नूंह दंगे : एक रिपोर्ट

6 अगस्त 2023 को इंकलाबी मजदूर केंद्र से योगेश और राजू, राष्ट्रीय मतदाता परिषद से सतीश मराठा जी और स्वराज इंडिया से तनवीर अहमद जी की एक सामूहिक टीम फैक्ट फाइंडिंग के लिए नूंह और आस-पास के गांव में पहुंची। जिस तरह की सूचना सोशल मीडिया और न्यूज चैनल के माध्यम से मिल रही थी, उसके बारे में हकीकत जानने को मिली।
    
सबसे पहले टीम के 2 लोग बादशाहपुर गए। वहां किसी परिचित से जानने को मिला कि मार्केट और बजरंगदल के लोगों ने मिलकर मुस्लिमों की दुकानें लूटीं और दुकानों में आग लगाई। पुलिस दंगाइयों की प्रोटेक्शन फोर्स बनी हुई थी। वहां के निवासियों ने बताया कि पुलिस हमारे साथ थी।
    
उसके बाद टीम घासेड़ा गांव पहुंची। वहां पर काफी लोगों से बातचीत हुई। घासेड़ा गांववासियों ने बताया कि जब यात्रा यहां से निकल रही थी तो हवा में तलवारें लहराई जा रही थीं और गलत इशारे किए जा रहे थे। मुस्लिमों को भड़काने वाले नारे लगाए जा रहे थे। लोगों के अंदर रोष था लेकिन हमने अपने बच्चों को घर भेज दिया और हमने बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के उकसावे की कार्यवाही को नजरअंदाज कर दिया। कुछ दिन पहले कांवड़ यात्रा निकली, मुस्लिम भाइयों ने उनको पानी पिलाया और उनकी हर संभव सेवा की। लोगों को धार्मिक यात्रा से दिक्कत नहीं थी, लेकिन बिट्टू बजरंगी और मोनू मानेसर के वीडियो के कारण नौजवान बच्चों में रोष था। लेकिन हमने नौजवानों को भटकने नहीं दिया और उनको दंगों से दूर रखा। हमारे गांव में हिंदू-मुस्लिम मिल-जुल कर रहते हैं। हमारे यहां से हिंदू-मुस्लिम के अंदर कोई फूट नहीं है। आजादी के समय महात्मा गांधी जी हमारे गांव आए थे। हम तब भी शांतिप्रिय थे और आज भी हैं।
    
उसके बाद टीम के लोग नूंह के खेड़ला गांव पहुंचे। वहां पर कुछ बुजुर्ग महिला व पुरुषों से मुलाकात हुई। बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि ये सब सरकार और बजरंग दल की साजिश है। पुलिस बहुत कम थी, झगड़े की शुरुआत खेड़ला चौक से हुई। झगड़ा होने के बाद पुलिस गायब हो गई। बजरंग दल वालों की यात्रा थी। वो तलवार और हथियार लहरा रहे थे और गंदे नारे लगा रहे थे। लेकिन फिर भी उनको कोई कुछ नहीं कह रहा था। लेकिन चौक पर उन्होंने एक व्यक्ति को टक्कर मार दी। इसके बाद मामला भड़क गया और दोनों तरफ से पत्थरबाजी होने लगी। फिर ये हिंसा बढ़ते हुए नलहड़ शिव मंदिर तक पहुंच गई। उसके बाद हमें कुछ नहीं पता।
    
उसके बाद गरीब लोगों का जीना दूभर हो गया है। दोनों तरफ से राजनैतिक पार्टियों और कट्टरपंथी अमीर लोगों को इससे फायदा होगा, मारा तो गरीब जायेगा। 31 तारीख के बाद से पानी की सप्लाई नहीं आ रही है। सरकार रोजगार को निशाना बना रही है फड़-खोखा उजाड़ कर। और पानी की सप्लाई बंद करके गरीब नागरिकों से बदला ले रही है। पशु प्यासे मर रहे हैं। हमारा पानी का फरमा खाली पड़ा है देख लो। लेकिन हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। छोटे-छोटे बच्चों को घर से उठाया जा रहा है। घर के सभी पुरुष गांव से खेतों और जंगलों में रहने को मजबूर हैं, घर में खाना नहीं बन रहा है और हमें भूखे ही सोना पड़ रहा है।
    
उसके बाद टीम नलहड मंदिर पहुंची। रास्ते में हम ने देखा कि गरीबों के रोजगार के साधन खट्टर सरकार के बुलडोजर ने उजाड़ दिए। मंदिर छावनी बना हुआ था। ये दंगा बीजेपी और आरएसएस द्वारा प्रायोजित था। इसका उदाहरण है भारतीय मजदूर संघ ने मंदिर में स्वागत का बैनर लगाया हुआ था। मंदिर 3 ओर से पहाड़ से घिरा हुआ था। पहाड़ के ऊपर चढ़ना कठिन था। जो हुआ वो मंदिर से कुछ दूरी पर था। मंदिर के अंदर कुछ नहीं हुआ, गोली चलने वाली बात को मंदिर का पुजारी नकार चुका है। मंदिर में एक भूतपूर्व सर्वोदय मंडल नेता व जागरण के पुराने पत्रकार अवधेश मिश्रा से बात हुई। वह घटना को एक चश्मे से देख रहा था। मुस्लिमों को गुनहगार ठहरा रहा था। बिट्टू बजरंगी की भूमिका पर उसका एक सहयोगी बौखला गया।
    
