संविधान दिवस और मजदूर वर्ग

    संसद के इस सत्र की शुरूआत दो दिन तक भारतीय संविधान पर चर्चा करने व 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाने से हुई। 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाने के साथ ही अंबेडकर की खूब जय जयकार संसद के भीतर की गयी। संसद के भीतर जहां कांग्रेसी व अन्य दलों ने मौजूदा सरकार पर संविधान की आत्मा के उलट असहिष्णुता का माहौल कायम करने का आरोप लगाया वहीं सरकार ने इंदिरा की इमरजेंसी को कोस कांग्रेस को नीचा दिखाने की कोशिश की। <br />
    संविधान दिवस पर संविधान की तारीफ करने वाले और इस बहाने एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने वाले ये पूंजीवादी दल इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि संविधान को पूज्य बनाये रखकर, उसकी आलोचना को अपराध घोषित कर ही वे इस संविधान के सहारे अपना शासन चलाते रह सकते हैं। भले ही खुद वे संसद में संविधान संशोधनों का सैकड़ा लगा चुके हों पर समाज में व जनता की निगाह में उसे पूज्य ठहराया जाना चाहिए ताकि लोग संविधान पर और उसके तहत चल रहे शासन पर यकीन रखें। इस मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों एकमत हैं। <br />
    सभी पूंजीवादी दल संविधान की सर्वोच्चता के गीत गाने को एकमत हैं। भले ही सत्ताधारी भाजपा और उससे जुड़े संगठनों द्वारा व्यवहार में इसकी कितनी ही धज्जियां उड़ायी जायें। भले ही उनकी दिली ख्वाहिश संविधान से समाजवाद-सेकुलर शब्दों को लात मार हिन्दू राष्ट्र लिखवाने की हो। भले ही उनका लक्ष्य संविधान के कवर के भीतर का सब कुछ हटा उसमें मनुस्मृति डाल देने का हो, पर फिर भी संविधान दिवस के दिन ये संविधान के कसीदे गायेंगे। <br />
    सत्ताधारी भाजपा व उसके मुखिया भूल कर भी यह नहीं बतायेंगे कि जब संविधान 1949 में लागू हो रहा था तो ‘आर्गनाइजर’ में उनका गुरू संघ इस संविधान की आलोचना करते हुए कह रहा था कि इस संविधान में सब कुछ विदेशों से लिया गया है इसमें भारतीय प्राचीन कानूनों से कुछ नहीं लिया गया है, कि मनु के योगदान और मनुस्मृति ही भारतीय प्राचीन सर्वोत्तम परम्परा है। <br />
    सत्ताधारी संविधान के कसीदे गढ़ते हुए यह भी नहीं बतायेंगे कि आज संविधान में लिखी बातों को ऐसा सदाचार माना जाने लगा है जिसका व्यवहार से कोई लेेना देना न हो। तभी संविधान में धर्मनिरपेक्ष देश लिखा हो और व्यवहार में तार्किक चिंतकों की हत्यायें कूपमण्डूकता के पुजारी कर रहे हों। धर्मनिरपेक्ष देश का मुखिया नरसंहार का सबसे बड़ा आरोपी बना बैठा हो। संविधान में हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सरीखे मौलिक अधिकार मिले हों पर व्यवहार में अभिव्यक्ति पर पहरा देने का काम पुलिस से लेकर संघी संगठन करने लगे हों। संविधान में समाजवाद लिखा हो पर देश लगातार निजी देशी-विदेशी पूंजीपतियों की सेवा में दौड़ा जा रहा हो। मजदूरों-मेहनतकशों के हकों पर हमला बोला जा रहा हो। संविधान में स्त्री-पुरुष बराबर घोषित हों पर व्यवहार में स्त्रियों के प्रति अपराध बढ़ रहे हों। यानि किसी भी मामले में संविधान की लिखी बातें और व्यवहार आपस में कोसों दूर हों। <br />
    शासक जानते हैं कि संविधान में लिखी अच्छी बातों से व्यवहार जितना उलटा होता जायेगा, जनता का उतना ही व्यवस्था व संविधान से विश्वास उठता जायेगा। इसीलिए वे व्यवस्था के हित में संविधान को पूज्य पुस्तक के बतौर स्थापित करते हैं। वे इस पुस्तक पर सवाल खड़ा करना भी अपराध घोषित कर डालते हैं। संविधान दिवस इसी का एक प्रयास है। <br />
    आज हमारे पूंजीवादी देश का संविधान भी पूंजीवादी है। यह इस बात का दस्तावेज है कि समाज में पूंजीपति वर्ग के नुमांइदे जनता और मेहनतकशों पर डंडा चलायेंगे। यह निजी सम्पत्ति की रक्षा का दस्तावेज है। इसीलिए देश की जनता के दिलों में इसके प्रति कोई भक्तिभाव नहीं है। इसीलिए मजदूर वर्ग इस संविधान के हिसाब से चलते गैरबराबरीपूर्ण समाज को बदलने के लिए लड़ता है। वह एक नये, बराबरी वाले समाज और इसलिए नये संविधान की मांग करता है। <br />
    पर जब देश के पूंजीवादी शासकों के कुछ बिगड़े नुमांइदे पूंजीवादी संविधान को बदल उसकी जगह मनुस्मृति रखने का षड्यंत्र रचते हैं। जब वे इस संविधान में मिले जनवादी हकों को छीन लेने का षड्यंत्र करते हैं। जब वे संसदीय व्यवस्था की चुनाव प्रणाली को किनारे लगाने की जुगत बिठाते हैं तो मजदूर वर्ग इस सबके खिलाफ खड़ा होता है। वह पूंजीवादी संविधान की जय जयकार करे बगैर उसमें प्रदत्त हकों को बचाने के लिए लड़ता है पर ऐसा करते हुए वह इस संविधान के पूंजीवादी चरित्र को उजागर करना नहीं भूलता। <br />
    आज फासीवादी मोदी और उनके साथी संविधान के कसीदे गढ़ इसी सबका प्रयास कर रहे हैं इसलिए जरूरी है कि संविधान में मिले हकों को बचाने के लिए खड़ा हुआ जाये। साथ ही उसके शोषक चरित्र को निरन्तर उजागर करते हुए समाजवाद के संघर्ष को तेज किया जाये।  

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता