लेबर-20 की पटना बैठक

जून अंत में बिहार के पटना में जी-20 के देशों की ट्रेड यूनियनों की एल-20 (लेबर-20) की बैठक आयोजित हुई। लेकिन इस बैठक की अध्यक्षता आर एस एस के मजदूर संगठन- भारतीय मजदूर संघ को सौंपे जाने के विरोध में भारत के करीब 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशनों ने इस एल-20 बैठक का बहिष्कार किया।
    
गौरतलब है कि भारतीय मजदूर संघ, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ का सदस्य नहीं है इसके बावजूद मोदी सरकार ने अपनी मनमानी करते हुये उसे एल-20 की बैठक की अध्यक्षता सौंप दी और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ द्वारा दिये गये इस सुझाव, कि भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस को (AITUC) भी एल-20 बैठक का अध्यक्ष बनाया जाये, को भी ख़ारिज कर दिया।
    
इसके विरोध में जारी अपने बयान में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ के महासचिव ल्यूक ट्रायंगल ने कहा कि ‘‘वर्षों से जी-20 की मेजबानी करने वाली सरकारों ने जी-20 में कामगारों का प्रतिनिधित्व करने में दुनिया के अग्रणी स्वतंत्र ट्रेड यूनियन परिसंघ की भूमिका को स्वीकार किया है। चीन और सऊदी अरब जैसे देशों द्वारा भी इसका सम्मान किया गया था, जबकि वहां स्वतंत्र संघ नहीं हैं।’’ उन्होंने आगे कहा कि ‘‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और जीवंत ट्रेड यूनियन आंदोलन वाले भारत की सरकार कामगार लोगों के प्रतिनिधित्व के मामले में अब तक के सबसे खराब जी-20 की मेजबानी करेगी।’’
    
गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ विभिन्न पूंजीवादी सुधारवादी ट्रेड यूनियन फेडरेशनों का एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है, जो कि मजदूरों-मेहनतकशों के लिये कुछ दिखावटी कल्याण की बातें करते हुये असल में साम्राज्यवादी-पूंजीवादी शासकों की लुटेरी नीतियों को ही आगे बढ़ाने का काम करता है। हमारे देश भारत के भी विभिन्न पूंजीवादी-सुधारवादी ट्रेड यूनियन फेडरेशन इससे जुड़े हैं। लेकिन आज केंद्र की मोदी सरकार की निरंकुशता इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि वह इन पूंजीवादी-सुधारवादी मजदूर संगठनों/फेडरेशनों को भी सीधे-सीधे लात लगा रही है।
    
जी-20 खुद आज दुनिया की राजनीति में एक रस्मी अंतर्राष्ट्रीय मंच है। बिहार के पटना में इसकी एल-20 की बैठकों में मजदूरों की सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा, उनके अंतर्राष्ट्रीय प्रवास एवं जी-20 के देशों में रोजगार के नये अवसरों इत्यादि पर बड़ी-बड़ी दिखावटी बातें की गयीं। जबकि सच्चाई यह है कि 1999 में जी-20 का गठन ही साम्राज्यवादी देशों की अगुवाई में उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की लुटेरी नीतियों के व्यापक प्रसार हेतु किया गया था, जिनका मतलब ही मजदूरों को हासिल सुविधाओं और अधिकारों में कटौती करना है। आज खुद पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों में मजदूरों के वेतन, पेंशन, भत्तों में कटौती हो रही है और अधिकार छीने जा रहे हैं। और भारत में केंद्र की हिंदू फासीवादी मोदी सरकार तो मजदूरों पर आजाद भारत का सबसे बड़ा हमला करते हुये घोर मजदूर विरोधी चार नये लेबर कोड्स ही पारित कर चुकी है।

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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