क्या आपको पता है..? -प्रमोद जांगड़ा

क्या आपको पता है..?
कि वो आपके खिलाफ,
मनमाने फैसले क्यों ले रहे हैं..?
क्या आपको पता है..?
आपके धरनों, प्रदर्शनों, हड़तालों से भी,
उनके कानों पर जूं क्यों नहीं रेंग रही..?
क्या आप जानते हैं कि
उन्हें किसान, मजदूर, श्रमिक,
कर्मचारियों की जरा भी फिक्र क्यों नहीं है..?
शायद आपको नहीं पता..!
पर उन्हें पता है, अच्छी तरह..!
उन्हें पता है कि
जब उन्हें जरूरत पड़ेगी,
तुम्हारे वोट की तो वे तुम्हारे धर्म के
सबसे बड़े रक्षक होने का दावा ठोकेंगे..!
और तुम मान जाओगे..!
उन्हें पता है कि
वोट के समय छोटे-मोटे धार्मिक या
जातीय दंगे करवाकर तुम्हें बांट देंगे..!
और तुम भीगी बिल्ली की तरह,
बैठ जाओगे उनकी गोद में..!
उन्हें पता है..!
उन्होंने तुम्हारी नसों में,
धार्मिक गन्धभक्ति भर दी है..!
वे जब चाहे इस्तेमाल कर लेंगे..!
उन्हें पता है कि
तुम्हें सिखाने वाली मीडिया,
उन्हीं की है वो जो चाहेंगे..!
वैसा सिखाया जाएगा तुम्हें..!
उन्हें पता है कि
उन्होंने तुम्हारे बीच में,
कुछ दल्ले, रंगे सियार,पत्तलचाट,
छोड़ रखे हैं जो तुम्हें..!
समय समय पर धर्म, जाति की
अफीम की खुराक देते रहते हैं..!
उन्हें पता है कि
तुम आज जो रोजगार,
महंगाई पर चिल्ला रहे हो..!
तुम्हें राम मंदिर, धारा-370 बताकर
फुसला लिया जाएगा..!
उन्हें पता है कि
जब समय आएगा तब वे,
आसानी से तुम्हारी एकता को तोड़ लेंगे..!
उन्हें अच्छी तरह पता है कि
आज तुम्हारा धर्म और जाति,
किसान, मजदूर, श्रमिक है..!
पर वोट के समय तुम..!
ये जाति-धर्म छोड़कर,
उसी नशे में कूद जाओगे..!
उन्हें पता है कि
जब उन्हें वोट की जरूरत होगी,
तब कोई पुलवामा, कारगिल होगा..!
और फिर बालाकोट करके,
तुम्हारी देशभक्ति की भावना को
वोट में तब्दील कर लिया जाएगा..!
उन्हें सब पता है, पर तुम्हें नहीं..!
जागो..!    
 

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।