गणतंत्र दिवस यानी हैसियत, ताकत का प्रदर्शन

    भारत का गणतंत्र दिवस एक बार फिर से उसी चीज का गवाह बना जिस चीज का हर साल प्रदर्शन, देश के भीतर और बाहर के लिए किया जाता है। यानी सैन्य ताकत का प्रदर्शन और इस सैन्य प्रदर्शन के आवरण के लिए भारत की सांस्कृतिक विविधता का इस्तेमाल किया जाता है। <br />
    भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के शासकों द्वारा कितनी ही अच्छी-अच्छी, मीठी-मीठी बातें की जाती हों पर हकीकत यह है कि यह तंत्र गण के ऊपर बोझ सा बन गया है। यह महज सस्ती तुकबंदी की बात नहीं है बल्कि भारत के शासक वर्ग, पूंजीपति वर्ग व भू-स्वामी वर्ग की आम भारतीय मजदूर-मेहनतकशों, किसानों, आदिवासियों, दलितों व अन्य शोषित-उत्पीड़ित जनों से दिनोंदिन गहराते अंतर्विरोध की बात है। भारत के चंद अमीर अंबानी-अदानी देश की आय, प्राकृतिक संसाधनों व पूरे तंत्र को अपने हितों में जैसा चाहे वैसा इस्तेमाल कर रहे हैं। ये दिनोंदिन अमीर और अमीर बनते जा रहे हैं और जबकि आमजन गरीबी, बेरोजगारी के भंवर में फंसे हुए हैं। ऐसे में सैन्य ताकत का प्रदर्शन अपना अर्थ अपने आप कह देता है। <br />
    इस वर्ष के गणतंत्र दिवस के अवसर पर दो परेड हुईं। एक परेड जो हर वर्ष होती है। और एक परेड नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह की तरह आसियान के राष्ट्र प्रमुखों की थी। दोनों ही परेड एक-दूसरे को भारत के शासक मोदी की ताकत का प्रदर्शन बन गयी। पहली परेड ने दूसरे को, दूसरे ने पहले को देखा। <br />
    पहली बार दस देशों के प्रमुख गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर थे। आसियान दक्षिण पूर्व एशिया के दस देशों का सार्क (दक्षेस) की तरह का संगठन है।(ए.एस.ई.ए.एन.- एसोसिएशन आफ द साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स) ये देश प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर सार्क से अधिक एकजुट हैं। इन देशों को भारत अपने विस्तारवादी मंसूबों के अनुरूप पाता है। इन देशों को लेकर ऐसे ही मंसूबे चीन भी पालता है। पर असल में ये देश मुख्य तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ उसके सहयोगी जापान और आस्ट्रेलिया के प्रभाव क्षेत्र में हैं। इनका व्यापार का मुख्य हिस्सा भी इन्हीं के साथ है। इन देशों के प्रमुखों को गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि बनाकर भारत ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों की शह पर अपने इरादे जाहिर किये। सार्क की तरह भारत के लिए आसियान से लाभ उठाना आसान नहीं है। सार्क में पाकिस्तान की तरह यहां उसे कई अन्य से होड़ करनी है। <br />
    गणतंत्र दिवस पर बजे नक्कारखाने के समय तूती सरीखी एक क्षीण आवाज देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी की थी। भाजपा-संघ ने राहुल गांधी को उनकी हैसियत बताने के लिए इस मौके का खूब इस्तेमाल किया। छठी पंक्ति पर बैठा दिया गया। बेचारे राहुल के पास मुस्कराने के अलावा कोई चारा नहीं था। उन्होंने एक पत्र गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जारी कर संविधान की रक्षा का आह्वान किया। भारतीय संविधान में छेड़छाड़ का उनकी पार्टी का पुराना इतिहास रहा है। अब मौका संघ-भाजपा को मिला है तो वे क्यों न अपना शौक पूरा करें। संविधान की रक्षा सबसे अच्छे ढंग से उसमें नये-नये संशोधन और प्रावधान जोड़कर ही की जा सकती है। इसे भारत के शासक बहुत अच्छे ढंग से समझते हैं। <br />
    गणतंत्र दिवस के समय की चीजों का बहुत प्रतीकात्मक अर्थ है। मुख्य अतिथियों के लिए सजाये गये मंच में हालैंड से लाये गये फूलों का इस्तेमाल हो रहा था। विदेशी फूल, विदेशी नेता, विदेशी हथियार, विदेशी तकनीक से बने टैंक-मिसाइलें आदि बता देती हैं कि हमारा गणतंत्र कितना मजबूत व ताकतवर इन 68 सालों में हो चला है। 

आलेख

/trump-ke-raashatrapati-banane-ke-baad-ki-duniya-ki-sanbhaavit-tasveer

ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है। 

/bhartiy-ganatantra-ke-75-saal

आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं? 

/takhtaapalat-ke-baad-syria-mein-bandarbaant-aur-vibhajan

सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।

/bharatiy-sanvidhaan-aphasaanaa-and-hakeekat

समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

/syria-par-atanki-hamalaa-aur-takhtaapalat

फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।