उत्तर प्रदेश में एक चतुर्थ श्रेणी सरकारी कर्मचारी ने अपनी मेधावी पत्नी को प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए इलाहाबाद (प्रयागराज) की किसी अच्छी कोचिंग में तैयारी करवाई। उसने इसके लिए बड़े ‘बलिदान’ किये। पत्नी ने पी सी एस की परीक्षा उत्तीर्ण की और अभी बरेली में सेमीखेड़ा चीनी मिल में मैनेजर है। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद से ही ज्योति ने अपने पति से संपर्क काट लिया और अब उसका पति यह आरोप लगा रहा है कि उसकी पत्नी का किसी बड़े पुलिस अफसर से अफेयर है। मियां-बीबी का मामला फैमिली कोर्ट में है। सोशल मीडिया समेत पूरे मीडिया में यह खबर भरी पड़ी है।
सवाल यह है कि एक दम्पत्ति के संबंधों में समस्या इतने व्यापक रूप से मीडिया में और चर्चा में क्यों है?
जवाब है समाज में गहरे स्तर तक व्याप्त पुरुष प्रधान मानसिकता।
खबर सोशल मीडिया पर चल पड़ी। समाज में व्याप्त पुरुष प्रधान मानसिकता की अभिव्यक्ति इस रूप में हुई कि सोशल मीडिया पर इसे हाथों-हाथ लिया गया और ‘बेचारे पति’ के पक्ष में यह खबर वायरल होती गयी। बहुत सी सोशल मीडिया पोस्ट्स में मियां-बीवी और वो के साथ अब योगी आदित्यनाथ भी दिखाए जा रहे हैं। योगी का एंगल ‘वो’ के पुलिस अफसर के पद से निलंबन से जोड़ कर देखा जा रहा है। अब यदि समाज की नजर में पति बेचारा है तो समाज के शासक जनता का साथ क्यों नहीं देंगे? और वो भी तब जब मात्र एक अफसर के निलंबन से उन्हें जनता के साथ खड़ा दिखाया जा सकता हो। अब इस कहानी के ‘वो’ होमगार्ड कमांडेंट मनीष दुबे कोई बृजभूषण शरण सिंह जैसे बाहुबली सांसद तो हैं नहीं। खबर है कि मनीष दुबे किसी आडियो क्लिप में इस पराई नार से उसके पति के खिलाफ बातें कर रहे थे तो उनके चरित्र के कुछ गड़े मुर्दे विभाग ने उखाड़े हैं और उन्हें निलंबित कर दिया है। परदे के पीछे योगी जी को देखा जा रहा है। (प्रसंगवश: बृजभूषण शरण के खिलाफ गवाहों और सबूतों की चर्चा खबरों में बनी हुई है पर भाजपा ने उन्हें अभी तक निलंबित नहीं किया है।)
ज्योति मौर्या पर आयी खबरों और चर्चाओं की बाढ़ के बीच सोशल मीडिया पर ये भी खबर है कि बहुत से पतियों ने अपनी पत्नियों को कोचिंग संस्थानों से वापिस बुला लिया है और अपनी ‘गाढ़ी कमाई खर्च कर अपने पारिवारिक जीवन को संकट में डालने का जोखिम उठाने से इंकार कर दिया’ है।
इस पूरे मामले में ज्योति मौर्या (और उनके पति) के साथ इन्साफ उनके निजी जीवन का सम्मान करके ही किया जा सकता है। यह सम्मान उन्हें उनके हाल पर छोड़ कर या कम से कम उनके जीवन का किसी भी प्रकार का सामान्यीकरण न करके किया जा सकता है। हमारे समाज में वैवाहिक बंधनों में दरारें आम हैं, इसलिए इन पर न तो खास रहम करने की जरूरत है और न ही इन्हें बलि का बकरा बनाये जाने की।
जहां एक तरफ सोशल मीडिया इतना सक्रिय है और संभव है कि योगी जी ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया हो, वहीं इस खबर या चर्चा में कोई दम नहीं है कि बहुत से पुरुषों ने अपनी बीवियों की पढ़ाई रुकवा दी है। यह सब सोशल मीडिया पर होने वाला अतिशयोक्तिकरण है। यह बढ़ा-चढ़ा कर कहना कि बहुत से पति अपनी बीवियों की पढ़ाई के खिलाफ हो गए हैं, या इस मुद्दे पर गीत, चुटकुले आदि और मीम्स का बनाना सोशल मीडिया पर किसी भी तरह से पापुलर होने के उद्देश्य से है। यह जरूर है कि पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रस्त समाज ही इन सबको आधार मुहैय्या कराता है कि ऐसी बातें और पोस्ट्स लोकप्रिय हों।
कुल मिलाकर एक ही अच्छी बात है जो आश्वस्त करती है। वो बात यह है कि जिस तरह सोशल मीडिया पर ऐसी सृजनशीलता दिखाने में कोई खास गंभीरता या मेहनत नहीं लगती, उसी तरह भारतीय समाज में लोग इस स्त्री-पुरुष की कहानी को भी सोशल मीडिया पर एक हास परिहास के साधन के रूप में तो ले रहे हैं पर इससे अपने जीवन को संचालित नहीं कर रहे हैं। उन्हें अभी अपने आपसी सम्बन्धों पर इतना भरोसा है कि योगी के लोकप्रिय हस्तक्षेप के बावजूद बहुत से नहीं बल्कि इक्का-दुक्का पुरुषों के ही अपनी पत्नियों की पढ़ाई के खिलाफ जाने की पुष्ट खबरें हैं।