अभियान में प्रशासन द्वारा अवरोध पैदा करने की कोशिश

हल्द्वानी (उत्तराखंड)/ 16 अगस्त की शाम को हल्द्वानी के बनभूलपुरा के इलाके में परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के साथियों द्वारा अभियान चलाया गया। अभियान के बाद रात के 10 बजकर 16 पर मिनट पर पछास के महासचिव महेश के पास बनभूलपुरा थाने से एक फोन कॉल आया। संगठन पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि अभी थाने आ जाओ, आप लोगों ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन के पर्चे बांटे हैं। इससे दो समुदायों के बीच में झगड़ा बढ़ने की संभावना बढ़ रही है। यह मुस्लिमों को आक्रोशित कर रहा है। कार्यकर्ताओं ने रात में थाने आने की बात से इनकार करते हुए दिन में थाने आने की बात कही।
    
पुलिस के अधिकारी द्वारा रात में थाने आने की बात पर जोर दिया गया। कहा कि आपके इस पर्चे से शहर का माहौल खराब होने की संभावना है। अभी आकर थाना प्रभारी साहब से बात करो। कार्यकर्ताओं ने कहा रात में थाने आने की कोई वजह नहीं है। इनकार करते हुए दिन में थाने आने की बात कही।
    
दूसरे दिन सुबह के समय पछास और प्रमएके के कार्यकर्ता बनभूलपुरा थाने में अपना पक्ष रखने के लिए पहुंचे। थाने में पुलिस अधिकारी और एलआईयू कर्मी मौजूद थे। थाने में उन लोगों ने कहा हिंदू फासीवाद से आपका क्या तात्पर्य है। संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा कहा गया आज समाज के अंदर हिंदू-मुसलमान के धार्मिक आधार पर विभाजन को बढ़ावा दिया जा रहा है। कारपोरेट की लूट को और तेज किया जा रहा है। आरएसएस का एजेंडा हिंदू फासीवादी शासन कायम करने के लिए समाज का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तेज किया जा रहा है। कार्यकर्ताओं द्वारा हिंदू फासीवाद के पीछे का अपना पक्ष रखा गया। इसी दौरान थाने में एलआईयू कर्मी द्वारा कहा गया कि आप लोग जो पर्चा बांट रहे हैं यह पर्चा हिंदू और मुसलमान के बीच नफरत को बढ़ाएगा। हमारे लिए लॉ एंड आर्डर की समस्या खड़ी कर देगा। काफी तीखे रूप में बदतमीजी से बात की गई। वहां संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा उनके इस तरह बात करने के व्यवहार, महिलाओं से बात करने के तरीके पर तीखी नोंक-झोंक हुई। कहा गया हम बात करने आए हैं तो सही और मानवीय तरीके से बात की जाए। 
    
पुलिस के अधिकारी पर्चे की एक-एक लाइन और शब्द को कोट कर विरोध जता रहे थे। कार्यकर्ताओं ने कहा पूरा पर्चा ही धर्म के नाम पर किसी भी राष्ट्र बनाने की बात को खारिज करता है। पूरा पर्चा ही हिंदू और मुस्लिम एकता की बात करता है। कारपोरेट पूंजी की अंधी लूट का विरोध करता है। पर्चा मांग करता है कि समाज को जातीय, धार्मिक, नस्लीय बंटवारे की जगह एकता के सूत्र से ही आगे बढ़ाया जा सकता है।
    
पुलिस अधिकारियों से पूछा गया आपका विरोध किस चीज से है। पुलिस के अधिकारी पर्चा बांटने की परमिशन की मांग करने लगे। इस पर कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह उनका जनवादी और संवैधानिक अधिकार है अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए। इस पर वह उत्तराखंड पुलिस के कानून का हवाला देने लगे कि उत्तराखंड पुलिस के कानून में किसी भी राजनीतिक कार्य को करने के लिए परमिशन की आवश्यकता होती है। संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा कहा गया यह उनके जनवाद का हनन है। जनवाद को लगातार कम करने, खत्म करने के विरोध में ही वे फासीवाद विरोधी अभियान को चला रहे हैं। उसे रोकने की यह एक अभिव्यक्ति है। वह धमकी देते हुए कहने लगे आपको अगर पर्चा बांटने का अधिकार है तो कानून को भी अपना काम करने का अधिकार है। आप अपना काम करिए कानून अपना काम करेगा।
    
17 अगस्त को बनभूलपुरा इलाके में लोगों से बात करने पर मालूम चला कुछ लोगों ने (संभवतः सत्ताधारी दल भाजपा के सर्मथक लोगों ने) प्रशासन को बताया कि कुछ लोग आकर हिंदू-मुसलमान के खिलाफ वाला पर्चा बांट कर गए हैं। इसी दौरान प्रशासन सक्रिय हुआ और उसने जिस इलाके में पर्चा बांटा गया था वहां जाकर लोगों से जानकारी ली। आधे घंटे के अंदर यह अफवाह उड़ी और जब पर्चा पढ़ा गया तो लोगों ने इस पर्चे को सराहा।    -हल्द्वानी संवाददाता
 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।