समान नागरिक संहिता या नई उत्पीड़क संहिता

उत्तराखण्ड देश में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला दूसरा (आजादी के बाद पहला) राज्य बन गया है। इससे पूर्व गोवा में पुर्तगाली नागरिक संहिता लागू थी। संघी मुख्यमंत्री इसके लिए अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। पर क्या वास्तव में यह उत्तराखण्ड के नागरिकों की भलाई करती है या उनके उत्पीड़न का नया औजार साबित होती है, यह देखने की बात है।

संघी ताकतें इस संहिता के जरिये बहुविवाह, हलाला, तीन तलाक, इद्दत सरीखी मुस्लिम प्रथायें रोकने, लड़कियों को बराबर उत्तराधिकार आदि के लिए इसकी तारीफ के पुल बांध रही हैं।

जहां तक प्रश्न बहुविवाह का है तो उत्तराखण्ड में यह बेहद कम मौजूद है ज्यादातर यह आदिवासी जनों में मौजूद है जिनको इस संहिता से बाहर रखा गया है। हलाला, इद्दत तीन तलाक आदि भी यहां नाममात्र का ही मौजूद है। ऐसे में वास्तव में ये कानून महिलाओं की स्थिति सुधारने में कोई भी भूमिका नहीं निभायेगा। इसके उलट कानून के कई प्रावधान महिलाओं के उत्पीड़न को बढ़ाने वाले बनेंगे।

2010 के बाद सभी विवाह पंजीकृत कराने का कानून उत्तराखण्ड में पहले से लागू है अब लोगों को इसे नये नागरिक संहिता पोर्टल पर भी पंजीकृत कराना होगा। पंजीकृत कराने का सामान्य शुल्क 250 रु. व तत्काल सेवा शुल्क 2500 रु. है। यानी यहां भी पैसे वालों के लिए सरकार ने खास सहूलियत दे दी है। विवाह ही नहीं, तलाक, लिव इन, वसीयत आदि का भी इस पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा।

लिव इन के पंजीकरण के जरिये सरकार ने थाने में सूचना, मकान मालिक की अनापत्ति, माता-पिता को सूचना सरीखे कागज मांग व्यवहारतः इसे असंभव बना दिया है। यह प्रकारान्तर से बालिग युवक-युवतियों से अपनी इच्छा से एक साथ रहने का अधिकार छीन लेना है।

इस तरह यह संहिता शादी के एक वर्ष बाद ही तलाक की अर्जी न्यायालय में डाले जाने का प्रावधान करती है। यानी यह हर महिला को शादी के बाद के उत्पीड़न को एक वर्ष तक सहने को जबरन मजबूर करती है।

उत्तराधिकार के मामले में ये जरूर महिलाओं को बराबरी का अधिकार घोषित करती है पर हिन्दू उत्तराधिकार कानून में यह पहले ही घोषित हो चुका ऐसा अधिकार है जो व्यवहार में नाम मात्र का ही लागू होता है। हां संघी मुस्लिम महिलाओं को भी ये अधिकार दिलाने का दम्भ जरूर भर सकते हैं। ये दम्भ भरने वाले संघी अपनी संघ परंपरा में पहले ये दिखा दें कि कितने भाजपा-संघ के नेताओं ने सम्पत्ति में बहनों-बेटियों को बराबर का हक दिया है। यानी हकीकत में ये अधिकार कागजी साबित होना है क्योंकि हिन्दू धर्म के ये पुजारी तो महिलाओं को ब्राह्मणवादी सामंती परम्पराओं के अनुरूप चलने का इस मामले में भी उपदेश देंगे।

यह संहिता दरअसल उत्तराखण्ड के नागरिकों को समानता से ज्यादा उत्पीड़न देने की संहिता है। यह राज्य-पुलिस-प्रशासन द्वारा लोगों के पारिवारिक-व्यक्तिगत-उत्तराधिकार आदि के मामले में जबरन घुसपैठ है। इस संहिता के जरिये न केवल मुस्लिम धर्म के नागरिकों बल्कि समस्त नागरिकों के उत्पीड़न का पुलिस-प्रशासन को हक मिल जायेगा। पुलिस किसी से भी विवाह पंजीकरण का सर्टिफिकेट मांग सकती है। किसी भी साथ रह रहे जोड़े को पंजीकरण के अभाव में अलग कर सकती है आदि आदि।

संघ-भाजपा के चहेते ‘हिन्दू राष्ट्र’ जो कि दरअसल एक किस्म का पुलिस राज भी होना है, की दिशा में यह एक और कदम है। यह नागरिकों को कागजातों की नयी दौड़ की ओर धकेलेगा, राज्य द्वारा उनके उत्पीड़न को बढ़ायेगा। मुस्लिम धर्म के लोगों को तो ये द्वितीयक स्तर के नागरिकों में तब्दील करने का औजार बन जायेगा। क्योंकि संघी कार्यकर्ता उन्हीं पर हमला बोलने का काम करेंगे।

कुल मिलाकर यह संहिता नागरिकों के निजता के अधिकार पर हमला है। इसलिए भी इसका विरोध किया जाना चाहिए।

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।