उत्तराखंड : चमोली जिले से मुस्लिमों को निकाल बाहर करने का फरमान

उत्तराखंड के चमोली जिले के खानसार कस्बे में व्यापारियों के संगठन ने 15 मुस्लिम परिवारों को 31 दिसंबर तक क़स्बा छोड़ने का फरमान सुना दिया है। साथ ही ऐसा न करने पर जुर्माना व कानूनी कार्यवाही करने की भी धमकी दी है। यह भी कहा जा रहा है कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिमों को दुकान या मकान किराये पर देता है तो उस पर जुर्माना और अन्य कार्यवाही होगी। खानसार घाटी में फेरीवालों खासकर मुस्लिमों को गांवो में पहले ही घुसने पर जुर्माने का प्रावधान लगा दिया गया। बाक़ायदा बोर्ड लगाकर फेरी करने वालों को गांव में न घुसने की चेतावनी दी जा रही है।

पिछले दिनों उत्तराखंड में लव जिहाद के फ़र्ज़ी केस गढ़े गये और फिर आम जन मानस में इस तरह का माहौल बनाया गया कि मुस्लिम आकर हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसा रहे हैं। पुरोला केस ऐसा ही एक मामला था जिसमें फ़र्ज़ी तरीके से लव जिहाद का केस बनाकर मुस्लिमों को पुरोला छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया गया था। 

पिछले दिनों चमोली जिले में कुछ घटनायें इस तरह की हुई हैं जिसमें मुस्लिम लड़कों पर हिंदू युवतियों को बहलाने फुसलाने के आरोप लगे हैं। एक घटना में एक मुस्लिम लड़के द्वारा हिंदू लड़की के साथ दुष्कर्म करने और फिर उसको ब्लैकमेल करने का भी आरोप लगा है। इन्हीं आरोपों को आधार बनाकर मुस्लिम जो चमोली जिले में अपनी पैदायश से रह रहे हैं, उनको चमोली ही नहीं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से निकलने के खुलेआम फरमान जारी किये जा रहे हैं। भड़काऊ भाषण और बयान दिये जा रहे हैं लेकिन पुलिस कहती है उसे कुछ मालूम ही नहीं है। 

निश्चित रूप से उत्तराखंड के अंदर अपराध बढ़ रहे हैं, महिलाओं के खिलाफ भी अपराध बढ़ रहे हैं। लेकिन इन अपराधों में जैसे ही कोई मुस्लिम व्यक्ति शामिल होता है तुरंत संघ-भाजपा लॉबी सक्रिय हो जाती है। और पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ जहर उगलने का काम करती है। आई टी सेल से लेकर मुख्य धारा का मीडिया मुस्लिमों को शैतान के रूप में पेश करने लगता है। जबकि इन अपराधों की वजह ये व्यवस्था खुद ही है। और इसमें किसी एक विशेष धर्म के लोग शामिल नहीं हैं।

लेकिन जब कोई सत्ता से जुड़ा व्यक्ति महिलाओं के साथ अपराध में लिप्त पाया जाता है तो ये सब ऐसे गायब हो जाते हैं मानो गधे के सिर से सींग। अगर कोई उन महिलाओं को न्याय दिलाने खड़ा होता है तो फिर ये उनके खिलाफ भी खड़े हो जाते हैं। अंकिता भंडारी का मामला अभी भी लोगों के जेहन में ताज़ा है। रुद्रपुर में घर लौटती नर्स की बलात्कार करने के बाद हत्या कर दी जाती है। अगर इन सबकी जांच होती है तो संघ भाजपा की सत्ता कटघरे में खड़ी दिखाई देगी।

आखिर किसी धर्म विशेष के लोगों को कोई इलाका छोड़ने का आदेश देने वाले इन संगठनों को कौन ये अधिकार दे रहा है। कौन इन्हें भारतीय संविधान की तौहीन करने देता है। वही लोग जो आज सत्ता के शीर्ष पर बैठकर खुद संविधान की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं।

आलेख

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।