देवदूत और चुनाव आयोग

आखिरकार फकीर को विचित्र अनुभूति हो ही गई कि नरेन्द्र दामोदर दास मोदी नाम का व्यक्ति जैवीय नहीं है बल्कि उसे तो परमात्मा ने भेजा है। कि वह तो देवदूत है। देवदूत को अपने भीतर अपार ऊर्जा और शक्ति का एहसास भी हुआ। 
    
फकीर को, भले ही अपने देवदूत होने के बारे में वानप्रस्थ अवस्था के अंत के करीब पता चला हो मगर भक्त समुदाय तो उन्हें ही परमात्मा मानता है। कोई उन्हें राम कहता है तो कोई विष्णु। देवदूत का भी वैसे यही मानना है।
    
देवदूत ने कभी केदारनाथ में ध्यान लगाया था अब वो कन्याकुमारी में ध्यान लगाने वाला है।
    
देवदूत ने अब घोषित कर दिया है कि परमात्मा ने उसे किसी उद्देश्य से धरती पर भेजा है। वही सब कुछ मुझसे करवा रहा है। विकसित भारत का लक्ष्य जब तक पूरा नहीं होगा, तब तक परमात्मा अपने देवदूत को धरती पर ही रहने देगा। फकीर यानी देवदूत 2047 तक धरती पर ही रहेंगे। 
    
यह देवदूत का आभामंडल ही है कि चुनाव आयोग का गठन भी इसी तरह हुआ है। तीनों ही शख्स देवदूत के प्रभाव में हैं। भक्तिभाव से देवदूत को सत्ता पर लाने के लिए हर जतन कर रहे हैं। 
    
19 और 26 अप्रैल को चुनाव हुए। मगर चुनाव का वोट प्रतिशत बताने में ही 11 दिन लग गए। 30 अप्रैल को आंकड़े जारी हुए तो पता लगा कि 5-6 प्रतिशत वोट चुनाव के दिन के आंकड़े की तुलना में बढ़ गए थे। 1 करोड़ से ज्यादा वोट इस तरह बढ़ने की बातें सामने आ रही हैं।
    
देवदूत के आभामंडल से न्यायाधीश भी कैसे ना सम्मोहित हों। इसी सम्मोहन की अवस्था में ही तो कई फैसले उन्होंने दिए हैं। चुनाव आयोग में दो अन्य लोगों की भर्ती भी इसी तरह हुई। दोनों देवदूत के परम भक्त हैं। 
    
चुनाव आयोग की कथित हेराफेरी का मामला सर्वोच्च न्यायालय गया। न्यायालय से मांग की गई कि 17 सी फार्म के आंकड़ों को बूथवार जारी करने के निर्देश चुनाव आयोग को दिए जाएं।  
    
17 सी फार्म से विशेष बूथ के ईवीएम का सीरियल नंबर, मतदाताओं की संख्या, वोटिंग मशीन में दर्ज हुए वोटों की संख्या, बैलेट पेपर्स की संख्या आदि की जानकारी मालूम होती है। 
    
चुनाव आयोग ने कानूनी बाध्यता ना होने का हवाला देकर तथा आंकड़ों के साथ छेड़ छाड़ की संभावना का फर्जी तर्क देकर 17 सी का बूथवार आंकड़ा जारी करने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने भी निर्देश जारी करने से इंकार कर दिया।
    
देवदूत अपने देवदूत होने के भ्रम से कई बार बाहर आते-जाते रहते हैं। इस स्थिति में बहुत कुछ अनाप-शनाप बोल जाते हैं। कभी अपनी ही बात का खंडन करने लग जाते हैं। ये अनाप-शनाप बातें नफरत भरी व भ्रम फैलाने वाली और झूठी होती हैं। 
    
इस बारे में चुनाव आयोग में देवदूत की शिकायत हुईं। चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगा। मगर होना तो कुछ भी नहीं था और हुआ भी नहीं।
    
देवदूत ने जब घोषणा कर ही दी है कि विकसित भारत का निर्माण उन्हीं के हाथों होना है। अन्य साधारण मानव वाले विपक्षी पूंजीवादी पार्टियों के बस का यह काम है नहीं। इसलिए तय है कि फिर देवदूत को किसी भी कीमत पर परमात्मा के कथित विकसित भारत के निर्माण के उद्देश्य के लिए सत्ता पर बने रहना है।
    
चुनाव आयोग, न्यायालय, मीडिया और ई डी आदि इसी काम में बखूबी लगे हुए हैं।
    
वैसे इतिहास में एक और शख्स था जिसने खुद को देवदूत घोषित किया था। जो खुद के बारे में जीसस क्राइस्ट होने के भ्रम में जीता था। जिसके बारे में अंधाधुध प्रचार किया गया और बताया व पढ़ाया गया कि यह आदमी ईश्वर का भेजा हुआ दूत है। उसका क्या हश्र हुआ, यह अब इतिहास है।
    
भाजपा और आर एस एस इस आदमी के मुरीद हैं। सही बात यही है कि अपने देवदूत में परमात्मा ने नहीं बल्कि हिटलर की आत्मा ने सालों साल पहले वास कर लिया था।
    
इस जर्मन नाजीवादी नेता एडोल्फ हिटलर को भी अपने बारे में भ्रम था कि वही ईसा मसीह है। इसकी पार्टी और फासिस्ट दस्तों और प्रचार मंडली ने यह बात पूरे समाज में फैलाई थी। यहां तक कि हिटलर को महान बताने के लिए उसके वैवाहिक होने को पूरी तरह छुपाकर ‘जर्मनी के लिए अविवाहित रहने’ की झूठी खबर जोर-शोर से प्रचारित की गई थी।
    
हिटलर और उसकी पार्टी को पालने-पोसने और सत्ता पर पहुंचाने वाले लोग थाइसेन, क्रूप्स, हेनरी फोर्ड, सीमेंस जैसे बड़े-बड़े उद्योगपति थे। जर्मनी में तब जो भी बर्बर हत्याकांड, नरसंहार किए गए और दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल दिया गया, उसके असल अपराधी यही थे। अंततः जर्मनी की हार हुई और हिटलर व उसकी पार्टी के लोगों को बड़े पैमाने पर आत्महत्याएं करनी पड़ीं।
    
देवदूत, उसकी पार्टी और संगठन जर्मनी के इतिहास को भारत में दोहराने की दिशा में बढ़ रहे हैं। सही मायनों में भारत के क्रूप्स, सीमेंस, फोर्ड ही इसके मूल में हैं। तय है कि यदि ये इसी तरह आगे बढ़ते हैं तब इनका हश्र भी हिटलर की तरह होगा।

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