देश में बढ़ती बेरोजगारी

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ई पी एफ ओ) के नवीनतम आंकड़े बता रहे हैं कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के सदस्यों की संख्या में 4 फीसदी की कमी आई है। 2022-23 में संगठन से 1,14,98,453 सदस्य जुड़े हुए थे जो 2023-24 में घट कर 1.09 करोड़ रह गए। यह सांख्यिकी विभाग के आंकड़े है, जो हाल में जारी किए गए हैं।
    
वहीं एक खबर यह भी है कि विश्व पटल पर पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दावा करने वाले देश में देश का युवा बेरोजगारी की मार झेल रहा है, केवल ज्यादा पढ़े-लिखे खासकर तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवाओं को तो नौकरी मिल सकी है लेकिन नीट जैसे तमाम पेपर लीक होने से युवा मायूस हो रहे हैं। सरकारी नौकरी की बात तो एक तरफ, स्टार्ट अप इंडिया में पिछले 7 सालों में 18 लाख यूनिट बंद हो गईं और करीब 54 लाख रोजगार चले गए।     
    
सरकार नौकरी के लिए स्किल डवलपमेंट की बात करती है परंतु भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर श्री रघुराम राजन बताते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि स्किल को और बढ़ाने की जरूरत है जिसके लिए उच्च शिक्षा की जरूरत होगी। लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह कि भारत सरकार ने शिक्षा के बजट को बढ़ाने की जगह कम कर दिया है।
    
प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए अधिक रोजगार की आवश्यकता होती है वो भी असंगठित और संगठित दोनों ही क्षेत्रों में। क्या प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाए बगैर ही हम असल में विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकेंगे?
      
-संजीव मेहरोत्रा ,महामंत्री, बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन बरेली

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता