महंगाई की मार: कहां गई मोदी सरकार?

टमाटर समेत लगभग सभी सब्जियों के आसमान छूते भावों ने गरीब आदमी ही नहीं मध्यमवर्गीय लोगों तक के होश उड़ा दिये हैं। कभी चुनावों के वक्त ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ का नारा लगाने वाली मोदी सरकार मणिपुर की तरह महंगाई पर भी मौन साधे है। 
    
टमाटर की महंगाई के संदर्भ में पूंजीवादी मीडिया में जो खबरें प्रचारित हो रही हैं उनके अनुसार वर्तमान समय में ज्यादातर टमाटर बंगलुरू से सप्लाई हो रहा है। हिमाचल व पहाड़ी राज्यों में टमाटर की फसल चौपट होने से टमाटर के भाव आसमान छू रहे हैं और अगस्त माह में नासिक से नई टमाटर की फसल आने पर इसके भाव गिरेंगे। खुद बंगलुरू के आस-पास के कई टमाटर उत्पादक क्षेत्रों में फसल चौपट होने से टमाटर की आपूर्ति प्रभावित हुई है। 
    
भारत में टमाटर की सर्वाधिक खेती महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, म.प्र. व कर्नाटक में होती है। दिल्ली की मंडी में टमाटर हिमाचल व उत्तराखण्ड से आता है। भारत में हर साल दो करोड़ टन टमाटर पैदा किया जाता है। टमाटर उत्पादन के मामले में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। बीते वर्ष भारत से 89 हजार मीट्रिक टन टमाटर का निर्यात किया गया। एक डेढ़ माह पूर्व 10-15 रु. किलो बिकने वाला टमाटर वर्तमान समय में पूरे देश में 120 से 160 रु. किलो बिक रहा है। 
    
पूंजीवादी मीडिया बता रहा है कि चूंकि टमाटर की फसल की लम्बे वक्त तक जमाखोरी नहीं हो सकती इसलिए टमाटर के भाव बढ़ने में फसल चौपट होना ही मुख्य कारण है व सरकार इस मामले में चाह कर भी बहुत कुछ नहीं कर सकती। यह बात अर्द्धसत्य ही अधिक है। अगर सरकार खराब होती फसल का समय से आकलन करती व टमाटर की आपूर्ति की कमी का अनुमान लगा लेती तो ढेरों उपायों के जरिये वर्तमान महंगाई पर लगाम लगा सकती थी। पर मोदी सरकार की महंगाई रोकने से ज्यादा दिलचस्पी धार्मिक ध्रुवीकरण के नये-नये मुद्दे तलाशने में है। 
    
इसी तरह ये बातें भी सामने आ रही हैं कि बीते वर्षों में टमाटर की भारी भरकम फसलें होने के चलते भाव न मिलने के कारण बड़ी संख्या में किसान तबाह हुए, ढेरों किसानों ने टमाटर की खेती त्याग दी। साथ ही यह भी कि टमाटर की वर्तमान महंगाई का लाभ उत्पादक किसान नहीं आढ़तिए-व्यापारी-जमाखोर उठा रहे हैं। यह सब सरकार द्वारा किसानों को व कृषि उत्पादों के भावों को बाजार के हवाले करने वाली छुट्टे पूंजीवाद की नीतियों के चलते हो रहा है। अब सरकार सरकारी मंडी व्यवस्था को भी खत्म कर किसानों को सीधे बड़े पूंजीपतियों के आगे लूटने को छोड़ देने की फिराक में है। 
    
जो बात टमाटर के भावों के लिए है वही कम या ज्यादा बाकी सब्जियों के बारे में भी सच है। आम जनमानस महंगाई की जो मार आज झेल रहा है उससे आसानी से बचा जा सकता था। पर बड़े पूंजीपतियों के हितों में काम करने वाली मौजूदा सरकार को आम जन के ऊपर कहर बरपाती महंगाई की कोई चिंता नहीं है। आपदा में अवसर तलाशने वाली सरकार तो इस महंगाई में भी अम्बानी-अडाणी का मुनाफा बढ़ाने की साजिशें रच रही है।  

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को