देश में लगातार गहरा रहे हिंदू फासीवाद के खतरे के मद्देनजर जुलाई-अगस्त माह में इसके विरोध में एक अभियान संगठित किया गया। यह अभियान इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया गया।
अभियान हेतु हिंदू फासीवाद की असलियत और इसके वर्ग चरित्र को उजागर करते हुये एक पर्चा और पुस्तिका भी जारी की गई थी। पर्चे में हिंदू फासीवादियों की तुलना जर्मनी के नाजीवादियों-फासीवादियों से करते हुये कहा गया है कि ‘‘हिंदू राष्ट्र की मांग हिंदू फासीवादियों की मांग है। यह मांग कुछ वैसी ही मांग है जैसी कभी जर्मनी में नाजीवादी-फासीवादियों की मांग थी। हिटलर इन नाजीवादियों का नेता था’’।
‘‘हिंदू फ़ासीवादियों के यहां ‘जर्मन नस्ल’ का स्थान ‘‘हिंदू’’ ले लेता है। जर्मनी को ‘‘शुद्ध’’ करने के लिये हिटलर जैसे यहूदियों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताता और उनका क़त्लेआम करवाता था ठीक वैसे ही हिंदू फासीवादी अपने निशाने पर मुस्लिम और ईसाइयों को लेते हैं। हिटलर जैसे जर्मनी की सभी समस्याओं की जड़ यहूदियों को बतलाता था ठीक वैसे ही ये हिटलर की नकल कर उसके तर्क का इस्तेमाल कर भारत की समस्याओं की जड़ धार्मिक अल्पसंख्यकों को बताते हैं’’।
‘‘हिटलर की तरह इन्हें भी लोकतंत्र की बात करने वाले, बराबरी-न्याय की बात करने वाले, मानवाधिकार या मजदूर अधिकार की बात करने वालों से खुली नफरत है। हिटलर की तरह इन्हें भी कम्युनिस्ट फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। इनके लिये जो कोई भी मजदूर, किसान, बेरोजगार नौजवान, औरतों या कश्मीरी-नगा-मणिपुरियों या फिर शोषितों-उत्पीड़ितों की बात करता है तो वह टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य है। ‘अर्बन नक्सल’ है’’।
‘‘हिटलर पूरी दुनिया पर शासन करना चाहता था। भारत के हिंदू फासीवादी भी पूरी दुनिया का ‘गुरू’ बनना चाहते हैं।’’।
इसी पर्चे और पुस्तिका (जिसमें फासीवाद, उसके वर्गीय चरित्र व इतिहास और हिंदू फासीवाद को अधिक विस्तार से समझाया गया है) के साथ घर-घर जाकर, नुक्कड़ सभाओं और नुक्कड़ नाटक के माध्यम से यह पूरा अभियान दिल्ली, हरियाणा के फरीदाबाद और गुड़गांव, उत्तराखंड में गढ़वाल मंडल के देहरादून, हरिद्वार और कोटद्वार व कुमाऊं मंडल के काशीपुर, रामनगर, कालाढूंगी, हल्द्वानी, लालकुआं-बिंदुखत्ता, रुद्रपुर और पंतनगर तथा उत्तर प्रदेश के बरेली, मऊ, बलिया, देवरिया इत्यादि जगहों पर संचालित किया गया।
जिस समय यह अभियान चल रहा था उसी दौरान मणिपुर में कुकी जनजाति की महिलाओं को मैतेई भीड़ द्वारा निर्वस्त्र कर घुमाने का वीडियो जारी हुआ। मानवता को शर्मसार कर देने वाली इस बर्बर घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। हरियाणा के फरीदाबाद में 23 जुलाई को हिंदू फासीवाद विरोधी अभियान के दौरान मणिपुर की इसी घटना पर जगह-जगह नुक्कड़ सभा कर मणिपुर के हालातों को विस्तार से बताया जा रहा था कि वहां 200 से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 250 से भी अधिक चर्च आग के हवाले कर दिये गये हैं, कि पचास हजार से भी अधिक लोग अपना घर-बार छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं और महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है, कि आर एस एस - भाजपा ने मणिपुर को हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया है और यही वह हिंदू राष्ट्र है जो कि ये पूरे देश में कायम करना चाहते हैं।
इससे बौखलाये हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लम्पट तत्वों ने अभियान पर लाठी-डंडों और लोहे की रॉड़ से हमला किया जिसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र के तीन कार्यकर्ता- संतोष, नीतेश और दीपक- गंभीर रूप से घायल हो गये। इसी दौरान संगठन के कार्यकर्ताओं ने भी तुरंत ही पलटवार कर दो लम्पटों की पिटाई कर दी जबकि बाकी लम्पट भागने में सफल हो गये।
