अमेरिका में 15 सितम्बर से शुरू हुई ऑटो मजदूरों की हड़ताल जारी है। वाल्वो के स्वामित्व वाली कम्पनी मैक ट्रक के पेन्सिलवेनिया, मेरीलैंड और फ्लोरिडा के 4000 मजदूर भी 9 अक्टूबर से हड़ताल पर चले गये हैं। ये मजदूर वेतन वृद्धि समेत अन्य मांगों के लिए हड़ताल पर हैं। वाल्वो ने 2000 में मैक ट्रक को खरीद लिया था। मैक ट्रक मध्यम और भारी ट्रक बनाती है और उत्तरी अमेरिका में यह भारी ट्रक बनाने वाली कम्पनी में से एक है और उत्पादन में इसका हिस्सा 6 प्रतिशत है।
मैक ट्रक कंपनी के मजदूर यू ए डब्ल्यू यूनियन से सम्बद्ध हैं। 30 सितम्बर को कंपनी से मजदूरों का कान्ट्रैक्ट खत्म हो गया जो 2019-2023 तक था। 1 अक्टूबर से नया कान्ट्रैक्ट लागू होना था। मजदूरों ने कंपनी द्वारा किये जा रहे कान्ट्रैक्ट का विरोध करते हुए हड़ताल के पक्ष में वोट दिया लेकिन यूनियन के अध्यक्ष शावन फेन ने उस समझौते (कम्पनी द्वारा प्रस्तावित) को भारी वाहन उद्योग के लिए अच्छा समझौता बताया।
इस समझौते के अंतर्गत 19 प्रतिशत की वेतन वृद्धि, नये समझौते पर हस्ताक्षर करने पर 3500 डालर की राशि आदि का प्रावधान था। इसमें पहले साल 10 प्रतिशत वेतन वृद्धि और अगले 4 सालों के लिए 2.5 प्रतिशत की वेतन वृद्धि प्रस्तावित थी। लेकिन मजदूरों की 36 प्रतिशत वेतन वृद्धि की मांग है। इसके अलावा अब तक जो समझौते होते रहे हैं वे चार साल के लिए होते रहे हैं लेकिन इस बार कंपनी इस समझौते को पांच साल के लिए करना चाहती है।
मजदूरों का कहना है कि अभी पिछले दिनों में महंगाई 22 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है और ऐसे में महज 19 प्रतिशत की वेतन वृद्धि पर्याप्त नहीं है और उसमें भी पहले साल मात्र 10 प्रतिशत की वेतन वृद्धि होगी। इसके अलावा मजदूरों को स्थायी करना, एक ही तरह का काम करने वाले मजदूरों को अलग-अलग श्रेणी (टियर सिस्टम) में बांटने की प्रथा को खत्म करना, स्वास्थ्य सुविधा देना, काम के घंटे न बढ़ाना, नौकरी की सुरक्षा आदि मांगों पर भी विचार होना चाहिए।
पहले यू ए डब्ल्यू के अध्यक्ष शावन फेन ने तो 98 प्रतिशत मज़दूरों द्वारा हड़ताल पर जाने के फैसले को लागू नहीं किया और समझौते को जबरदस्ती लागू कराने की कोशिश की। लेकिन मजदूरों ने इस फैसले को नहीं माना और 23 के मुकाबले 73 प्रतिशत मतों से इसे ठुकराकर हड़ताल पर जाने का फैसला किया।
मजदूरों द्वारा हड़ताल पर जाने का दृढ़ निश्चय कर लेने के बाद यू ए डब्ल्यू के अध्यक्ष शावन फेन के पास कोई चारा नहीं बचा और फिर पलटी मारते हुए उन्होंने मजदूरों के हड़ताल पर जाने के फैसले का स्वागत किया।
दरअसल मजदूर अपने पिछले समझौते जो 2019-23 के लिए हुआ था, से भी सबक सीखे हुए हैं जब यूनियन ने उनका समझौता मात्र 6 प्रतिशत की वेतन वृद्धि पर करवा दिया था जबकि कोरोना काल में उन्होंने काफी मेहनत की थी।
मजदूर इस बात से भी नाराज हैं कि कंपनी जहां एक तरफ यह कह रही है कि उसके पास मजदूरों की मांग 36 प्रतिशत वेतन वृद्धि के लिए पैसा नहीं है वहीं कम्पनी के सी ई ओ 5 करोड़ डालर साल का वेतन पा रहे हैं और मज़दूरों को एक साल का मात्र 50,000 से 60,000 डॉलर मिलता है। इसके अलावा कंपनी कोरोना काल में उत्पादन और मुनाफा कम होने की बात कह रही है लेकिन हकीकत यह है कि 2022 में 11.07 अरब डालर का मुनाफा हुआ है जो 2019 में हुए मुनाफे के बराबर है।
यूनियन मजदूरों के संघर्षों को कैसे पीछे धकेल रही है इसे मजदूर कार और जीप निर्माता फोर्ड, जी एम और स्टैलेंटिस (बिग थ्री) की हड़ताल में देख रहे हैं। यू ए डब्ल्यू की सदस्यता 1.5 लाख है लेकिन मात्र 25 हजार मजदूर ही हड़ताल पर हैं। यूनियन ने हड़ताल के लिए स्टैंड अप रणनीति अपनाकर बाकी मजदूरों को हड़ताल पर जाने से रोक दिया है और इस तरह मालिकों पर हड़ताल का असर नहीं पड़ रहा है क्योंकि उनका उत्पादन ज्यादा प्रभावित नहीं हो रहा है। मैक ट्रक कंपनी के मजदूर इसे समझकर यूनियन नेतृत्व पर दबाव डाल रहे हैं। यूनियन नेतृत्व आटो क्षेत्र के इन हड़ताली मज़दूरों की एकता न बनने देने के लिए प्रयास कर रहा है।
अमेरिका में लगभग हर चार साल पर कंपनियों में समझौते होते हैं और अब लगातार देखने में यह आ रहा है कि कंपनियों के मालिक आसानी से मज़दूरों की बात नहीं मान रहे हैं और मजदूरों को हड़ताल का सहारा लेना ही पड़ रहा है। यूनियन भी मजदूरों से ज्यादा मालिकों के साथ खड़ी दिखाई दे रही हैं। पर मजदूर लड़ना चाहते हैं और वे अपने हक-अधिकारों के लिए लगभग बीते एक माह से संघर्ष के मैदान में डटे हैं।
अमेरिका : मैक ट्रक के मजदूर भी हड़ताल पर
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।