मजदूरों को विकलांग बनाता कारखाना
रुद्रपुर/ पीडीपीएल (समाज आटो) पंतनगर सिडकुल स्थित ऑटो कम्पनी है। विगत माह से ही यहां मजदूरों का कार्यबहाली को लेकर संघर्ष चल रहा है। जहां पहले मजदूरों का संघर्ष श्रम कानूनों के तहत दर्ज न्यूनतम सुविधाएं हासिल करने का था जो अब कार्य बहाली का बन गया है।
यहां पर मजदूरों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए या प्राप्त करने के लिए श्रम कानूनों के तहत दर्ज ट्रेड यूनियन रजिस्टर करवाई, उसके माध्यम से मजदूर अपनी मांगों को प्रबंधन के पास रख रहे थे। यही बात प्रबंधन को नागवार गुजरी। मात्र 40 स्थाई मजदूर और 5 ठेकेदारों के तहत 350-400 मजदूरों से पूरी कम्पनी चलाई जा रही थी। इन ठेका मजदूरों को 8 घंटे के मात्र 8500 रु., हेल्पर को और आपरेटरों को 10,000 रु. महीना दिया जाता है।
यही वजह है कि मात्र 40 स्थाई मजदूर भी कंपनी मालिक को खल रहे हैं। 13 जून को श्रम भवन में त्रिपक्षीय वार्ता में प्रबन्धन ने 20 मजदूरों को अभी लेने की बात की थी व 20 को बाद में। इस पर मजदूर पक्ष नहीं माना और अगली तारीख 20 जून को पीडीपीएल मैनेजमेंट वार्ता में नहीं आया। समाज आटो प्रबन्धन ने पुरानी बात दोहरायी कि 20 मजदूरों को नई भर्ती में लूंगा व 20 को बाद में काम की जरूरत के हिसाब से। अगली तारीख 23 जून को पड़ी। जिसमें प्रबंधन मजदूरों को लेने से मना करने लगा तब सहायक श्रमायुक्त द्वारा मामले को लेबर कोर्ट काशीपुर में डालने की कार्यवाही करने को कहा गया। इससे क्षुब्ध होकर मजदूरों ने 26 जून को सिडकुल ढाल से गोल मढईया तक फ्लैशलाइट मार्च निकालकर अपना रोष प्रदर्शन किया।
उपरोक्त कम्पनी में ठेका मजदूरों से गैरकानूनी तरीके से मशीनों में जबरन काम करवाने के कारण मशीन में एक मजदूर का अंगूठा व दूसरे के दाहिने हाथ की तीन अंगुलियां कट गयीं। इसकी शिकायत 20 जून को सिडकुल चौकी में की गई। व ऐसे ही 8-10 मजदूर और हैं जिनके अंग-भंग हुए हैं। परंतु वह लोग ठेकेदारों के द्वारा या कंपनी प्रबंधन के धमकाने के कारण किसी प्रकार के संघर्ष करने के लिए तैयार नहीं है और घर पर ही बैठे हैं। जब अकुशल मजदूरों से मशीनों में काम करवाया जाएगा तो ऐसी दुर्घटना होना लाजिमी है और ऐसी दुर्घटना होने के बाद किसी प्रकार का कोई मुआवजा, क्षतिपूर्ति को ईएसआई विभाग के हवाले कर देने की परंपरा सी बन गई है। कंपनी प्रबंधन ठेकेदारों के ऊपर ही पूरा मामला छोड़ देता है और अपनी जिम्मेदारी व जवाबदेही से साफ मुकर जाता है। शासन-प्रशासन द्वारा मजदूरों के मामलों में केवल आश्वासन ही मिलता है जबकि प्रबन्धन के पक्ष में तुरन्त कार्यवाही हो जाती है। यही पूंजीवादी प्रणाली है।
''उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" वाली कहावत यहां पर चरितार्थ होती है। समाज आटो का कम्पनी का सीईओ पूरी कंपनी को बिना लाइसेंस के चलाने के अलावा, ठेकेदारों के लाइसेंस का दुरुपयोग कर ठेका मजदूरों से खतरनाक मशीनों को चलवाता रहा है। मजदूरों के जान-माल से खिलवाड़ कर, अंग-भंग कर उन्हें विकलांग बनाता रहा है। कंपनी में दस-पन्द्रह साल से कार्यरत सभी 41 स्थाई मजदूरों को नौकरी से निकालकर उनका भविष्य बर्बाद करने वाला समाज आटोमोटिव कंपनी सिडकुल पंतनगर जिला ऊधमसिंह नगर (उत्तराखंड) का प्रबंधन व मालिक उत्तराखंड के कानूनों का चीरहरण कर बेखौफ होकर खुलेआम प्रेस वार्तायें कर रहा है। इसे ही कंपनी राज कहते हैं। (इसीलिए कहते हैं कि मोदी है तो मुमकिन है ।)
पुराने श्रम कानूनों के तहत ऐसी किसी दुर्घटना होने पर पहले मुकदमा होने और प्रबंधकों के जेल जाने का प्रावधान था परन्तु नये श्रम कानून के तहत यह सब बदल चुका है। अब तो प्रबंधन और भी बेफिक्र होकर इस प्रकार की गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। फिलहाल मजदूरों का धरना जारी है। मजदूरों ने यह भी बताया है कि 30 जून को हल्द्वानी श्रम भवन पर प्रदर्शन किया जाएगा और आगे की रणनीति बनाई जाएगी। -रुद्रपुर संवाददाता