ब्राजील की राजधानी साओ पाउलो में 11 अगस्त को छात्रों और अध्यापकों ने लूला सरकार द्वारा शिक्षा बजट में की गयी कटौती के खिलाफ प्रदर्शन किया। लूला सरकार ने जुलाई के अंत में पेश शिक्षा बजट में 1.5 अरब रियास (300 मिलियन डालर) की कटौती की है।
कई यूनियनों यहां तक कि सरकार से जुड़ी यूनियन ने भी इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया। लेकिन इन यूनियनों का मकसद प्रदर्शन को व्यापक न बनने देने और इस कटौती के खिलाफ छात्रों और अध्यापकों के आक्रोश को शांत करने का मुख्य था। ज्ञात हो कि ब्राजील में इन यूनियनों ने पिछले साल बोलसेनारो द्वांरा शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे सुधारों का विरोध किया था और छात्रों और अध्यापकों के आक्रोश को लूला की पार्टी के पक्ष में भुनाकर लूला को सत्ता तक पहुंचाया था। और आज लूला की सरकार द्वारा उन्हीं शिक्षा सुधारों को आगे बढ़ाया रहा है तो ये यूनियनें छात्रों और अध्यापकों का ध्यान लूला सरकार से हटाना चाहती हैं।
सरकार द्वारा बजट में कटौती का सीधा प्रभाव जहां अध्यापकों को मिलने वाली तनख्वाह पर पड़ेगा वहीं छात्रों को मिलने वाली सुविधाएं जैसे परिवहन, स्कालरशिप भी कम होगी। हाईस्कूल रिफार्म के जरिये कारपोरेटों के हिसाब से शिक्षा छात्रों को दी जाएगी। इसलिए कारपोरेट सरकार से खुश है।
ब्राजील के शिक्षा मंत्री कैमिलो संताना ने शिक्षण संस्थानों में बड़े-बड़े बैंक और कंपनी के लोगों को बैठा रखा है तब जाहिर है जो नीतियां बनेंगी वे कारपोरेट के पक्ष में ही बनेंगी।
छात्रों और अध्यापकों के इस संघर्ष को पूरे देश के स्तर पर एक साथ लड़ने की जगह अलग-अलग यूनियन अलग-अलग चला रही हैं। एक यूनियन सी एन टी ई ने साओ पाउलो की रैली से दो दिन पहले ही ब्रासीलिया में प्रदर्शन किया और इस तरह बड़े स्तर की एकता बनने में बाधा पैदा की।
21 वीं सदी के शुरुवाती वर्षों में लूला ने एक नए समाजवाद की बात की थी लेकिन यह ज्यादा से ज्यादा चन्द लोक कल्याणकारी कदमों वाला पूंजीवादी राज्य ही था। बाद में जब 2007-08 के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्था गर्त में गयी और पूरी दुनिया के स्तर पर मजदूरों-मेहनतकशों पर हमले बोले जाने लगे तो वही लूला और उसकी पार्टी वर्कर्स पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गयी और लूला को जेल जाना पड़ा। और जनता में आक्रोश और असंतोष पैदा हुआ। इस आक्रोश और असंतोष की वजह से ब्राजील में दक्षिणपंथी पार्टी सत्ता में आयी जिसने समाज और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया।
इससे तंग आकर लोगों में फिर आक्रोश पैदा हुआ और इसका फायदा उठाकर आज लूला फिर सत्ता में विराजमान हैं। लेकिन आज वो वह सब भी करने की स्थिति में नहीं हैं जो उन्होंने ब्राजील में 21 वीं सदी के शुरुवाती वर्षों में किया था। अब वो जनता को राहत नहीं दे सकते क्योंकि वे और उनकी पार्टी भी उसी पूंजीवादी व्यवस्था की पैरोकार हैं जैसी अन्य। अब ऐसे में जनता में फिर से आक्रोश पैदा हो रहा है। खुद वर्कर्स पार्टी द्वारा बहिआ में 17 साल तक शासन करने और वहां की सैनिक पुलिस के ज्यादा खतरनाक होने के बावजूद वहां भी प्रदर्शन की तैयारियां हो रही हैं।
लूला सरकार द्वारा कटौती कार्यक्रमों को लागू करने से मेहनतकश जनता के सामने यह तो स्पष्ट होता जा रहा है कि सभी पार्टियां एक जैसी ही हैं लेकिन इससे आगे का रास्ता वे नहीं खोज पा रहे हैं। यह रास्ता खोजने का काम केवल और केवल क्रांतिकारी संगठन ही कर सकते हैं।
ब्राजील : शिक्षा बजट में कटौती के खिलाफ प्रदर्शन
राष्ट्रीय
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
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