मणिपुर, मोदी और संसद

मणिपुर की स्थिति बेहद संकटपूर्ण है। लगभग 70 हजार से ज्यादा लोगों को शरणार्थियों की तरह रहने को बाध्य कर दिया गया है। 5000 सेमोदी ज्यादा लोग घायल हैं। कई दर्जन लोग मारे गए हैं। 4 मई से महिलाओं के खिलाफ बर्बर हिंसा की खबरें अब कई न्यूज पोर्टलों पर पढ़ी जा सकती हैं। जब सैकड़ों की संख्या में उन्मादी भीड़ 2-3 महिलाओं को निर्वस्त्र करके उनकी परेड मणिपुर में कराती है तब दिल्ली अपनी नींद से जागती है। अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। इस घटना ने दुनिया में भारत की हकीकत को बयां कर दिया। यह वीडियो 4 मई का बताया गया। 3-4 मई से इंटरनेट और एस एम एस यहां बंद हैं। इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने में मेइती समुदाय के आरम्बाई तैंगोल का नाम भी सामने आया।

    
सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया तब इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के लिए कुछ ना कुछ कहना तो जैसे मजबूरी बन गयी थी। फकीर मोदी ने इस घटना का सामान्यीकरण किया। इसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में घट रही घटनाओं के बराबर में रख दिया। मणिपुर के भाजपाई मुख्यमंत्री ने प्रकारांतर से खुद ही बयान दे डाला कि ऐसी तो सैकड़ों घटनाएं मणिपुर में घट चुकी हैं। मोदी-शाह ने फिर से खामोशी की चादर ओढ़ ली। इस तरह मणिपुर के अपने घृणित एजेन्डे को जारी रखा।
    
मणिपुर में एक ओर मेइती समुदाय कूकी पर हमलावर है तो दूसरी ओर राज्य की भाजपाई सरकार की पुलिस और केंद्र की ओर से भेजी गई सेना आमने-सामने हैं। यहां असम राइफल्स के जवानों पर राज्य की पुलिस ने मुकदमे दर्ज कर दिए। मेइती समुदाय के संगठन आरम्बाई तैंगोल और मेइती लीपम जैसे संगठनों के लोग पुलिस की कस्टडी से आधुनिक हथियार ले जा रहे हैं। इसका इस्तेमाल कूकी समुदाय पर कर रहे हैं। इसकी प्रतिक्रिया में कूकी समुदाय के संगठन भी जवाब दे रहे हैं।
    
एक दौर में महिलाओं के जिस मीरा पीबम संगठन ने दो दशक पहले असम राइफल्स के कार्यालय के बाहर ‘भारतीय आर्मी, आओ हमारा बलात्कार करो’ के नारे और बैनर के साथ नग्न प्रदर्शन किया था, आज वही कूकी महिलाओं पर हमलावर है उन अपराधियों को छुड़ा कर ले जा रहे हैं जिन पर कूकी पर हमला करने के आरोप लगे थे। कहा यह भी जा रहा है कि कूकी समुदाय को एक हद तक मदद कर रही सेना के आगे मीरा पीबम की महिलाएं रुकावट का काम कर रही हैं। इस संगठन में मेइती समुदाय की ही महिलाएं हैं।
    
इस गहन चिंताजनक और संकटपूर्ण स्थिति में मणिपुर के विशेषकर कूकी समुदाय के लोग, मोदी और मोदी सरकार से इससे उबारने की उम्मीद करते थे। मगर पी एम मोदी ने गुजरात के 2002 दंगों के प्रायोजन की ही तरह यहां भी खामोशी बरकरार रखी। मोदी और इनकी सरकार को लगता था कि इंटरनेट और एस एम एस बंद करके व मीडिया को नियंत्रित करके मणिपुर के हाल को बाकी देश तक नहीं पहुंचने देंगे।
    
मगर महिलाओं पर बर्बर हिंसा और अमानवीय आचरण को लेकर जो वीडियो वायरल हुए, उसने काफी कुछ बाहर सामने ला दिया। भाजपा मणिपुर मामले को दो समुदाय की हिंसा के रूप में प्रस्तुत कर रही थी।
    
मणिपुर की यह स्थिति संसद के मानसून सत्र में विपक्ष का हथियार बनी। विपक्ष का तर्क था कि मणिपुर के मामले पर चर्चा कराने के लिए वे मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आये ताकि प्रधानमंत्री मोदी से संसद में मणिपुर पर बात रखवाई जा सके।
    
