लू से मौतें और योगी सरकार

उ.प्र. के बलिया-देवरिया जिले में जून के महीने में लू के चलते बीमार होने वाले सैकड़ों लोगों ने दम तोड़ दिया। बलिया जिला तो इस मामले में खास तौर पर चर्चित रहा जहां 3-4 दिनों में जिला अस्पताल में लगभग 100 लोग मर गये। अनुमान  लगाया जा सकता है कि लू की चपेट में आने वाले राज्य के ज्यादातर जिलों का यही हाल रहा होगा। यानी लू से मरने वालों का वास्तविक आंकड़ा प्रदेश में हजारों में होगा। 
    
21 वीं सदी में अगर किसी देश में हर वर्ष हजारों लोग लू से मर जायें तो वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि ये मौतें सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजों की हुई हैं। ऐसे लोग जो अस्पताल पहुंच ही नहीं पाये होंगे उनकी तादाद और अधिक रही होगी। देवरिया जिले में रोडवेज के ढेरों कंडक्टर-ड्राइवरों के लू के चलते बीमार होकर छुट्टी पर जाने की बातें सामने आ रही हैं। 
    
किसी भी जनपक्षधर व लोगों के स्वास्थ्य के प्रति सजग व्यवस्था में सहज ही इस बात की मांग होती कि सरकार न केवल लू से बचाव के तरीकों का समाज में प्रचार करे बल्कि जगह-जगह विश्राम करने के लिए ठण्डे आश्रय गृह, पीने के लिए प्याऊ आदि का इंतजाम करे। साथ ही इस तरह से लोगों के काम करने के समय में बदलाव करे कि लोग सीधे लू की चपेट में न आयें। अस्पतालों में भी कूलर-एसी से लेकर बिस्तरों की संख्या में बढ़ोत्तरी करे। पर उ.प्र. की योगी सरकार ने क्या किया?
    
योगी सरकार ने स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के लिए समय रहते कुछ नहीं किया। उसने सारा ध्यान खबरों के प्रबंधन में लगाया। उसने बलिया जिला अस्पताल के सीएमएस को इसलिए हटा दिया कि उसने लू से मौतों के बारे में बयान देकर सच्चाई उजागर कर दी थी। इस बयान के बाद ही लू से मौतें चर्चा का मुद्दा बनी थीं। लू से मौतें चर्चा में आने के बाद योगी सरकार खबरों के खण्डन में जुट गयी। मंत्रियों ने दावे किये कि मौतें लू से नहीं हो रही हैं। खबर का खण्डन करने के लिए बलिया में खराब पानी की बात फैलायी गयी व पानी की जांच हेतु जांच दल भी भेजा गया जिसे जांच में खराब पानी नहीं मिला। 
    
योगी सरकार की चुस्ती की वजह से बाकी सभी जिलों के चिकित्सा अधिकारी लू से मौतों पर बयान देने या आंकड़ा बताने से बचने लगे। दिखावे के लिए कुछेक जगह नए वार्ड बना उसमें कूलर आदि तब लगाये गये जब बारिश के चलते लू का प्रकोप कम हो चुका था। 
    
भाजपा सरकारों खासकर योगी सरकार का इस मामले में रिकार्ड ही ऐसा रहा है कि किसी समस्या के सामने आने पर समस्या के समाधान से ज्यादा समस्या लाने वाले से निपटना व खबर दबाना उनका मुख्य कार्य हो गया है। इंसफलाइटिस से बच्चों की मौतों, ऑक्सीजन की कमी से मौतों से लेकर कोरोना जन्य मौतों सबमें योगी सरकार, खबरों का ही प्रबंधन करती रही। इसी तरह योगी उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बना रहे हैं। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।