क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन का आठवां सम्मेलन 24-25 जून 2023 को उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में आएशा पैलेस में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।
सम्मेलन की शुरुआत 24 जून को प्रातः 8 बजे झंडारोहण के साथ शुरू हुई। संगठन के अध्यक्ष पी पी आर्या ने झंडारोहण किया। झंडारोहण की कार्यवाही के बाद प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच की तरफ से ‘‘मेरा रंग दे बसंती चोला’’ गीत प्रस्तुत किया गया। इसके बाद अपने अध्यक्षीय संबोधन में पी पी आर्या ने कहा कि आज जब हम संगठन का आठवां सम्मेलन करने जा रहे हैं तब संगठन को बने पच्चीस साल पूरे हो गए हैं। संगठन अपने पच्चीस साल की यात्रा में तमाम उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए आगे बढ़ा है। संगठन जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों तथा जनवादी, संवैधानिक अधिकारों के लिए क्षमताभर संघर्ष करता रहा है। संगठन ने मेहनतकश जनता और शोषित-उत्पीड़ित समूहों के न्यायप्रिय आंदोलनों का समर्थन किया है तो कई मौकों पर आंदोलनों को नेतृत्व देने का प्रयास किया है।
सम्मेलन में सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति पर चर्चा की गई। रिपोर्ट पर बात रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि 2007 से शुरू हुआ विश्व अर्थव्यवस्था का संकट कोरोना महामारी के बाद और भी घनीभूत हुआ है। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं या तो धीमी गति से या नकारात्मक गति से आगे बढ़ रही हैं। इस संकट ने दुनिया में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट को घनीभूत किया है। दक्षिणपंथी, फासीवादी राजनीति का उभार बढ़ा है। कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ी है। इस चौतरफा संकट ने समाज में एकाकीपन, भरोसे की कमी, आत्मकेंद्रीयता को बढ़ाया है। चीन के एक नई साम्राज्यवादी ताकत के रूप में सामने आने और रूस के उभार ने साम्राज्यवादियों के बीच टकराहट को बढ़ाया है। रूस यूक्रेन युद्ध में रूसी साम्राज्यवादी और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादी शासकों की सनक का शिकार जनता को होना पड़ रहा है। दुनिया में शरणार्थी और प्रवासी संकट भी गहराया है। दुनिया में बढ़ते फासीवादी उभार ने मजदूर मेहनतकश जनता सहित शोषित-उत्पीड़ित समूहों पर हमलों को तीखा किया है। जनवादी अधिकारों पर भी हमले तेज हुए हैं। एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग द्वारा श्रम और संसाधनों की लूट भी बढ़ी है। इन सब परिस्थितियों में दुनिया भर में जन आंदोलनों का सिलसिला भी शुरू हुआ है। लेकिन दुनिया में मुक्तिकामी ताकतों का कमजोर होना एक समस्या बना हुआ हैं। दमन, उत्पीड़न, शोषण के खिलाफ पैदा हो रहे संघर्षों के दौरान जनता एक बेहतर समाज की ओर भी आगे बढ़ेगी ऐसी आशा सम्मेलन ने जाहिर की। विभिन्न मसलों पर गंभीर चर्चा के बाद रिपोर्ट को सदन ने पास किया।
इसी तरह राष्ट्रीय परिस्थिति पर प्रतिनिधियों ने चर्चा करते हुए कहा कि विश्व परिस्थितियों के हालातों से भारत भी अछूता नहीं है। हमारे यहां भी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक स्थितियां विकराल स्थिति ग्रहण कर रही हैं। देश में गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी, असमानता लगातार बढ़ रही है। मजदूरों-मेहनतकशों पर हमले तेज हुए हैं। अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिये पर धकेलने के हिंदू फासीवादी शासकों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। मेहनतकश जनता के संवैधानिक, जनवादी व नागरिक अधिकारों का गला घोंटा जा रहा है। जनता के लिए संघर्षरत ताकतों को कुचलने के कुत्सित प्रयास शासकों द्वारा किए जा रहे हैं। तीन कृषि कानूनों, चार लेबर कोड, सी ए ए, एन आर सी आदि के जरिए जनता पर हमला बोला गया है। एक तरफ जनांदोलनों का दमन किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ फासीवादी एजेंडों को आगे बढ़ाने के लिए देश में अराजकता और हिंसा का माहौल पैदा किया जा रहा है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश की घटनाएं फासीवादियों के मंसूबों को दिखाती हैं। वहीं मणिपुर जैसी स्थितियां दिखाती हैं कि वर्तमान शासक पूरे देश को नफरत की आग में झोंक देना चाहते हैं। लेकिन इस दौरान देश ने नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन, ऐतिहासिक किसान आंदोलन, महिला पहलवानों के आंदोलन और जगह-जगह चल रहे मजदूर आंदोलन, देश भर में जारी जनवादी आंदोलन एक उम्मीद की किरण भी दिखाते हैं। इन सब परिस्थितियों पर बात करने के बाद सदन ने राष्ट्रीय परिस्थिति की रिपोर्ट को पास किया।
सदन में सांगठनिक रिपोर्ट पर भी विस्तार से चर्चा हुई जिसमें पिछले सम्मेलन से अब तक की कार्यवाहियों का ब्यौरा पेश किया गया तथा संगठन ने अपनी उपलब्धियों एवं कमियों-खामियों को चिन्हित करते हुए आने वाले समय के लिए योजना पेश की।
इसके बाद 25 जून 2023 को सुबह अगले दिन की कार्यवाही शुरू हुई। सम्मेलन ने विभिन्न समसामायिक विषयों पर प्रस्ताव पास किए। दलितों-अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के विरोध में, समान नागरिक संहिता के संबंध में, चारों श्रम संहिताओं के विरोध में, बढ़ते फासीवादी हमलों के विरोध में, एन पी एस के विरोध में, मणिपुर में जारी हिंसा के संबंध में आदि मामलों पर प्रस्ताव लिए गए।
इसके बाद सम्मेलन ने सर्वोच्च परिषद का चुनाव किया तथा अध्यक्ष के रूप में पी पी आर्या और महासचिव के रूप में भूपाल का चुनाव किया।
दोपहर दो बजे से खुले सत्र का आगाज किया गया जिसमें बरेली शहर से तमाम ट्रेड यूनियन, सामाजिक संगठनों और सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। सभी प्रतिनिधियों ने संगठन को सम्मेलन के लिए बधाई दी तथा नई कमेटी व पदाधिकारियों को बधाई दी। सभी ने संगठन से जनवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने की आशा व्यक्त की। खुले सत्र में वक्ताओं ने आज की परिस्थितियों और देश-दुनिया में मेहनतकश जनता के हालात, उस पर किए जा रहे हमलों, सरकार की जन विरोधी नीतियों, संघर्षों के दमन, दलितों-अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों, जनवादी व संवैधानिक अधिकारों के हनन आदि मसलों पर चिंता जाहिर करते हुए बातें कीं।
खुले सत्र को बरेली ट्रेड यूनियन्स के महामंत्री संजीव मेहरोत्रा, बरेली कालेज के कर्मचारी नेता जितेंद्र मिश्र, ट्रेड यूनियन नेता महेश गंगवार, पी यू सी एल के प्रतिनिधि एडवोकेट यशपाल सिंह, मजदूर सहयोग केंद्र के प्रतिनिधि दीपक सांगवाल, इंकलाबी मजदूर केंद्र के प्रतिनिधि रामजी सिंह, परिवर्तनकामी छात्र संगठन के महासचिव महेश, प्रगतिशील महिला एकता केंद की प्रतिनिधि हेमलता, सामाजिक न्याय फ्रंट के प्रतिनिधि सुरेंद्र सोनकर, टेंपो यूनियन के प्रतिनिधि कृष्ण पाल, सामाजिक कार्यकर्ता ताहिर बेग, प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के प्रतिनिधि ओम प्रकाश, ट्रेड यूनियन नेता सलीम अहमद ने संबोधित किया।
अंत में संगठन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष पी पी आर्या ने वर्तमान परिस्थितियों और संघर्ष की जरूरत पर विस्तार से बात रखी और सभी का क्रांतिकारी अभिवादन किया। प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के कार्यकर्ताओं ने बंद सत्र और खुले सत्र में जोशीले क्रांतिकारी गीतों के माध्यम से सम्मेलन में क्रांतिकारी उत्साह बनाए रखा।
खुले सत्र के बाद एक जुलूस निकाला गया जिसमें बीच में पुलिस प्रशासन द्वारा हस्तक्षेप किया गया। जुलूस झंडे, बैनर, तख्तियों पर लिखी बातों से लोगों को आकर्षित कर रहा था। जुलूस के साथ ही सम्मेलन की पूरी कार्यवाही सफलतापूर्वक संपन्न हुई। -विशेष संवाददाता
क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन का आठवां सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को