही धूर्तता के साथ मांसाहार को सदाचार से जोड़ दिया है। कभी सावन के महीने में तो कभी नवरात्र में ये मांस बिक्री पर प्रतिबंध लगाते हैं।
हिन्दू ब्राह्मणवादी मूल्यों में मांसाहार को गलत ठहराया जाता है। यद्यपि भारत सहित दुनिया भर के अधिकांश हिन्दू न केवल शौक से मांसाहार करते हैं बल्कि कई धार्मिक अनुष्ठानों में पशुबलि का प्रचलन है। देश के कई भागों में मछली को पूजा में चढ़ाया जाता है। अब क्योंकि मांसाहार देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों में आम प्रचलन में है और उन्हें किसी न किसी बहाने निशाने पर लेना है इसलिए मोदी-योगी जैसे धार्मिक-राजनैतिक पाखण्डी मांसाहार को निशाने पे लेते रहते हैं। कोई इनको जाकर बताये कि मांसाहार या शाकाहार का नैतिकता, सदाचार से कोई लेना-देना नहीं है। कोई इनको जाकर बताये कि दुनिया में अहिंसा का सिद्धान्त देने वाले महात्मा बुद्ध मांसाहारी थे और दुनिया को फासीवाद की आग में झुलसाने वाला हिटलर शाकाहारी था। वैसे मोदी, योगी भी घोषित तौर पर शाकाहारी हैं।
इसे भी पढ़ें :