बिहार राज्य की जाति जनगणना के आंकड़े 2 अक्टूबर 2023 को जारी किए गए। देश के राजनीतिक हलकों में कोहराम मचा हुआ है। राजनीतिक पार्टियां दो खेमों में बंट गई हैं और देश को दो खेमों में बांटना चाह रही हैं ताकि असली गुनहगार आंखों से ओझल हो जाएं। यह असली गुनहगार कौन हैं। कौन है जो देश की सम्पदा को लूट रहा है। कौन है जो देश के संसाधनों पर कब्जा करता जा रहा है। कौन है जो देश में गरीबी का मुख्य कारण है। इस गुनहगार को पहचानना होगा। यह गुनहगार आजकल जनता की आंखों से ओझल है।
यह गुनहगार है देश का एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग। आजादी के बाद देश पर इस एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग का कब्जा बढ़ता जा रहा है। इंडिया इनिक्वलिटी प्रोब्लम सर्वे के अनुसार 1961 में 1 प्रतिशत अमीर लोगों के पास 11.9 प्रतिशत संपत्ति थी जो 2020 में बढ़कर 42.5 प्रतिशत हो गई। 1961 में 50 प्रतिशत गरीब लोगों के पास 12.3 प्रतिशत संपत्ति थी जो 2020 में 2.8 प्रतिशत रह गई। 2020 के बाद यह असमानता और ज्यादा तेजी से बढ़ी है। इस सच्चाई को छिपाया जा रहा है और जनता को जाति, धर्म में बांटा जा रहा है। ये बात अलग है कि इन लुटेरों में ज्यादातर सामान्य वर्ग से आते हैं।
बिहार की जाति आधारित जनगणना या सर्वे से निकल कर आया कि 70 प्रतिशत जमीनें 10 प्रतिशत सवर्णों के पास हैं। बिहार में पिछड़ा वर्ग सबसे ज्यादा (63 प्रतिशत) है। हर जाति के कितने प्रतिशत लोग हैं। बिहार की जाति आधारित जनगणना या सर्वे से पहले बीजेपी धर्म के आधार पर जनता से खेल रही थी। अब आरजेडी और जेडीयू व अन्य राजनीतिक पार्टियां जाति आधारित राजनीति से खेलना चाह रही हैं। (कांग्रेस भी इस बहती दरिया में हाथ धोना चाहती है। वह भी ओबीसी के हक की बात कर रही है। यानी भ्रमित कर रही है) जाति जनगणना से यह सच्चाई सामने आ जायेगी कि बेहद कम संख्या वाली सवर्ण जातियां संसाधनों के बहुलांश पर काबिज हैं।
बीजेपी चाहती है कि धर्म और राष्ट्रवाद के अलावा कोई मुद्दा ना उठे और वह देश को पूंजीपति वर्ग को लुटाती रहे। बीजेपी देश को हिंदू-मुस्लिम दंगों की आग में झोंकना चाहती है। यह खेल आज शुरू नहीं हुआ। यह खेल आजादी के बाद से जारी है। धर्म, जाति, क्षेत्र और फर्जी राष्ट्रवाद ये पूंजीपति वर्ग की राजनीति के हथियार हैं जिसके जरिये शासक वर्ग, जनता में फूट डालकर अपने राज को चलाते रहते हैं। जनता की फूट और राज का चोली-दामन का साथ है, अगर किसी पर राज करना है तो उनमें फूट डाल दो। ये शासक वर्ग की काफी पुराना रणनीति का हिस्सा रहा है।
जनता की जिम्मेदारी बनती है कि वह ‘‘फूट डालो और राज करो’’ नीति को समझे और नेताओं और शासक वर्ग के झांसे में न आएं।
आज जाति जनगणना के साथ आर्थिक जनगणना की भी आवश्यकता है। ताकि लुटेरे जनता के सामने आ जाएं। मजदूरों और किसानों की एकता बनाकर पूंजीपति वर्ग के राज को मिटाना होगा और मजदूरों-किसानों का राज लाना होगा।
-योगेश, गुड़गांव
जाति जनगणना से आर्थिक जनगणना बनाम लोकतंत्र
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