दुनिया भर से उठी आवाज ‘इजरायल फिलिस्तीन खाली करो’

हमास के हमले के बहाने इजरायल द्वारा फिलिस्तीन में ढायी बर्बरता हर बीतते दिनयमन के साथ बढ़ती जा रही है। अमेरिकी-यूरोपीय साम्राज्यवादी खुलेआम अत्याचारी इजरायल केनीदरलैण्ड साथ न केवल खड़े हैं बल्कि इजरायल को हमले के लिए मदद भी कर रहे हैं। हजारों-हजार फिलिस्तीनियों के कत्लेआम के लिए इजरायली शासकों के साथ पश्चिमी साम्राज्यवादीजेनेवा भी दोषी हैं। भारत के शासक भी अमेरिकी लुटेरों के पदचिन्हों पर चलते हुए इजरायल के प्रति समर्थन दिखा रहे हैं। पर इस जंग में दुनिया भर के शासक बंटे हुए हैं। ईरान, ढेरों अरब मुल्क, इजरायल के खिलाफ बयान दे रहे हैं तो रूसी-चीनी साम्राज्यवादी भी इजरायली अत्याचार को इस जंग का कारण बता रहे हैं। 
    
पर दुनिया भर की ज्यादातर जनता फिलिस्तीन की मुक्ति के समर्थन में और इजरायली अत्याचारी शासकों के खिलाफ खड़ी है। यूरोप के कई मुल्कों से लेकर भारत में इजरायल विरोधी प्रदर्शनों को रोकने की सारी सरकारी कोशिशों के बावजूद समूची दुनिया में इजरायल विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, अरब मुल्कों से लेकर भारत-पाक तक कोई देश इन प्रदर्शनों से बचा नहीं है। कुछ जगहों पर इजरायल के समर्थन में भी प्रदर्शन हुए हैं पर इजरायल विरोधी प्रदर्शन लगातार बढ़ती पर हैं। यह दिखलाता है कि शासक चाहे जिस पाले में हों दुनिया की मेहनतकश जनता फिलिस्तीन के साथ खड़ी है। 

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को