चन्द्रयान-3
चन्द्रयान-3 मिशन की सफलता निसंदेह काबिलेतारीफ है जो भारतीय वैज्ञानिकों के अनथक सफल-असफल प्रयोगों का सफल परीक्षण है। यह दिखाता है कि पिछले 75 वर्षों में एक देश के रूप में हमारा विज्ञान का सफर और उसकी उपलब्धियां शानदार भले ही न रही हों पर कुछ मामलों में संतोषजनक जरूर रही हैं। विज्ञान की प्रगति इसीलिए भारत में शानदार नहीं कही जा सकती क्योंकि वैज्ञानिकता-तार्किक विमर्श प्रयोगशाला से बाहर भारतीय जनमानस की चेतना का हिस्सा कभी नहीं बन पाया। कि आज इसी वजह से संघी शासक विज्ञान को मुंह चिढ़ाते हुए धर्मान्धता का साम्राज्य कायम कर ले रहे हैं। इसके साथ ही पश्चिमी विकसित देशों की आम वैज्ञानिक प्रगति से हम काफी पीछे हैं।
जब पूरे उत्तर भारत में धर्मान्धता सड़कों पर नंगा नाच कर रही हो तब डार्विन के नव दुश्मनों का विज्ञान की उपलब्धि के आगे इस तरह नतमस्तक होना, भाव विह्वल होना और तालियां बजाना जहां एक ओर विज्ञान के सभी सच्चे विद्यार्थियों के लिए सुकून देने वाला पल था। वहीं दूसरी ओर विज्ञान की इस उपलब्धि को भी अपने क्षुद्र हितों में इस्तेमाल करते शासक-चाटुकार मीडिया आशंकित भी करते हैं कि धर्मान्धता के व्यापारी किस चालाकी से वैज्ञानिक उपलब्धि को अपनी सरकार की उपलब्धि बता विज्ञान की जड़ खोदने में जुटे हैं। उनके शासन में विज्ञान के हश्र का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि चाटुकार मीडिया चन्द्रयान-3 के पीछे के विज्ञान का वर्णन करने के बजाय उसकी सफलता के लिए की जा रही पूजा पाठ के दृश्य ही दिखाता रहता है। कि वैज्ञानिक भी धर्मान्धता के इस माहौल में सफलता के लिए पूजा अर्चना करने को जुट जाते हैं या मजबूर हो जाते हैं कि चन्द्रमा के लैंडिंग स्थल का नाम भी शिव शक्ति प्वाइंट रख दिया जाता है। कि एक हिन्दू संत चांद को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग करने लगता है।
यह सच में कितना अद्भुत है कि एक तरफ देश में विज्ञान की यह प्रगति है तो दूसरी ओर देश एक धर्मान्ध तानाशाह को अपने कंधों पर ढो रहा है। ऐसा शासक जो चन्द्रयान-3 की सफलता का श्रेय लेने को आतुर है और उसके लिए वह लगातार टीवी से चिपका रहता है ताकि वह अपना यशोगान करवा सके। तो दूसरी ओर वह कोरोना वायरस को पराजित करने के लिए पूरे देश से थाली बजवा और लाइटें बंद करवाकर अवैज्ञानिकता का प्रचार कर रहा था।
देश के शासक वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में देश का प्रधानमंत्री और शासक वर्ग दरअसल यही तो चाहते हैं। उन्हें अपनी पूंजी के फायदे के लिए, अपनी रक्षा और संचार की जरूरतों के लिए, अंतरक्षीय प्रतियोगिता और प्रतिद्वन्द्विता के लिए विज्ञान की जरूरत है लेकिन वे विज्ञान तक जनसामान्य की पहुंच से डरते भी हैं। वे जनसमुदाय की वैज्ञानिक चेतना को बढ़ाने के प्रति आशंकित भी रहते हैं।
मोदी-योगी जैसे लोग इस देश में प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री यूं ही नहीं बन जाते हैं। वे लोगों को थाली पिटवाकर कोरोना भगाने के लिए यूं ही तैयार नहीं कर लेते। इसकी वजह यह है कि समाज में विज्ञान की चेतना का स्तर इतना न्यून है कि बच्चों को तो छोड़िए बड़ों के लिए भी चंदा मामा ही है। शासक जनता को धर्मान्ध बनाकर रखते हैं; वे विज्ञान से ज्यादा धर्म और कर्मकाण्डों वाले विचारों का प्रचार-प्रसार करते हैं और अपनी बारी में ऐसी धर्मान्ध प्रजा घृणित, धर्मान्ध और अवैज्ञानिक लोगों को अपना नायक मान बैठती है।
कितना अच्छा होता जब टीवी स्क्रीनों से चिपकी भारत की जनता का बहुलांश चन्द्रयान-3 की उपलब्धि के वैज्ञानिक महत्व को, उसके पीछे के आम वैज्ञानिक नियमों को जान समझ पाता, देश के गांवों की चौपालों से लेकर शहरों के नुक्कड़ों-चौराहों तक इस उपलब्धि से ज्यादा इस मिशन के पीछे के विज्ञान पर विमर्श होता। तब वे किसी धर्मान्ध तानाशाह पर सम्मोहित होने के बजाय, उसके लिए तालियां बजाने के बजाय, खुद का वैज्ञानिक नजरिया विकसित कर रहे होते। वे उस विज्ञान के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करते जो धर्म, धर्मान्धों और धार्मिक मठाधीशों और धर्म आधारित शासकों से छुटकारा दिलाने में ब्रहमास्त्र के रूप में हमारा सारथी बनता रहा है।
यह देश की जनता का दुर्भाग्य है कि एक तरफ वह चन्द्रयान-3 की सफलता की साक्षी बन रही थी तो दूसरी ओर देश भर में चन्द्रयान-3 मिशन से ठीक पूर्व देश की जनता के सामने मिशन की सफलता के लिए इसरो वैज्ञानिकों की पूजा-पाठ की तस्वीरें प्रचारित की जा रही थीं। चन्द्रयान-3 की लैंडिंग के बाद इसरो प्रमुख यह दावा करके कि ‘साइंस के सिद्धान्त वेदों से आये हैं’, कि ‘कम्प्यूटर की भाषा को संस्कृत सूट करती है’ आदि अवैज्ञानिक बातें कहकर अपनी ही उपलब्धियों को शून्य से गुणा कर रहे थे। वैज्ञानिकों की ऐसी अवैज्ञानिक और अनैतिहासिक उवाच हमारे जैसे देशों की ही विशेषता हो सकती है।
जनता की मुट््ठी में विज्ञान तभी आयेगा जब विज्ञान को पूंजी व पूंजीपतियों की कैद से मुक्त कराया जायेगा। तब सोमनाथ जैसे अच्छे वैज्ञानिकों को उलटबासियां करने की जरूरत नहीं होगी। क्योंकि हर कोई ब्रूनो और गैलीलियों नहीं होता जो धर्मान्ध सत्ता के खिलाफ सीना तान खड़ा हो सके।