गैंगरेप पीड़िता को ही भुगतनी पड़ रही सजा

राजस्थान के अजमेर जिले में पिछले साल एक नाबालिग छात्रा गैंगरेप का शिकार हुई। गैंगरेप उसके चाचा और दो अन्य ने किया था। कुछ समय पहले छात्रा ने अजमेर के बाल कल्याण आयोग को एक शिकायती पत्र लिखा। जिसमें बताया कि उसे दिसम्बर माह में होने वाली बोर्ड परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया। छात्रा ने पत्र में कहा कि स्कूल वालों ने कहा कि वो घर पर ही पढ़ाई करे, उसके आने से ‘‘स्कूल का माहौल खराब होगा’’। फिर बोर्ड परीक्षा की लिस्ट से ही उसका नाम हटा दिया गया।

यह भारतीय पुरूषप्रधान समाज की सच्चाई है। यह सोच घर, मुहल्ले, पुलिस, कोर्ट हर जगह पसरी हुई मिल जाती है। इसी कारण गैंगरेप, घरेलू हिंसा या किसी भी तरह के अपराध के लिए पहले तो महिला को ही दोषी ठहराया जाता है। पीड़ित को लोकलाज व अन्य कारणों से चुप रहने को कहा जाता है। इसीलिए महिला अपराधों से जुडेे़ ढेरों मामले तो प्रकाश में ही नहीं आ पाते। ये मामले कहीं दर्ज नहीं होते। सहते रहने के कारण तमाम महिलाएं रोज-ब-रोज और भयानक अपराध झेलने को मजबूर हो जाती हैं। उसे ही अपनी नियति मान लेती हैं।

जो महिलाएं सहने के स्थान पर लड़ने की राह चुनती हैं उन्हें भी न्याय पाने के लिए लम्बी जददोजहद करनी पड़ती है। समाज में पसरी पुरूषप्रधानता की सोच के कारण पीड़ित महिला के प्रति कोई सहानभूति नहीं रखता, ना ही उसे सामान्य जीवन जीने के लिए अनुकूल माहौल ही देता है।

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को