इंसान को जीने और जीवन यापन के लिए रोजगार जरूरी है। वर्तमान व्यवस्था पूंजीवादी व्यवस्था है जिसमें उत्पादन मुनाफे की दृष्टि से होता है। इसलिए लोगों की आवश्यकतानुसार उत्पादन नहीं होता। जिससे लोगों के जीवन यापन की समस्या बनी रहती है।
लोगों की जनसंख्या और शिक्षा के आधार पर काम नहीं मिलता है तो बेरोजगारी पैदा हो जाती है। ऐसे में उद्योग धंधों की कमी और मशीनों की रफ्तार तीव्र होने तथा एक ही आदमी से कई लोगों का काम लिया जाना और बेरोजगारी पैदा करता है।
सरकार की गलत नीतियों के कारण बेरोजगारी बढ़ती जाती है। मंदी के दौर में सरकारें जनमानस के विपरीत नीतियां बनाकर सृजनात्मक काम नहीं करती हैं जिससे रोजगार में कमी आती है।
भारत में कोरोना काल में लॉकडाउन करके छोटे-मोटे कारखानों को उजाड़ दिया गया। पूरे देश में लाखों की संख्या में उद्योग धंधे बंद हो गये। जिसमें लाखों की संख्या में लोग कार्यरत थे। वे सभी बेरोजगार हो गये।
सरकार द्वारा छंटनी कार्यक्रम तथा सरकारी सेक्टरों को निजी हाथों में दे देना भी बहुत बेरोजगारी पैदा करता है। सरकारी पदों को खाली रखने और भर्ती नहीं करने के कारण भी बेरोजगारी बढ़ती जाती है।
बेरोजगारी की वजह से लोगों में हताशा-निराशा बढ़ती जाती है जिससे लोग आत्महत्या तक कर बैठते हैं। बेरोजगारी के कारण लोगों को अराजक तत्व गुमराह करके इंसान के विपरीत काम करने को उकसा देते हैं। बेरोजगारी से गरीबी बढ़ जाती है जिससे लोग बेहाल हो जाते हैं।
बेरोजगारी से मुक्ति और जनमानस की खुशहाली के लिए समाजवादी व्यवस्था कायम करने की जरूरत है। समाजवाद में ही लोग अमन-चैन से जी सकेंगे।
-चन्द्रप्रकाश, बलिया
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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
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