फ्रांस के प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर को अपने खिलाफ संसद में लाये अविश्वास प्रस्ताव के पारित होने पर इस्तीफा देना पड़ा है। वे महज तीन महीने पहले ही प्रधानमंत्री बनाये गये थे। उनके द्वारा 2025 के बजट प्रस्ताव में कटौती कार्यक्रमों की भरमार थी इसे वे पारित कराने का प्रयास कर रहे थे। पर न्यू पापुलर फ्रंट द्वारा लाये अविश्वास प्रस्ताव के चलते उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी।
पिछले आम चुनावों में दो दौर में चुनाव हुए थे। जुलाई में दूसरे दौर के चुनाव में फासीवादी नेशनल रैली को रोकने के लिए राष्ट्रपति मैक्रां की पार्टी ने संसदीय वामपंथी दलों से गठबंधन कायम किया था। पर चुनाव के पश्चात राष्ट्रपति संसदीय वामपंथी दलों की सरकार बनाने से मुकर गये और उन्होंने नेशनल रैली के समर्थन से सरकार बनवा दी।
मौजूदा बजट के कटौती प्रावधानों पर प्रधानमंत्री को नेशनल रैली से समर्थन की उम्मीद थी। उसे खुश करने के लिए प्रधानमंत्री ने अप्रवासियों के खिलाफ कठोर रुख भी अपनाने की बात की थी। पर नेशनल रैली कटौती कार्यक्रमों का समर्थन करने से मुकर गयी। उसने बजट को विषाक्त बताते हुए अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर दिया जिसके चलते प्रधानमंत्री को गद्दी छोड़नी पड़ी।
मौजूदा राजनीतिक संकट के लिए राष्ट्रपति मैक्रां पूरी तरह जिम्मेदार हैं। अब कई पार्टियां उनके इस्तीफे की मांग कर रही हैं। उम्मीद लगायी जा रही है कि मैक्रां इस्तीफा देने के बजाय न्यू पापुलर फ्रंट के सबसे कम वामपंथी धड़े को प्रधानमंत्री पद सौंप इस गठबंधन में दरार डालने की कोशिश करेंगे।
दरअसल इन बजट प्रस्तावों में शामिल कटौती कार्यक्रमों पर फ्रांस की जनता पहले से आक्रोशित थी। कोई भी पार्टी इन कटौती कार्यक्रमों की खुल कर वकालत कर अपना आधार नहीं खोना चाहती पर सत्ता में आने पर पूंजीपति वर्ग की इच्छा में उसे इन्हीं कटौतियों को आगे बढ़ाना पड़ता है। यहां तक कि धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली भी खुद को कटौती कार्यक्रमों का समर्थक नहीं दिखलाना चाहती।
दक्षिणपंथी नेशनल रैली की नेता मरीन ली पेन इस रणनीतिक उठा पटक के बीच अपने लिए रास्ता तलाश रही हैं। उन्होंने पिछली सरकार का समर्थन वामपंथियों को सत्ता में लाने से रोकने के लिए किया था। अब यह पार्टी अपने विभाजनकारी मुद्दों को और हवा देकर किसी भी तरह सत्ता में पहुंचने की कोशिशें कर रही हैं। संसदीय वामपंथी दलों व मैक्रां की पार्टी का दिवालियापन नेशनल रैली की बढ़त में प्रकारांतर से मदद कर रहा है।
बीते दिनों चुनाव में नेशनल रैली को जब अन्य दलों ने गठबंधन कर बहुमत से रोक लिया था तो यह बात खूब प्रचारित की गयी थी कि फासीवादी ताकतों को चुनावों के जरिये हराया जा सकता है पर 3 माह में ही नयी सरकार के हश्र ने दिखाया कि नेशनल रैली की बढ़त को रोकने में चुनावी गठबंधन बहुत कारगर नहीं रह गये हैं।