जिला बरेली के औद्योगिक क्षेत्र परसाखेडा के रोड न. 4 पर महावीर प्लाईवुड कम्पनी स्थित है। इसमें कार्यरत एक मजदूर महेश है जो बंशी नगला बरेली में रहते हैं। इनके दो बच्चे हैं। लड़का आई टी आई करता है और लड़की पढ़ाई करती है। महेश ठेके का मजदूर है। उसकी ड्यूटी 12 घंटे है और 12 घंटे की मजदूरी 400 रुपये मिलती है। महीने में 26 ड्यूटी करनी पड़ती हैं। अगर छुट्टी की तो उसके पैसे कट जायेंगे।
इस कम्पनी में कोई श्रम कानून लागू नहीं होते हैं। किसी मजदूर के साथ दुर्घटना होने पर ठेकेदार हलका-फुलका इलाज कराकर घर भेज देते हैं। इस कम्पनी में कोई यूनियन नहीं है।
महेश का कहना है कि जब से भाजपा की सरकार आई है तब से महंगाई बहुत बढ़ गई है। अब 10,400 रुपये में घर चलना बहुत मुश्किल हो गया है। अगर घर में कोई बीमार हो गया तो कर्जे में फंस जाते हैं। अगर ठेकेदार से सैलरी बढ़ाने की बात करो तो वह धमकी देता है कि काम करना है तो करो वरना किसी और कम्पनी में देख लो। मैं तो इतने ही पैसे दे पाऊंगा।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता ने महेश को सलाह दी है कि आप मजदूरों से बात करो कि मजदूर एकजुट हों। मजदूर संगठन बनाकर ही अपनी मजदूरी, ई.एस.आई., फंड, राष्ट्रीय अवकाश आदि सुविधायें लड़कर ले सकते हैं।
-रामसेवक, बंशी नगला
प्लाई कम्पनी में शोषण की चक्की में पिसते मजदूर
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को