लोकसभा चुनाव के बाद 7 राज्यों की 13 सीटों पर उपचुनाव हुआ। उपचुनाव के परिणाम भाजपा के लिए बुरे रहे। 13 सीटों में से भाजपा सिर्फ 2 सीटें ही जीत पायी। 10 सीटें इंडिया गठबंधन से जुड़ी पार्टियों के खाते में गयीं। बिहार की एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की।
पशिचम बंगाल की चारों सीटें टीएमसी ने जीतीं, हिमाचल में दो सीटें कांग्रेस व एक सीट भाजपा ने जीती, उत्तराखण्ड में दोनों सीटें कांग्रेस ने जीतीं। तमिलनाडु में डीएमके, पंजाब में आप पार्टी, मध्य प्रदेश में भाजपा ने एक-एक सीट जीती।
यह चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि यह लोकसभा चुनाव के कुछ ही समय बाद हुआ। लोकसभा चुनाव में भाजपा का 400 पार और मोदी की गारंटी औंधे मुंह गिर गयी। और भाजपा 240 सीटों पर ही सिमट गई थी।
इन उप चुनाव में भी भाजपा ने चुनाव जीतने के अपने सारे हथकंडे अपनाए। उत्तराखण्ड की मंगलौर सीट पर तो भाजपा के गुंडे मुसलमान वोटरों को पीटते दिखे। वे उन्हें वोट डालने से रोक रहे थे और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ था और भाजपा के गुंडों का ही साथ दे रहा था।
हिंदुत्व की राजनीति में माहिर भाजपा के अभी अयोध्या के जख्म भरे भी नहीं थे कि इन उप चुनाव में वे बद्रीनाथ की सीट भी हार गए। जहां कई बार मोदी ध्यान मुद्रा ले चुके थे। और धामी जी मत्था टेक चुके थे।
लोकसभा चुनाव की तरह ही यह चुनाव भी जनता का भाजपा पर दरकते विश्वास को दिखाता है। रोजी-रोटी, महंगाई और सरकार की कुनीतियों से त्रस्त जनता भाजपा को नकार रही है। लेकिन अभी लोग अपने संघर्षों के विकल्प की जगह किसी दूसरे पूंजीवादी दल पर ही भरोसा जता रहे हैं।