इस बीच मोदी सरकार ने कई बिल लोक सभा और राज्य सभा से पास करवा लिए। इनमें मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति, डाटा संरक्षण बिल, जन्म-मृत्यु पंजीकरण बिल भी पास करवाये गए जो मोदी सरकार की निरंकुशता को बढ़ाते हैं तथा जनता पर निगरानी तंत्र को और ज्यादा मजबूत करते हैं साथ ही मणिपुर मामले पर चर्चा की बात थी मगर विपक्ष संसद से वाकआउट कर गया। 
    
वास्तव में संसद में मणिपुर मामले से विपक्ष को भी कुछ खास लेना-देना नहीं था। मणिपुर की जनता का जो संघर्ष एक वक्त भारत सरकार से था, अपने आत्मनिर्णय के अधिकार के तहत जो संघर्ष मणिपुरी जनता का था उसे ‘साम, दाम, दंड व भेद’ से कमजोर करने, बिखराने का काम तो कांग्रेस ने आजादी के बाद से ही किया था। इसलिए राहुल गांधी भावनात्मक बातें करने के अलावा इस मुद्दे पर और कुछ कर भी नहीं सकते थे। 
    
हां! यह जरूर कहा जा सकता है कि मोदी को संसद में लाने, बात रखवाने और अविश्वास प्रस्ताव को लागू करवाने में विपक्ष जरूर सफल हुआ। इसके साथ ही एन डी ए का हिस्सा रहे मिजो नेशनल फ्रंट को भी अविश्वास प्रस्ताव में अपने साथ लाने में सफल रहा।
    
भाजपा और संघ के पास हर सवाल का जवाब है झूठ और आधा अधूरा सत्य। यही संसद में इन्होंने किया। गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने फिर इस मुद्दे के लिए म्यांमार से 2001 में आये कूकी समुदाय के लोगों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया, हाईकोर्ट के मेइती को एस टी आरक्षण पर रुख को जिम्मेदार ठहराया, साथ में कांग्रेस को ही इसके लिए कठघरे में खड़ा किया। जबकि भाजपा व आर एस एस ने मणिपुर में कूकी समुदाय के ईसाइयों के खिलाफ नफरत का अभियान चलाया है मेइती समुदाय को हिंदू फासीवाद के एजेंडे पर गोलबंद किया है जिसका नतीजा सामने है।
    
यही नहीं! संसद में और भी कुछ हुआ। कारपोरेट घरानों की इन दो मुख्य पार्टियों के बीच बढ़ती कलह से शासकों की पोल भी खुली। कांग्रेस पर हमला करते हुए मोदी ने कहा कि मिजोरम में इंदिरा गांधी ने अपने ही नागरिकों पर हवाई हमले करवाये। 
    
दरअसल 1960 के दशक के मिजो नेशनल फ्रंट की अगुवाई में मिजोरम ने अलग राष्ट्र के लिए हथियारबंद संघर्ष किया। इस संघर्ष के दमन के लिए ही 1966 में इंदिरा गांधी की सरकार ने सेना के जरिये हवाई हमले का इस्तेमाल किया था। 1986 में इसी मिजो नेशनल फ्रंट (एम एन एफ) और केंद्र सरकार के बीच शांति समझौता हुआ। एम एन एफ अलग राष्ट्र की मांग से पीछे हट गई। फिर राज्य के चुनाव के बाद मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार बनी। यही पार्टी आज भाजपा के साथ एन डी ए की घटक है।
    
संसद में मणिपुर मामले पर मोदी सरकार के व्यवहार से उत्तर-पूर्व के राज्यों में चलने वाले संघर्षों का जो बर्बर दमन अतीत में हुआ तथा संसद में इस पर जो पाखंड हुआ, उसकी एक हद तक पोल खुली है। वहीं आज के दौर में मोदी सरकार ने उत्तर-पूर्व को अपनी हिंदू फासीवादी राजनीति के अनुरूप ढाला है विशेषकर मणिपुर, असम, त्रिपुरा में ये एक हद तक सफल रहे हैं। मणिपुर मौजूदा वक्त में हिंदू फासीवाद की प्रयोगशाला बना हुआ है।

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को