हरिद्वार/ 3 अक्टूबर 2023 को संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा हरिद्वार ने सैकड़ों मजदूरों के साथ जुलूस निकालकर जिलाधिकारी कार्यालय पर एक सभा की। सभा के बाद जिलाधिकारी, हरिद्वार के माध्यम से एक ज्ञापन हरिद्वार के विभिन्न कारखानों (सत्यम आटो कंपोनेंट, राजा उद्योग एवं एवरेडी इंडस्ट्रीज) समेत सिडकुल के मजदूरों की समस्या के समाधान के लिए मुख्यमंत्री उत्तराखंड के नाम प्रेषित किया गया।
सभा में वक्ताओं ने कहा कि हरिद्वार औद्योगिक क्षेत्र में लंबे समय से औद्योगिक विवाद विद्यमान हैं जो शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही, उसके मजदूर विरोधी रुख एवं अमानवीय व्यवहार को दर्शाता है। संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा समय-समय पर मजदूरों की न्यायोचित मांगों को शासन-प्रशासन के समक्ष उठाता रहा है तथा स्वतंत्र रूप से विभिन्न कंपनियों के मजदूर भी लिखित एवं मौखिक रूप से न्याय की गुहार लगाते रहे हैं। परन्तु न तो श्रम विभाग, न जिला प्रशासन और न ही सिडकुल के क्षेत्रीय प्रबंधक ने मजदूरों की न्यायपूर्ण मांगों पर ध्यान देने की कोई जरूरत समझी है।
वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उद्योगपतियों को टैक्स, बिजली एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में भारी छूट दी गयी परंतु शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही का ही कारण है कि आज कुछ उद्योग यहां पर मिली तमाम छूटों का लाभ उठाकर दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। आज हरिद्वार सिडकुल में कई कंपनियां जैसे हेमा, एल्पस, लखानी, वीआईपी, बिक सैलो, ब्रह्मा आटो आदि शासन-प्रशासन के ढीले-ढाले रवैये से न केवल बंद हो गई हैं बल्कि इन कम्पनियों में कार्य करने वाले हजारों स्थाई व अस्थाई श्रमिक बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं व रोजी-रोटी के लिए मोहताज हैं।
वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान समय में ऐसे ही तीन औद्योगिक विवाद विद्यमान हैं। सत्यम कंपनी के 300 मजदूर अपनी नौकरी की बहाली के लिए 6 सालों से दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। ये मजदूर विगत 6 सालों से सड़क से लेकर न्यायालय तक संघर्षरत हैं। आंदोलन के दौरान मजदूर जेल भी गये और इनके ऊपर फर्जी मुकदमे भी लगे। श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए सत्यम कंपनी का प्रबंधक ठेके के मजदूरों से मशीनों का संचालन करवा रहा है जो कि गैर कानूनी है।
इसी तरह राजा बिस्कुट के स्थायी मजदूर 17 सालों से कम्पनी में कार्य कर रहे थे। मालिक ने मजदूरों की गाढ़ी कमाई से कई शहरों में नई कंपनियां लगायीं व कोरोना काल में 36-36 घंटे मजदूरों से लगातार काम लिया। उसके बाद भी घाटे का राग अलापकर मजदूरों को गुमराह किया। प्रबन्धक वर्ग ने 1 अगस्त 2022 से कम्पनी में ले आफ कर दिया और 2 फरवरी 2023 से अवैध गेटबंदी कर सारे मजदूरों को बाहर कर दिया। इसके खिलाफ राजा बिस्कुट के मजदूर लगभग ढाई सौ दिनों से कंपनी गेट पर न्याय पाने हेतु धरनारत हैं।
एवरेडी इण्डस्ट्रीज कम्पनी में एवरेडी मजदूर कमेटी द्वारा 28 जनवरी 2023 से वेतन वृद्धि समझौते का मांग पत्र कंपनी प्रबंधन को सौंपा गया। इसकी सूचना श्रम विभाग एवं जिलाधिकारी कार्यालय में दी गई लेकिन प्रबंधन वर्ग की हठधर्मिता के कारण 8 महीने से कोई समझौता नहीं किया गया। 9 जून 2023 को प्रबंधक वर्ग द्वारा एकतरफा वेतन वृद्धि समझौता कर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा प्रदत अधिकार का भी खुला उल्लंघन किया गया। इसके अलावा कंपनी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं होने के कारण समय-समय पर मजदूरों के साथ दुर्घटनाएं, अंग-भंग जैसी घटनाएं हो रही हैं।
वक्ताओं ने कहा कि सिडकुल में अधिकांश कंपनियों में माडल स्टैंडिंग आर्डर का पालन नहीं किया जा रहा है। 20 प्रतिशत से कम ही मजदूरों की स्थायी नियुक्तियां हैं तथा 80 प्रतिशत से अधिक मजदूर ठेका, ट्रेनी, नीम ट्रेनी, एफटीई व कैजुअल के रूप में अपमानजनक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं। अधिकांश कम्पनियों में गैरकानूनी तरीके से मशीनों का संचालन अस्थाई मजदूरों से करवाया जा रहा है। इस वजह से एवं सुरक्षा उपकरणों के अभाव में आये दिन मजदूरों के अंग-भंग एवं अन्य दुर्घटनायें होती रहती हैं। आये दिन कम्पनी मालिकों द्वारा मजदूरों की छंटनी करना आम बात हो चुकी है। सभी कम्पनियों के मजदूरों का ईएसआईसी में पैसा कटने और करोड़ों रुपए विभाग में जाने के बावजूद मजदूरों को उपयुक्त इलाज नहीं मिल रहा है और वे भटक रहे हैं।
रैली में फूड्स श्रमिक यूनियन, देवभूमि श्रमिक संगठन, विप्रो मजदूर कमेटी, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, एवरेडी मजदूर यूनियन, कर्मचारी संघ सत्यम आटो, राजा बिस्किट मजदूर संगठन, यूरो लाइफ मजदूर कमेटी, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र आदि संगठन के कार्यकर्ताओं के अलावा सत्यम के मज़दूरों के परिवारजनों ने भी भागीदारी की। -हरिद्वार संवाददाता
हरिद्वार : सिडकुल मजदूरों का जुलूस
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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।