उत्तराखण्ड : घर-दुकान-फड़ सबको जमींदोज करती सरकार

आजकल उत्तराखण्ड में धामी सरकार के निर्देश पर चारों ओर बुलडोजर गरज रहा है। योगी सरकार का बुलडोजर धामी सरकार को इतना पसंद आया कि लगता है उत्तराखण्ड की बड़ी आबादी का आशियाना, रोजी-रोटी छीन कर ही उसे चैन मिलेगा। बुलडोजर वैसे तो अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरज रहा है पर इसके शिकार 30-40 वर्षों पुराने मकान-दुकान सब बन रहे हैं। यह शहरों में सड़कों पर किनारे फड़-खोखे भी उजाड़ रहा है तो वन ग्रामों, रेलवे लाइन के किनारे की बसावट भी तोड़ रहा है। पूरे प्रदेश में बुलडोजर से हाहाकार मचा है और सरकार मानो अपनी ही जनता से जंग लड़ रही है। 
    

जब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वनों में अवैध अतिक्रमण के बहाने मजारों पर बुलडोजर चलाने व मजार जिहाद के साम्प्रदायिक राग को छेड़ा तो लोगों को लगा था कि कुछ मजार तोड़ मुख्यमंत्री अपना हिन्दू वोट बैंक साध संतुष्ट हो जायेंगे। पर मुख्यमंत्री को तो मानो जमींदोज होती इमारतों की मिट्टी की खुशबू, बिलखती जनता का मातम इतना रास आ गया कि उन्होंने पूरे प्रदेश में हर विभाग को अतिक्रमण हटाने का आदेश दे दिया। राज्य स्तर पर अतिक्रमण हटाओ अभियान का एक प्रभारी तक नियुक्त कर दिया। जिलाधिकारियां को रोजाना अतिक्रमण हटाने की रिपोर्ट देने को कह दिया गया। 
    

ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री को पता न हो कि उत्तराखण्ड की एक बड़ी आबादी सालों से बगैर मालिकाने वाली भूमि पर रह रही है। कोई बस्ती रेलवे लाइन के किनारे वन भूमि पर बसी है तो ढेरों इलाके नजूल व जंगलात की भूमि पर बसे हैं। सिंचाई विभाग से लेकर पीडब्ल्यूडी की सालों की छूटी जमीन पर बड़ी आबादी सालों से बस चुकी है। ऐसे में जरूरत तो इस बात की थी कि ‘जहां झुग्गी वहां मकान’ के नारे को जमीन पर उतारते हुए लोगों को उनकी बसावट का मालिकाना हक दिया जाता। पर बहुमत से विधानसभा चुनाव जीती धामी सरकार इस कदर घमंड में चूर है कि उसे लगने लगा है कि जनता ने उसे नहीं चुना है बल्कि वे राजा हैं और उसे जनता को चुनना है। और इसी सोच से वो सरकारी भूमि मुक्त कराने का तुगलकी अभियान छेड़ अपनी जनता को ही खदेड़ने में जुट गयी। 
    

जंगल में स्थित मजार-मंदिरों से लेकर लालकुआं में 4000 लोगों की नगीना बस्ती एक झटके में उजाड़ दी गयी। अभी भी लालकुआं-रामनगर-जसपुर-खटीमा-हरिद्वार आदि सब जगह हर रोज बुलडोजर चलाने की खबरें, टूटते मकानों-टूटती दुकानों की तस्वीरें आ रही हैं। नगीना बस्ती बचाने, टूटती मजारों को बचाने जब कुछ लोग हाईकोर्ट गये तो हाईकोर्ट ने भी पीड़ित लोगों का पक्ष सुनने से इंकार कर याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट बीते वर्ष हल्द्वानी के बनभूलपुरा मामले से ही आम जनता के हितों को नजरंदाज कर रहा है। 
    

आखिर धामी सरकार अपनी ही जनता को इस बड़े पैमाने पर उजाड़ कर क्या करना चाहती है? दरअसल धामी सरकार का एजेण्डा उत्तराखण्ड को पर्यटन राज्य के रूप में विकसित करना है। इसके लिए उसे चौड़ी सड़कें चाहिए। इन सड़कों के किनारे उसे फड़-खोखे नहीं पांच सितारा रेस्टोरेंट चाहिए। जंगलां में उसे वन ग्राम-खत्ते नहीं घूमते चीते-तेंदुए चाहिए। ऐसे में धामी सरकार सालों से बसे लोगों, उनके रोटी-रोजगार को जमींदोज कर रही है। इस जमींदोज करने की कार्यवाही में अपनी जनता का खून बहाने से भी उसे गुरेज नहीं है। 
    

भाजपा-संघ के लोग जिस फासीवादी मानसिकता से संचालित होते हैं उसमें जनता उनके लिए एक कलपुर्जे-मोहरे से अधिक कुछ नहीं होती। जनता का अपने विभाजनकारी एजेण्डों से वोट हासिल कर ये ताकतें उसे जानवरों की तरह हांकने में कोई कसर नहीं छोड़ती। जाहिर है ये सब कुछ वे अपने आका पूंजीपतियों की सेवा में ही करती हैं। उत्तराखण्ड में भी अतिक्रमण हटाओ अभियान दरअसल पूंजीपतियों की चाकरी के लिए ही है। 
    

हाईवे पर गरीब फड़-खोखे वाले घूमने आये पूंजीपतियों की औलादों का मजा किरकिरा करते हैं तो वन विभाग से लेकर बाकी विभागों की बसावट वाली जगहें आज भारी मूल्य वाली हो चुकी हैं। इन पर बड़े-बड़े मॉल, शॉपिंग काम्प्लेक्स से लेकर कालोनियां बसायी जा सकती हैं। यानी जनता को खदेड़ कर इस भूमि को बिल्डरों-पूंजीपतियों को सौंपा जा सकता है। रेलवे के किनारे तो खैर उसे नई लाइनें बिछानी ही हैं। यही वजह है कि वनभूलपुरा हल्द्वानी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बावजूद धामी सरकार सरकारी भूमि को जबरन रेलवे की करार दे किसी तरह बड़ी आबादी को उजाड़ना चाह रही है। उस जमीन से रेलवे व सरकार भारी कमाई कर सकते हैं। जगह-जगह खदेड़ी जाती आबादी के पुनर्वास की कोई उम्मीद इस सरकार से करना तो बेमानी सी ही है। 
    

पूंजीवादी विकास का यह आम परिणाम होता है कि गरीबों को खदेड़ कर चमचमाती इमारतें खड़ी कर ली जाती हैं। जो इमारतें बनाते हैं उनकी झुग्गी भी उजाड़ दी जाती है। उत्तराखण्ड आजकल इसी पूंजीवादी विकास की धामी की जिद का शिकार हो रहा है। इस जिद में धामी सरकार मजदूर-मेहनतकशों के साथ कुछ मध्यमवर्गीय लोगों को भी उजाड़ने में गुरेज नहीं कर रही है। 
    

बुलडोजर विकास की इस जिद का जनता जगह-जगह मुकाबला कर रही है। कहीं-कहीं वह कुछ राहत पाने में सफल भी हो रही है। जरूरत है कि जनता ज्यादा बड़े पैमाने पर एकजुटता कायम कर यह हकीकत सामने ला दे कि लाखों मुट्ठियांं की ताकत को कोई बुलडोजर नहीं ढहा सकता। उनके आगे बुलडोजर खुद जमींदोज हो जाते हैं।

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।