ग्रीस में एक बार फिर दक्षिणपंथी सत्ता में

25 जून को ग्रीस में हुए आम चुनावों में एक बार फिर से दक्षिणपंथी पार्टी न्यू डेमोक्रेसी के किरियोकोस मित्सोटाकिस प्रधानमंत्री के रूप में चुने गये हैं। वामपंथी पार्टी कहलाने वाली सीरिजा के सिप्रास को हार का सामना करना पड़ा है। न्यू डेमोक्रेसी को जहां लगभग 41 प्रतिशत मत मिले हैं वहीं सीरिजा को महज 18 प्रतिशत मत मिले हैं।
    
ज्ञात हो कि ग्रीस में यह पांच सप्ताहों के अंदर दूसरी बार आम चुनाव हुए हैं। पहली बार चुनाव मई में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत हुए थे जिसमें किरियोकोस जीतने के बावजूद सरकार बनाने के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाये। न्यू डेमोक्रेसी को बहुमत के लिए 151 सीटों से 5 सीटें कम मिलीं। किरियोकोस ने गठबंधन कायम कर सरकार बनाने के बजाय दुबारा आम चुनाव का फैसला किया। नयी चुनाव प्रणाली के जरिये उन्हें पूरा फायदा मिलने की उम्मीद थी (नई चुनाव प्रणाली के तहत सबसे अधिक मत पाने वाली पार्टी को 20-50 सीटें अतिरिक्त मिल जाती हैं)।
    
पांच सप्ताह पूर्व मई 23 में हुए चुनाव में जहां न्यू डेमोक्रेसी को 146 सीटें (40.79 प्रतिशत मत) मिली थीं वहीं सीरिजा को 71 सीटें (20.07 प्रतिशत मत) मिली थीं। ग्रीस की कम्युनिस्ट पार्टी 26 सीटें (7.23 प्रतिशत मत) जीतने में सफल रही थी। कुल 5 पार्टियां 3 प्रतिशत से अधिक मत पा संसद में प्रवेश करने में सफल हुई थीं। वहीं 25 जून को हुए चुनाव में न्यू डेमोक्रेसी 158 सीटें (40.79 प्रतिशत मत), सीरिजा 48 सीटें (17.83 प्रतिशत मत) व ग्रीस की कम्युनिस्ट पार्टी 20 सीटें (7.69 प्रतिशत मत) पाने में सफल रहीं। 25 जून को हुए चुनावों की खास बात यह रही कि इन चुनावों में मात्र 53 प्रतिशत मतदाताओं ने मत दिया जबकि मई में 61 प्रतिशत लोगों ने मत दिया था। दूसरी विशेष बात यह रही कि इस बार 8 पार्टियां 3 प्रतिशत से अधिक मत पाकर संसद में प्रवेश करने में सफल रहीं। दो धुर दक्षिणपंथी पार्टियां स्पार्टन्स व विक्टरी इस बार संसद में पहुंचने में सफल रहीं। इस तरह संसद में दक्षिणपंथी ताकतों की तादाद में वृद्धि हो गयी है। ग्रीस के चुनाव में आनुपातिक प्रणाली के तहत 3 प्रतिशत से अधिक मत पाने वाली पार्टियों को संसद में उनके मतों के अनुरूप सीटें मिलती हैं। 300 सदस्यीय संसद में 250 सीटें पार्टियों के मत प्रतिशत के अनुरूप बंटती हैं। इसके अतिरिक्त प्रथम स्थान पर रही पार्टी को उसके मत प्रतिशत के अनुरूप 20-50 सीटें बोनस के रूप में मिलती है।
    
इस बार भी आम चुनाव में दक्षिणपंथी पार्टी की विजय ने वामपंथी पार्टियों का खोखलापन जाहिर कर दिया है। 2015 में आर्थिक संकट के समय वामपंथी पार्टियों के गठबंधन ने सत्ता हासिल की और सिप्रास प्रधानमंत्री बने थे। सीरिजा को जनता ने सत्ता में इसलिए पहुंचाया था कि वह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपीय यूनियन द्वारा ग्रीस पर लादे जा रहे कटौती कार्यक्रमों को लागू होने से रोकेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बजाय सिप्रास ने कटौती कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जनमत संग्रह कराया और जनता से स्पष्ट विरोध के बावजूद कटौती कार्यक्रमों को लागू कर दिया और जनता का विश्वास सीरिजा से उठ गया।
    
जब इस बार ग्रीस में चुनाव हुए तब फ़रवरी में ग्रीस में हुई रेल दुर्घटना और जून 23 में प्रवासियों से भरे जहाज के डूब जाने से मारे गये सैकड़ों लोगों का मुद्दा छाया रहा। सीरिजा ने इस मामले में ग्रीस के अधिकारियों और नेताओं पर सवाल उठाये थे। इसी के कारण सिप्रास को उम्मीद थी कि वे अपनी चुनावी नैया पार लगा लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन घटनाओं ने मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित नहीं किया। इस चुनाव में अर्थव्यवस्था और सुरक्षा मुख्य मुद्दा रहे।
    
किरियोकोस ने जीतने के बाद कहा है कि अब वे अर्थव्यवस्था में और तेजी से सुधार करेंगे। यह साफ तौर पर आम जनता के लिए संदेश है। किरियोकोस अब स्पष्ट बहुमत पाकर पूंजीपति वर्ग के लिए अधिक खुलकर काम करेंगे।
    
सख्त अप्रवासन नीति के कारण सैकड़ों लोगों के मर जाने के बाद भी किरियोकोस के जीतने ने साबित कर दिया है कि ग्रीस में बेरोजगारी और असुरक्षा की भावना मौजूद है और इसी कारण बाहरी लोगों का आना ग्रीस लोगों को अपने रोजगार और अपनी अर्थव्यवस्था पर बोझ लगता है। इस भावना को पूंजीपति वर्ग और उनकी पार्टियां फैला रही हैं। और इस भावना के रहते कम से कम एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं हो सकता। कुल मिलाकर किरियोकोस की जीत पूंजीपति वर्ग के लिए ही फायदेमंद है जैसे और तमाम देशों में दक्षिणपंथी पार्टियां सत्ता में आकर पूंजीपति वर्ग को फायदा पहुंचा रही हैं।

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को