उसके बाद टीम नूंह शहर पहुंची। 5-7 लोग एक जगह एक रेहड़ी के पास बैठे थे। उनसे बात करने पर सामने आया कि ये घटना बजरंग दल का करा धरा है। सामने एक स्कूल था जहां आरएएफ की एक टुकड़ी रुकी हुई थी। वहां एक नशेड़ी मिला। वह मुस्लिमों को देखने और सबक सिखाने की बात कर रहा था। ये समझ में आया कि बजरंग दल वाले युवाओं को नशे में क्यों धकेलते हैं। दंगा करने के लिए नशेड़ी या नशेड़ी मानसिकता की जरूरत होती है।
    
इसके बाद हम शहर घूमते हुए सोहना की तरफ चले, शहर में हमने देखा कि सारे फड़-खोखे और सड़क किनारे के गरीब आदमी के रोजगार को इस सरकार ने तहस-नहस कर दिया। बिना किसी पूर्व सूचना के एक होटल को गिरा दिया था। थोड़ा आगे आए तो एक ऐसे ही खोखे को जेसीबी ढहाने में लगी हुई थी। 
    
उसके बाद हमारी टीम फिरोजपुर नमक पहुंची। वहां एक नौजवान पहलवान की चाय की दुकान थी। वहां हमने चाय पी और उनके सुख-दुख की बात की। सामने आया कि इन बजरंग दल वालों ने इतना परेशान कर दिया था कि नौजवानों को रोकने में बुजुर्ग नाकाम रहे। हमने देखा है कि यात्रा में किस तरह से उकसाया जा रहा था और भड़काने वाले नारे लगाए जा रहे थे। लेकिन प्रशासन गायब था। प्रशासन इन लंपट बजरंग दल वालों को रोकने में अक्षम साबित हुआ या ऊपर से आदेश ही दंगा कराने का रहा होगा। फिरोजपुर नमक के लोगों ने बताया कि कैसे हम हिंदू-मुस्लिम एक परिवार की तरह रहते हैं। हमारे यहां कोई दिक्कत नहीं, ये बाहर के लोगों ने दंगा कराया है। ये उन सांप्रदायिक कट्टरपंथी लोगों के मुंह पर तमाचा है जो कहते हैं कि मुस्लिम अल्पसंख्यक के तौर पर हिंदुओं में रह सकता है लेकिन अल्पसंख्यक हिंदू, मुस्लिमों के बीच नहीं रह सकता है।

नूंह की आर्थिक व सामाजिक स्थितिः- दिल्ली से लगभग 70-80 किलोमीटर दूरी पर नूंह जिला स्थित है। 2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार नूंह भारत का सबसे पिछड़ा जिला है। यहां की खेती काफी पिछड़ी है। नूंह जिला शिक्षा के मामले में भी काफी पिछड़ा है। यहां के बाजार में हिंदू बनियों का बोलबाला है। इस घटना के बाद हिंदू बनियों ने मुस्लिमों को सामान न देने का फरमान भी जारी किया है, फिरोजपुर नमक के एक ग्रामीण ने इसकी जानकारी दी। नूंह का सबसे पिछड़ा जिला होना ही, संघी फासीवादियों को दंगे की प्रयोगशाला बनाने की ओर ले जाता है।

निष्कर्ष:- यह धार्मिक नहीं राजनीतिक यात्रा थी। यह यात्रा बीजेपी, आरएसएस व बजरंगदल के शीर्ष नेतृत्व द्वारा प्रायोजित यात्रा थी। जैसे मुजफ्फरनगर दंगा, 2002 के गुजरात दंगे, 1992 की आडवाणी की रथ यात्रा आरएसएस और बीजेपी के प्रायोजित दंगे व यात्रा रहे हैं; ऐसे ही यह यात्रा एक प्रायोजित यात्रा थी। यह यात्रा अपना अभीष्ट(दंगा) पाने में कामयाब रही। लेकिन जानकारी फैलने के कारण इस दंगे ने ज्यादा व्यापकता नहीं हासिल की। लेकिन दंगे गुड़गांव के ज्यादातर हिन्दू मकान मालिकों को साम्प्रदायिक मानसिकता से लैस करने में कामयाब रहे। 6 अगस्त की तिघरा गांव की पंचायत इसका प्रमाण है। आरएसएस के लोगों ने गरीब मजदूरों और दुकानदारों पर हमला बोला है। यह आरएसएस की घटिया और पूंजीपतियों की सेवक सोच को दर्शाता है। तमाम जातियों के प्रगतिशील नौजवानों ने इस दंगे में शामिल न होने की अपील की, इसका असर रहा।
    
आज देश को बीजेपी और आरएसएस की दंगाई मानसिकता से समाज को जागरूक करने की जरूरत है। सांप्रदायिक कट्टरपंथी ताकतें चाहे हिंदू हों या मुस्लिम एक-दूसरे को खाद-पानी देने का काम करती हैं। मुस्लिम कट्टरपंथी नेताओं ने भी गरीब मजदूरों और किसानों को अपना वोट बैंक बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किया है। आज जरूरत है जनता को इन कट्टरपंथी संगठनों से बाहर निकाला जाए। मजदूरों और तमाम मेहनतकशों को एकजुट करके एक जुझारू आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है ताकि भारत में हिटलर जिंदा ना हो सके।
 

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