किम रहस्यम् मोदी मौनम्

मणिपुर को जलते हुए दो महीने से भी अधिक का समय हो गया है परन्तु देश के प्रधानमंत्री एकदम मौन साधे हुए हैं। कोई भी व्यंग्य, कोई कटाक्ष और यहां तक कि कोई भी आग्रह मोदी के मौन को तोड़ नहीं सका है। हिंसा की वीभत्स से वीभत्स खबरें आ रही हैं, परन्तु मोदी महाराज अविचल बने हुए हैं। 
    
पिछले दिनों देश के गृहमंत्री उत्तर-पूर्व के राज्यों के बारे में एक से बढ़कर एक डींग हांक चुके हैं परन्तु एक के बाद एक घटी घटनाओं ने साबित कर दिया कि जैसे मोदी सरकार बेरोजगारी, महंगाई, साम्प्रदायिक सौहार्द के मुद्दों पर फेल है, ठीक वैसे ही वह उत्तर-पूर्व के मामले में भी फेल है। पिछले समय में मिजोरम और असम की पुलिस एक-दूसरे से इस तरह से भिड़ गयी थीं मानो दो दुश्मन देशों की सेनायें हों। फिर नगालैण्ड में भारतीय सेना ने कोयला मजदूरों को गोलियों से भून डाला था जब वे खदानों से अपने गांवों को वापस लौट रहे थे। 
    
मणिपुर की घटनाओं ने दिखला दिया था कि भारतीय जनता पार्टी और उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काले कारनामों से देश कैसे तेजी से अंधी सुरंग में प्रवेश कर रहा है। ये फासीवादी विभिन्न समुदायों को आपस में लड़ाकर देश के हालात को बद से बदतर बना रहे हैं। 
    
मणिुपर की घटनाओं ने ये भी दिखलाया कि हिन्दू फासीवादी भारतीय समाज के बारे में कितनी उथली समझ रखते हैं। इतिहास और समाज के बारे में इनका ज्ञान कितना कम है। मणिपुर के सामाजिक ताने-बाने को इन्होंने लम्बे समय के लिए स्थायी नुकसान पहुंचा दिया है। हालात ये हो गये हैं कि अपनी सम्पत्ति, दुकान-मकान को उपद्रवियों के निशाने से बचाने के लिए लोग अपनी पहचान सम्बन्धी हस्तलिखित पर्चे चिपका रहे हैं। कोई लिख रहा है कि यह दुकान मुस्लिम मैतई (पांगल) की है तो कोई लिख रहा है कि यह मकान नेपाली का है। जिस पुलिस बल का काम नागरिकों की सुरक्षा का होना चाहिए वह मैतई, कुकी व नगा के नाम पर विभाजित हो चुका है। दो महीने से सामान्य जीवन ठप्प पड़ चुका है। इण्टरनेट हफ्तों से बंद है। खाने-पीने की चीजों का अकाल पड़ा हुआ है। लेकिन मोदी अपनी ऐय्याशगाह में मस्त हैं। उनका मिशन है कि कैसे तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि में चुनाव जीता जाये। 
    
चंद रोज पहले मेरठ एक्सप्रेस हाईवे पर एक भीषण सड़क दुर्घटना हुयी। मोदी महाराज की तुरंत प्रतिक्रिया आ गयी परन्तु मणिपुर पर मोदी महाराज की मौन साधना भंग नहीं हुयी। मणिपुर में मारे गये लोगों से उन्हें कोई संवेदना नहीं है। 
    
सच्चाई तो यही है कि मणिपुर के मामले में मोदी जी के पास न तो कहने को कुछ है और न करने को कुछ है। मणिपुर में मैतई व पहाड़ में रहने वाली जनजातियों के बीच कुछेक मुद्दों को लेकर मतभेद व तनाव पहले से था परन्तु जब से मणिपुर में भाजपा सरकार अस्तित्व में आयी तब से इन्होंने तनाव व मतभेदों को साम्प्रदायिक रंग दे दिया। मैतई व पहाड़ में रहने वाली जनजातियों को हिन्दू-ईसाई के साम्प्रदायिक तनाव की आग में धकेल दिया। ऐसा करके भाजपा-संघ के हिन्दू फासीवादियों ने शायद यह मंसूबा पाला था कि ये उत्तर-पूर्व में हिन्दू वर्चस्व को स्थापित कर अपनी मनमर्जी कर लेंगे। 
    
