दिल्ली/ देश के विभिन्न राज्यों से 12 छात्र-युवा संगठनों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति व बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ कन्वेंशन 8 अक्टूबर 2023 को जंतर-मंतर पर सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इससे पहले इन्हीं संगठनों द्वारा कुछ माह पूर्व ही क्रांतिकारी छात्र-युवा अभियान Revolutionary Students Youth Campaign [RSYC] का गठन किया गया था और इस मंच के बैनर तले ही कन्वेंशन का आयोजन किया गया था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 और बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ इस कन्वेंशन का आयोजन किया गया था। कन्वेंशन में देश भर से आए छात्रों ने अपने-अपने राज्यों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 द्वारा शिक्षा पर ढाए जा रहे कहर के बारे में बात रखी।
कन्वेंशन में दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बंगाल, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, बिहार आदि राज्यों से छात्र संगठन शामिल हुए। इन राज्यों से आल इंडिया प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम, आल इंडिया रेवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन, भगत सिंह स्टूडेंट्स फ्रंट, कलेक्टिव, डेमोक्रेटिक यूथ स्टूडेंट्स एसोसिएशन, इंक़लाबी स्टूडेंट्स यूनिटी, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन, प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूथ फेडरेशन, प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन, प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स यूथ एसोसिएशन, पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन ललकार व अन्य पर्यवेक्षक संगठनों से सदस्य-कार्यकर्ता मौजूद रहे।
सभा में बोलते हुए संगठनों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के जरिये शिक्षा के निजीकरण और भगवाकरण को बढ़ाने के मोदी सरकार के ताजे हमलों पर विरोध जताया। साथ ही पूर्व की सरकारों द्वारा उठाये गए इसी प्रकार के कदमों को भी अपने संघर्ष के निशाने पर लेने की ओर ध्यान देने की बातें कीं।
वक्ताओं ने फासीवादी मोदी सरकार के हालिया हमलों के लागू होते ही देश के विभिन्न राज्यों में सरकारी स्कूलों को बंद किये जाने, सरकारी फंड में कटौती किये जाने और शिक्षा में गैर वैज्ञानिक चीजों को भरकर छात्रों के दिमाग में साम्प्रदायिक जहर घोले जाने के प्रति सचेत हो संघर्ष करने का आह्वान किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के देश के कारपोरेट पूंजीपतियों की सेवा करने और दूसरी तरफ आरएसएस के साम्प्रदायिक हिन्दू फासीवादी एजेंडे को बढ़ाने के पहलुओं को समाज के सामने स्पष्ट करने पर जोर दिया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को कोरोना काल में इसीलिए पास किया गया ताकि छात्र और शिक्षक जगत विरोध न कर सकें। आज जब तेजी से राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की जा रही है तो इसके दुष्परिणाम भी तेजी से सामने आ रहे हैं। केंद्रीयकृत प्रवेश परीक्षा में गड़बड़ियां और उससे गरीब छात्रों को प्रवेश लेने से वंचित करना हो या फिर तेजी से और भारी फीस वृद्धि इस नीति का छात्रों पर सीधा हमला है।
4 वर्ष का स्नातक प्रोग्राम भी छात्रों को परेशान करने लगा है। यह 4 वर्षीय प्रोग्राम बहुत गाजे-बाजे के साथ पेश किया गया था। लेकिन छात्र पूरे साल भर इतने व्यस्त कर दिए गए हैं कि उनको सांस लेने भर की भी फुर्सत नहीं बची है। पहले से पढ़े हुए विषयों का असाइनमेंट, क्लास टेस्ट, एग्जाम आदि का चक्र ऐसा बना दिया गया है कि वे स्कूली जीवन से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ऐसा छात्रों को राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों से दूर रख कूपमण्डूक बनाने का एक नया तरीका है।
मोदी सरकार के फासीवादी हमलों के खिलाफ संघर्ष करते हुए, अन्य राजनीतिक पार्टियों के भी पूंजीपरस्त चरित्र को हमेशा याद रखने और किसी भ्रम में न रहने को भी संगठनों ने चिन्हित किया।
सभा में बात रखते हुए सभी वक्ताओं ने देश में बढ़ती बेरोजगारी और मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों का पुरजोर विरोध किया। सरकारी संस्थानों के निजीकरण, अग्निवीर जैसी योजनाओं को लाकर युवाओं के रोजगार पर सरकार द्वारा निरंतर हमला बोलने की प्रक्रिया को वक्ताओं द्वारा चिन्हित किया गया। साथ ही निजी क्षेत्र में श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधनों के जरिये भावी मजदूरों (मौजूदा छात्र-नौजवानों) को गुलामों सी स्थितियों की ओर धकेलने पर रोष जताया गया। ऐसे में सबको सम्मानजनक स्थाई रोजगार के लिए युवाओं के एकजुट होकर संघर्ष करने पर जोर दिया गया।
क्रांतिकारी छात्र संगठनों के इस कन्वेंशन ने परस्पर अधिक तालमेल बनाने और छात्र-नौजवानों की क्रांतिकारी लामबन्दी करने पर जोर दिया। देश भर से आए 600 से ऊपर छात्रों-युवाओं के जोशीले नारों, गीतों के साथ कन्वेंशन का समापन किया गया।
कार्यक्रम से उत्साहित संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस पहल को देश के विभिन्न भाषा-भाषी क्रांतिकारी छात्र-युवा संगठनों की साझा कार्यवाही कहा। जो कि काफी उम्मीदों और सम्भावनाओं के रास्ते खोलती है और कई नयी चुनौतियों को भी पेश करती है। -दिल्ली संवाददाता
क्रांतिकारी छात्र-युवा अभियान का कन्वेंशन सफलतापूर्वक सम्पन्न
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आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।