चुनावी दस्तावेजों के निरीक्षण से जुड़े नियम में बदलाव

/chunaavi-dastaavejon-ke-nirikshan-se-jude-niyam-mein-badalaav

मोदी सरकार ने चुनाव आयोग की सिफारिश को लागू किया

पिछले दिनों मोदी सरकार और चुनाव आयोग की मिलीभगत पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। अभी हाल में चुनाव आयोग की सिफारिश पर मोदी सरकार ने चुनावी दस्तावेजों के निरीक्षण से सम्बन्धित प्रावधान में एक संशोधन कर इन सवालों को और पुख्ता करने का काम किया है। 
    
मामला कुछ यूं है कि चुनाव आयोग ने चुनावी दस्तावेजों के एक हिस्से को आम जनता की पहुंच से रोकने के लिए भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय से सिफारिश की। इसके तत्काल बाद ही विधि और न्याय मंत्रालय ने सी सी टी वी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज को सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी।
    
अभी तक चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 (2) (अ) में लिखा था कि ‘चुनाव से सम्बन्धित अन्य सभी कागजात सार्वजनिक जांच के लिए खुले रहेंगे’। अब संशोधन के बाद इस नियम में कहा गया है कि ‘चुनाव से सम्बन्धित इन नियमों में निर्दिष्ट अन्य सभी कागजात सार्वजनिक जांच के लिए खुले रहेंगे’। 
    
इस संशोधन के बाद अब केवल चुनावी पत्र (जैसे नामांकन पत्र आदि) ही सार्वजनिक जांच के लिए खुले रहेंगे। इसके साथ ही उम्मीदवारों के लिए फार्म 17 सी जैसे दस्तावेज उपलब्ध रहेंगे लेकिन चुनाव से सम्बन्धित इलेक्ट्रानिक रिकार्ड और सी सी टी वी फुटेज सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं रहेंगे। 
    
चुनाव आयोग ने विधि और न्याय मंत्रालय से यह सिफारिश उस समय की है जब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 9 दिसंबर को चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह वकील महमूद प्राचा को हरियाणा विधानसभा चुनाव से सम्बन्धित आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराये। महमूद प्राचा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर हरियाणा विधानसभा चुनाव से सम्बन्धित वीडियोग्राफी, सी सी टी वी फुटेज और फार्म 17 सी की प्रतियां उपलब्ध कराने की मांग की थी। 
    
तब चुनाव आयोग ने महमूद प्राचा की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि महमूद प्राचा ने न तो चुनाव लड़ा है और न ही वे हरियाणा के निवासी हैं। इसलिए यह दस्तावेज उनको नहीं दिये जा सकते। 
    
तब महमूद प्राचा ने चुनाव संचालन नियम 1961 का हवाला देते हुए कहा कि उम्मीदवार और अन्य व्यक्ति के बीच अंतर यह है कि उम्मीदवार को दस्तावेज निःशुल्क उपलब्ध करवाए जाते हैं जबकि किसी अन्य को इसके लिए निर्धारित शुल्क का भुगतान करना होता है और वे भुगतान करने के लिए तैयार हैं। 
    
इसके बाद हाई कोर्ट के जज ने चुनाव आयोग से महमूद प्राचा को 6 सप्ताह के भीतर दस्तावेज उपलब्ध करवाने को कहा लेकिन उससे पहले ही 2 सप्ताह के भीतर चुनाव आयोग और केंद्र की मोदी सरकार ने नियम में ही संशोधन कर डाला। ‘‘न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी’’। 
    
एक पुरानी हिंदी कहावत है ‘‘हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या’’। यह कहावत उस समय दी जाती थी जब किसी की सच्चाई पर कोई सवाल उठाया जाता है। इसका मतलब है कि यदि कोई आदमी सच्चा है तो फिर उसे डरने की जरूरत नहीं है। कोई भी आकर उसकी जांच कर सकता है। लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसा न कर इस आशंका को ही बल प्रदान किया है कि उस पर चुनावों में धांधली को लेकर जो सवाल उठाये जा रहे हैं उनमें कहीं न कहीं सच्चाई है। 
    
जब इंडियन एक्सप्रेस ने इस सम्बन्ध में चुनाव आयोग से नियम में संशोधन के सम्बन्ध में सवाल पूछा तो एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि मतदान केंद्र के अंदर सी सी टी वी फुटेज के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम में संशोधन किया गया है। सी सी टी वी फुटेज के साझा करने से जम्मू-कश्मीर, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में गंभीर परिणाम हो सकते हैं और मतदाताओं की जान भी जोखिम में पड़ सकती है। अगर ऐसा है भी तो उन क्षेत्रों के लिए विशेष नियम बन सकते हैं लेकिन जिस समय में ये संशोधन किये गये हैं वे दाल में कुछ काला होने की तरफ ही इशारा करते हैं।
    
पिछले सालों में चुनाव आयोग द्वारा मतदान के दिन जो आंकड़े दिये जा रहे हैं वे कुछ दिन बाद बदल जा रहे हैं। इसी तरह जब चुनाव परिणाम के दिन ई वी एम मशीन खोली जा रही हैं तो उसमें बैटरी का प्रतिशत 90 से ऊपर है। चुनावों की तारीखों का केंद्र सरकार की सुविधानुसार तय होना और उसके अनुसार बदल जाना। इसके साथ ही चुनाव में जो धांधलियां हो रही हैं उनमें सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को ही लाभ मिलना दिखाता है कि चुनाव आयोग भी व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) के अन्य अंगों की तरह सत्तारूढ़ संघ-भाजपा के हित में काम कर रहा है।

 

यह भी पढ़ें :-

1. भारतीय चुनाव आयोग न स्वतंत्र न निष्पक्ष

2. चुनाव, लुटेरे दल और पक्षपाती चुनाव आयोग

3. देवदूत और चुनाव आयोग

4. पांच राज्यों में चुनाव: फिर उजागर हुआ पूंजीवाद का विद्रूप चेहरा

5. पूंजीवादी जनतंत्र में ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनाव

6. इलेक्टोरल बाण्ड - चुनाव आयुक्त और न्यायपालिका

7. कितने ही रंग बदले, गिरगिट, गिरगिट ही रहता है

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।