हिन्दू फासीवादी अपने मंसूबों में इससे पहले असम, त्रिपुरा में कामयाब हो चुके थे। इन तीनों ही राज्यों में भाजपा ने अपने बल-बूते पहली दफा सरकार मोदी काल में बनायी हैं। इन सरकारों के बनाने में इन राज्यों में इन हिन्दू फासीवादियों ने वही हथकंडे अपनाये जो अन्य राज्यों में या केन्द्र में सरकार बनाने के दौरान अपनाये थे। असम व त्रिपुरा को हिन्दू फासीवादियों ने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की आग में झोंक दिया था। धूर्त कांग्रेसी हिमंत बिस्वा शर्मा को अपने पाले में लाकर भाजपा ने असम में अपनी सरकार बना ली। हिमंत बिस्वा तो भाजपा में शामिल होने के बाद बचपन से संघ की शाखा में प्रशिक्षित हिन्दू फासीवादियों को भी मात देने लगा। अब तो हाल ये है कि वह मोदी, योगी की तरह हिन्दू फासीवादियों की आंख का तारा बन गया है। हिमंत बिस्वा के जैसे न जाने कितने धूर्त, कैरियरवादी, कांग्रेस या अन्य पार्टियों की पांतों में हैं। ये एक तरह से भारत के हिन्दू फासीवादियों के ऐसे ‘‘पांचवें कालम’’ (फिफ्थ कालम) हैं जो विभिन्न पार्टियों, संस्थाओं, नौकरशाहों के रूप में मौजूद हैं। 
    
उ.-पू. के राज्यों में हिन्दू फासीवादियों ने असम में रहने वाले विभिन्न भाषा-भाषी हिन्दुओं; मणिपुर में मैतई हिन्दुओं; मिजोरम में हिन्दू जनजाति ब्रू; त्रिपुरा में हिन्दू बंगालियों तथा कुछ हिन्दू जनजातियों में अपना आधार बनाने के लिए उग्र हिन्दुत्व का या हिन्दू फासीवादी विचारों का सहारा लिया। इस चाल से इन्होंने असम, त्रिपुरा, मणिपुर में चलने वाले राष्ट्रीयता के उग्र आंदोलनों की दिशा को बदलकर साम्प्रदायिक रंग चढ़ा दिया। इस तरह से इन्होंने भारतीय राज्य से विभिन्न राष्ट्रीयताओं के संघर्ष को एक तरह से कुंद कर दिया है।    
    
ब्रू जनजाति की तरह साठ के दशक में बांग्लादेश से आयी चकमा जनजाति को एक चुनावी हथियार की तरह मिजोरम और त्रिपुरा में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। चकमा बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं और मिजोरम जो कि ईसाई बहुल राज्य है वहां भाजपा-संघ इनके मुद्दों का इस्तेमाल कर ईसाई विरोधी साम्प्रदायिक माहौल तैयार कर रहे हैं। ब्रू जनजाति मिजोरम के वासी रहे हैं परन्तु संघ-भाजपा के घृणित साम्प्रदायिक एजेण्डे के साथ वे मिजोरम के अंधराष्ट्रवादी तत्वों के निशाने पर आये और उन्हें मिजोरम से पलायन करना पड़ा है। ब्रू त्रिपुरा में शरणार्थी शिविरों में लम्बे समय से रह रहे हैं। 
    
हिन्दू वर्चस्व उ.-पू. में कायम हो सके इसके लिए संघ-भाजपा धर्मांतरण का भी सहारा ले रही है। उ.पू. में सैकड़ों की संख्या में जनजाति समूह हैं। ये समूह मूलतः प्रकृति पूजक रहे हैं। इन्हें ब्रिटिश काल में मिशनरियों द्वारा धूर्त ढंग से ईसाई बनाया गया था। बाद में संघ इन्हें हिन्दू धर्म के जाल में फंसा रहा है। हिन्दी भाषा व देवनागरी लिपि थोप रहा है। राज्य मशीनरी का उपयोग कर यह काम असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा आदि में जारी है। बोड़ो के विभिन्न मुद्दों में एक विवाद का विषय रोमन, असमिया या देवनागरी लिपि अपनाने को लेकर भी रहा है। ‘वनवासी कल्याण संघ’ जैसी संस्थाएं खड़ी कर संघ-भाजपा उ.-पू. के हिन्दू धर्मान्तरण के काम में तेजी से लगे हुए हैं। संघ-भाजपा का धर्मांतरण का यह गंदा खेल उ.-पू. में धार्मिक ध्रुवीकरण को तेजी से बढ़ा रहा है। मणिपुर, असम, त्रिपुरा मुख्य तौर पर हिन्दू फासीवादियों की प्रयोगशाला बने हुए हैं। 
    
उ.पू. के राज्यों की केन्द्र पर वित्तीय संसाधनों के मामले में पूर्ण निर्भरता है। यही कारण है कि इन राज्यों की व्यवस्था पक्षधर पार्टियां और उनकी सरकारें केन्द्र के इशारे पर चलने को मजबूर हैं। राजनैतिक पार्टियों को अपने पाले में रखने के लिए भाजपा इस कार्य को कांग्रेसियों से भी आगे बढ़कर अपनी हिन्दू फासीवादी परियोजना के लिए खुलकर कर रही है। मणिपुर में डेढ़ सौ लोगों के मारे जाने, हजारों लोगों के पलायन और शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर करने, घोर धार्मिक-नृजातीय साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ मोदी महाराज की चुप्पी का रहस्य अपने आप स्पष्ट हो जाता है। मणिपुर जितने दिन जले हिन्दू फासीवादियों की उ.-पूर्व के राज्यों में हिन्दू वर्चस्व कायम करने की परियोजना परवान ही चढ़ती रहेगी।   

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