इस्पात कम्पनी में विस्फोट से चार मजदूर बुरी तरह झुलसे

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में 25 जनवरी को एक इस्पात कंपनी में भीषण हादसा हो गया। कंपनी में आग लगने से चार मजदूर गंभीर रूप से झुलस गए। यह हादसा उस समय हुआ, जब लोहा पिघलाने की भट्ठी में एकाएक विस्फोट हो गया। विस्फोट के बाद लोहे का लावा उछलकर दूर तक फैल गया, जिसकी चपेट में आस-पास काम करने वाले मजदूर आ गये।

ये हादसा सुमेरपुर स्थित रिमझिम इस्पात फैक्ट्री में हुआ है। 25 जनवरी की सुबह कुछ मजदूर लोहे के 40 टन स्क्रेप को भट्ठी में पिघला रहे थे। लेकिन इस स्क्रेप में कोई विस्फोटक पदार्थ था, जिससे एकाएक विस्फोट होने लगा। भट्ठी का लावा दूर तक फैल गया। आस-पास काम कर रहे चार मजदूर बुरी तरह से झुलस गये और कई मजदूरों की झुलसने की खबर आ रही है।

इस इस्पात फैक्ट्री में पहले भी कई बार भट्ठी फटने की घटनाएं हो चुकी हैं। इसके पहले भी मजदूरों की मौत हो चुकी हैं। इसके बावजूद यहां हमेशा मजदूरों की सुरक्षा को लेकर फैक्ट्री प्रबंधन लापरवाह बना रहता है। इस फैक्ट्री में बाहर से लोहे का स्क्रेप मंगाया जाता है। फिर उसे भारी भरकम भट्ठियों में पिघलाया जाता है। भट्ठियां इतनी बड़ी होती हैं कि इनमें एक बार में 40 से 50 टन तक का लोहा पिघलाया जा सकता है।यह हादसा भी उस समय हुआ, जब एक भट्ठी में 40 टन लोहा पिघलाया जा रहा था।

25 जनवरी की सुबह हुए इस हादसे के बाद फैक्ट्री में अफरा-तफरी मच गई। मजदूरों को आनन-फानन में फैक्ट्री के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से एक मजदूर को कानपुर इलाज के लिए रेफर कर दिया गया।

रिमझिम इस्पात फैक्ट्री का मालिक योगेश अग्रवाल है। पुलिस प्रशासन की दलील है कि फैक्ट्री मालिक व प्रबंधन के खिलाफ कोई भी रिपोर्ट देने के लिए मजदूर तैयार नहीं है। ये दिखाता है कि फैक्ट्री मालिक को बचाने के लिए शासन प्रशासन कोई करवाईं नहीं कर रहा है। आज इस तरह की घटनाओं से साफ़-साफ़ दिखता है कि फैक्ट्री मालिकों की मुनाफे की हवस इतनी बढ़ चुकी है कि जो सुरक्षा मानक बनाये भी गये हैं उनको ताक पर रख दे रहे हैं और मजदूरों की जानें ले रहे हैं।

May be an image of 6 people

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।