क्या आपको पता है..?
कि वो आपके खिलाफ,
मनमाने फैसले क्यों ले रहे हैं..?
क्या आपको पता है..?
आपके धरनों, प्रदर्शनों, हड़तालों से भी,
उनके कानों पर जूं क्यों नहीं रेंग रही..?
क्या आप जानते हैं कि
उन्हें किसान, मजदूर, श्रमिक,
कर्मचारियों की जरा भी फिक्र क्यों नहीं है..?
शायद आपको नहीं पता..!
पर उन्हें पता है, अच्छी तरह..!
उन्हें पता है कि
जब उन्हें जरूरत पड़ेगी,
तुम्हारे वोट की तो वे तुम्हारे धर्म के
सबसे बड़े रक्षक होने का दावा ठोकेंगे..!
और तुम मान जाओगे..!
उन्हें पता है कि
वोट के समय छोटे-मोटे धार्मिक या
जातीय दंगे करवाकर तुम्हें बांट देंगे..!
और तुम भीगी बिल्ली की तरह,
बैठ जाओगे उनकी गोद में..!
उन्हें पता है..!
उन्होंने तुम्हारी नसों में,
धार्मिक गन्धभक्ति भर दी है..!
वे जब चाहे इस्तेमाल कर लेंगे..!
उन्हें पता है कि
तुम्हें सिखाने वाली मीडिया,
उन्हीं की है वो जो चाहेंगे..!
वैसा सिखाया जाएगा तुम्हें..!
उन्हें पता है कि
उन्होंने तुम्हारे बीच में,
कुछ दल्ले, रंगे सियार,पत्तलचाट,
छोड़ रखे हैं जो तुम्हें..!
समय समय पर धर्म, जाति की
अफीम की खुराक देते रहते हैं..!
उन्हें पता है कि
तुम आज जो रोजगार,
महंगाई पर चिल्ला रहे हो..!
तुम्हें राम मंदिर, धारा-370 बताकर
फुसला लिया जाएगा..!
उन्हें पता है कि
जब समय आएगा तब वे,
आसानी से तुम्हारी एकता को तोड़ लेंगे..!
उन्हें अच्छी तरह पता है कि
आज तुम्हारा धर्म और जाति,
किसान, मजदूर, श्रमिक है..!
पर वोट के समय तुम..!
ये जाति-धर्म छोड़कर,
उसी नशे में कूद जाओगे..!
उन्हें पता है कि
जब उन्हें वोट की जरूरत होगी,
तब कोई पुलवामा, कारगिल होगा..!
और फिर बालाकोट करके,
तुम्हारी देशभक्ति की भावना को
वोट में तब्दील कर लिया जाएगा..!
उन्हें सब पता है, पर तुम्हें नहीं..!
जागो..!
क्या आपको पता है..? -प्रमोद जांगड़ा
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को