इस मामले में पुलिस वालों का व्यवहार भी हिंदू फासीवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं सरीखा ही रहा और उन्होंने लंपट तत्वों का बचाव करते हुये उल्टा संगठन पर ही सवाल खड़ा कर दिया कि ‘‘किसकी अनुमति से प्रचार अभियान चला रहे हो ?’’ काफी दबाव पड़ने पर ही पुलिस ने तहरीर ली और मामूली धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। परिणामस्वरूप अपराधियों को आसानी से जमानत मिल गई।
इसी तरह अभियान के दौरान फरीदाबाद में ही एक अन्य जगह पर कुछ लंपट तत्वों से तीखी नोकझोंक हुई। इसके उलट फरीदाबाद की मजदूर-मेहनतकश जनता ने अभियान को सराहा। मणिपुर की घटना पर महिलाओं ने खुलकर अपनी संवेदना को पीड़ित महिलाओं के साथ व्यक्त किया।
हरियाणा के ही गुड़गांव-मानेसर में भी अभियान के दौरान दो जगहों पर हिंदू फासीवादी संगठनों से जुड़े लम्पटों के साथ तीखी नोकझोंक हुई। जबकि उत्तराखंड के पंतनगर में 30 जुलाई को अभियान के दौरान पुलिस ने हस्तक्षेप किया और इंकलाबी मजदूर केंद्र के तीन कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया और दबाव बनाने की कोशिश की कि दोबारा यह पर्चा नहीं बांटोगे लेकिन संगठन के कार्यकर्ताओं ने पुलिस की इस मांग को खारिज कर दिया। जल्द ही पंतनगर और रुद्रपुर से संगठन के लोग पंतनगर थाने पर एकत्र हो गये; और तब कुछ देर की बहस के बाद पुलिस को बिना शर्त तीनों लोगों को रिहा करना पड़ा। और इसके अगले दिन 31 जुलाई को उधमसिंह के शहीदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मजदूरों और महिलाओं ने भागीदार कर पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन को साफ संदेश दे दिया कि यदि वे हिंदू फासीवादी संगठनों के कारकूनों सरीखा व्यवहार करेंगे तो उसे यूं ही नहीं बर्दाश्त किया जायेगा।
इसी तरह हल्द्वानी में पुलिस ने व्यवधान पैदा किया। जनता ने अपनी समस्याओं खासकर महंगाई और बेरोजगारी पर बातचीत करते हुये अभियान को सराहा। इस व्यापक अभियान के दौरान 6 हजार पुस्तिकायें और करीब 50 हजार पर्चे का वितरण किया गया।
अभियान के दौरान लोगों को बताया गया कि आर एस एस-भाजपा जिस हिंदू राष्ट्र को कायम करने की बात कर रहे हैं वह असल में एक हिंदू फासीवादी निजाम होगा; जिसमें लोकतंत्र, जो कि असल में पूंजीपति वर्ग की छिपी तानाशाही होती है, के आवरण को उतार फेंक पूंजीपति वर्ग के सबसे प्रतिक्रियावादी हिस्सों की नंगी-आतंकी तानाशाही कायम की जायेगी। मोदी सरकार देश की खेती-किसानी को कारपोरेट पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय निगमों के हवाले करने के मकसद से तीन कृषि कानून लाकर (जिन्हें किसानों ने अपने ऐतिहासिक आंदोलन के बल पर वापस करवा कर ही दम लिया) और आजादी के बाद मजदूरों पर सबसे बड़ा हमला करते हुये 4 लेबर कोड्स पारित कर और शिक्षा के निजीकरण के दस्तावेज नई शिक्षा नीति के साथ अपने घोर कारपोरेट परस्त रुख को पहले ही स्पष्ट कर चुकी है। यदि ये हिंदू फासीवादी निजाम कायम करने में सफल हो गये तो जनता को हासिल जनवादी अधिकारों- संगठन बनाने, सभा करने, ट्रेड यूनियन गठित करने, सरकार की नीतियों और फैसलों पर अपना विरोध प्रदर्शित करने इत्यादि सभी को छीन लेंगे।
अभियान में लोगों को बताया गया कि जब तक पूंजीवादी व्यवस्था कायम है तब तक फ़ासीवाद का खतरा भी कायम रहेगा; क्योंकि पूंजीवाद का संकट ही असल में ऐसी ताकतों को उभरने का मौका देता है। अतः आवश्यक है कि हम अपने संघर्षों को पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध जारी क्रांतिकारी संघर्षों से जोड़ें। -विशेष संवाददाता
हिंदू फासीवाद के विरुद्ध व्यापक अभियान
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।